शिव का नाम ही परम सत्य, मांगलिक और आनंद देने वाला – मानस मर्मज्ञ दीदी मां मंदाकिनी

इंदौर, । भगवान शिव का नाम लेने से परम मांगलिक भाव उत्पन्न होते हैं। शिव का नाम मांगलिक, परम सत्य और आनंद प्रदाता के साथ कल्याणकारी भी है। भगवान शिव का स्वरूप ही उनका श्रृंगार है। उनकी लीलाएं देख-सुनकर लगता है कि उन्होंने सम्पूर्ण संसार को अपने में समेट लिया है। शिव का नाम लेने से ही मंगल भावों की सृष्टि प्रारंभ हो जाती है।
प्रख्यात राम कथाकार दीदी मां मंदाकिनी श्रीराम किंकर के, जो उन्होंने संगम नगर स्थित श्रीराम मंदिर पर श्रीराम शिवशक्ति मंदिर शैक्षणिक एवं पारमार्थिक समिति के तत्वावधान में चल रही रामकथा में शिव महिमा की व्याख्या करते हुए व्यक्त किए। दीदी मां ने कहा कि भगवान शिव की महिमा को सहज, सरल कथा शैली में प्रस्तुत करते हुए कहा कि देवाधिदेव महादेव के दैविक, भौतिक और आध्यात्मिक रूप को जिसने समझ लिया, उसे समग्र सृष्टि में शिव तत्व के दर्शन हो जाएंगे और तब यह संसार दुखद नहीं, बल्कि सुखद और आनंददायक लगने लगेगा। कथा शुभारंभ के पूर्व यजमान समूह के भूपेन्द्र कौशिक दम्पति के साथ वरिष्ठ समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, भगवती प्रसाद-विमला यादव, सुरेन्द्र-चंदा वाजपेयी, पराग कौशल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आयोजन समिति की ओर से अरविंद गुप्ता, गोविंद पंवार, अनूप जोशी ने पं. गणेश दत्त शास्त्री द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विद्वान वक्ता की अगवानी की।
पद्मविभूषण युगतुलसी ब्रह्मलीन श्रीराम किंकर की उत्तराधिकारी मानस मर्मज्ञ दीदी मां मंदाकिनी देवी ने खचाखच भरे संगम नगर राम मंदिर के कथा पांडाल में कहा कि भगवान शिव के अनेकानेक नामों में से एक नाम ‘भव’ भी है। इस शब्द का उपयोग शब्दकोष में संसार के पर्याय के रूप में भी किया गया है। साहित्य के कोष में लाखों शब्द हैं, लेकिन एक ही शब्द ‘भव’ का प्रयोग परस्पर विरोधी प्रतीत होता है। इसके बावजूद इस शब्द का प्रयोग इसलिए किया जाता है कि शिव का नाम लेते ही परम मांगलिक भाव सृजित होते हैं, जो अत्यंत शुभ, परम सत्य और आनंद देने वाले हैं। संसार के संदर्भ में अधिकांश लोगों को बहुत सुखमय प्रतीती नहीं होती, जहां रोग, शोक, तनाव, अशांति एवं पीड़ा का बोध होता है। इससे लगता तो यही है कि भगवान शिव और संसार परस्पर विरोधी हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। शिव ने सम्पूर्ण संसार को अपने में समेट लिया है, यदि हम उनकी लीलाओं, श्रृंगार और उनके गणों के रूप को देखें तो यही लगता है।