धर्म और राष्ट्र विरोधी तत्वों से सजग रहें – शंकराचार्य

इंदौर, । जगदगुरू शंकराचार्य, भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने आज शाम बिजासन रोड स्थित प्राचीन श्री अविनाशी आश्रम अखंड धाम पर प्रारंभ हुए 55वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन में धर्म विरोधी और राष्ट्र विरोधी तत्वों को आगाह करते हुए कहा कि सांप केंचुली या आवरण बदलता है। हम यदि केंचुली पर लकड़ी चलाएंगे तो सांप कुचलेगा नहीं। राष्ट्र की एकता-अखंडता के लिए हम सबको सजग रहने की जरूरत है। हमें किसी भी कारण से, कामना हो या वासना – अपने धर्म को नहीं छोड़ना है।
जगदगुरू शंकराचार्य ने ये बातें संत सम्मेलन के शुभारंभ समारोह में कही। अंतर्राष्ट्रीय राम स्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज के मुख्य आतिथ्य में आचार्य पं.रामचंद्र शर्मा वैदिक द्वारा विद्याधाम एवं ओंकारद्विज संस्कृत पाठशाला के वेदपाठी बटुकों द्वारा वैदिक मंगलाचरण के बीच दीप प्रज्ज्वलन के साथ सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। प्रारंभ में आश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी डॉ. चेतन स्वरूप, अध्यक्ष हरि अग्रवाल, महासचिव सचिन सांखला, संयोजक निरंजनसिंह चौहान गुड्डू, सचिव भावेश दवे, ठा. विजयसिंह परिहार, प्रतिभा मित्तल, राजेन्द्र मित्तल, शैलेन्द्र मित्तल, मोहनलाल सोनी, आश्रम के संत राजानंद, आदित्य सांखला, नवनीत शुक्ला, सुश्री किरण ओझा आदि ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। आश्रम की गतिविधियों एवं संत सम्मेलन के बारे में जानकारी महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप ने दी। संचालन स्वामी नारायणानंद ने किया।
अपने ओजस्वी उदबोधन में शंकराचार्यजी ने कहा कि हम रस्सी में सर्प की भ्रांति पाल लेते हैं, यही अज्ञान और अविद्या है। माया और अविद्या के स्वरूप को हटाने की जरूरत है। यह स्वरूप तभी हटेगा, जब प्रकाश होगा। हमारे अंदर रस्सी और सर्प में अंतर को समझने की क्षमता होना चाहिए। रस्सी का टुकड़ा सांप की तरह न रेंगता है न चलता है। उसमें चेतना भी नहीं है फिर भी अज्ञान के कारण हम उसे सांप समझ लेते हैं। वेदांत का चिंतन हमारे अज्ञान को ज्ञान के प्रकाश से दूर करता है। बिना किसी का नाम लिए शंकराचार्यजी ने कहा कि देश में धर्म विरोधी और राष्ट्र विरोधी तत्व अपनी हरकतें चला रहे हैं। हमें उनसे सावधान रहने की जरूरत है। चाहे मृत्यु के भय से, चाहे किसी प्रलोभन या दबाव से, चाहे किसी कामना या वासना से – हमें अपने राष्ट्र की एकता-अखंडता के लिए किसी भी कारण से अपने धर्म को नहीं छोड़ना है।
धर्म सभा में जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने कहा कि बिजली के तार में करंट तो होता है, लेकिन वह दिखाई नहीं देता। भारत गोमाता, गंगा, गायत्री, गीता और ज्ञान का देश है। उल्लू के शब्दकोष में सूर्य नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि सूर्य का अस्तित्व ही नहीं है। वेदांत का चिंतन मनुष्य को सर्वांगीण विकास की ओर प्रवृत्त करता है। वेदांत ऐसी टहनी है, जो ज्ञान के अमृत से परिपूर्ण हो। संसार में आने के बाद हम माया के बंधन को चाहे- अनचाहे स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन यदि संत-विद्वानों के पास पहुंचकर वेदांत का ज्ञान प्राप्त करें तो इन बंधनों से मुक्त हो सकते हैं। सम्मेलन को आष्टा से आई साध्वी कृष्णादेवी एवं सारंगपुर की भागवताचार्य अर्चना दुबे, वृंदावन के महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश्वरानंद ने भी संबोधित किया।