सनातन धर्म के संवर्धन और आजीवन व्यसनों से मुक्ति सहित पांच मुद्दों पर शपथ के साथ हुआ वेद महोत्सव का समापन

तीन दिवसीय अ.भा. वेद महोत्सव का हुआ समापन – हजारों नागरिकों ने लिए रक्षा सूत्र एवं अभिमंत्रित रूद्राक्ष
इंदौर, । राजमोहल्ला स्थित वैष्णव विद्यालय परिसर आज शाम भारत माता एवं वेद माता के जयघोष से गुंजायमान बना रहा। यहां चल रहे अ.भा वेद महोत्सव में देश के कोने-कोने से आए चारों वेदों के विद्वानों एवं युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि एवं महानिर्वाणी पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद भारती के सानिध्य में डेढ़ हजार से अधिक वेदपाठी बटुकों ने सनातन हिन्दू धर्म के संवर्धन, आजीवन व्यसनों से मुक्ति, वेदों की शिक्षा और भारतीय संस्कारों की रक्षा, राष्ट्रद्रोही ताकतों के प्रति सजगता और संयुक्त परिवार की परम्पराओँ को पुनर्स्थापित करने की शपथ ली, वहीं वेद महोत्सव की समापन बेला में सांसद शंकर लालवानी के माध्यम से केन्द्र एवं राज्य सरकारों से मांग की गई कि वेदों का सरल भाषा में अनुवाद कर उन्हें स्कूल- कालेजों के पाठ्यक्रम में शामिल करने, षडशास्त्र, षडदर्शन एवं उपनिषदों की धाराओं को भी स्कूली किताबों में शामिल करने, संस्कृत पाठशालाओं के उन्नयन, वैदिक विद्वानों और वयोवृद्ध ब्राह्मणों के लिए पेंशन योजना, जरूरतमंद ब्राह्मणों के लिए बीपीएल एवं आयुष्मान कार्ड बनाने, और वेदों के लिए काम करने वाली संस्थाओं को सरकारी प्रोत्साहन देने जैसी मांगें भी की गई। सांसद लालवानी सहित मंच पर मौजूद सभी वरिष्ठ संतों ने भी करतल ध्वनि से इन मांगों का पुरजोर समर्थन किया।
तीन दिवसीय अ.भा. वेद महोत्सव का समापन दिवस आज व्यस्त कार्यक्रमों के साथ गुजरा। सुबह चारों वेदों के पारायण के बाद व्याख्यान सत्र में अथर्ववेद के परिचय एवं उसकी विशेषताओं पर विक्रम वि.वि. उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा, वृंदावन के प्रो. रामकृपाल त्रिपाठी, गोकर्ण के श्रीधर अड़ी एवं वृंदावन के डॉ. ऋषि कुमार तिवारी ने अपने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक वि.वि. उज्जैन के पूर्व कुलपति प्रो. मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी ने की। वक्ताओं ने कहा कि अथर्ववेद लोक मंगल एवं लोक कल्याण के लिए प्रवृत्त होता है। ब्रह्माजी के श्रीमुख से सबसे पहले ‘त’ और ‘प’ शब्द प्रस्फुटित हुए थे। त और प से ही तप शब्द बना। अथर्ववेद, अर्थ और ओंकार से मिलकर बना है। ये दोनों परम मांगलिक शब्द हैं। जिस वेद में मंगल ही मंगल हो, वह अथर्ववेद है। मान्यता है कि जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद के विद्वान रहते हैं, वह राज्य उपद्रव मुक्त, शांत और सदभाव से रहता है। संचालन डॉ. विनायक पांडे ने किया। सुबह वेद पारायण सत्र का संचालन पं. राकेश भटेले ने किया।
वरिष्ठ समाजसेवी विनोद अग्रवाल की षष्ठीपूर्ति के उपलक्ष्य में सम्मान – महोत्सव में शहर के वरिष्ठ समाजसेवी एवं उद्योगपति विनोद अग्रवाल का उनकी षष्ठीपूर्ति के उपलक्ष्य में युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि एवं महानिर्वाणी पीठाधीश्वर स्वामी विशोकानंद भारती, महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती के सानिध्य एवं वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक के आतिथ्य में आयोजन समिति की ओर से शाल-श्रीफल एवं धर्म, समाज तथा संस्कृति के क्षेत्र में उनकी निस्वार्थ सेवाओं के लिए अभिनंदन पत्र भेंटकर सांसद शंकर लालवानी, पुरुषोत्तमदास पसारी, राधेश्याम शर्मा गुरुजी, पं.गणेश शास्त्री, विष्णु बिंदल, टीकमचंद गर्ग, दिनेश मित्तल, सुभाष बजरंग, पवन सिंघानिया आदि ने सम्मान किया।