भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा विश्व मृदा दिवस

इंदौर, मध्यप्रदेश. प्रत्येक वर्ष खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा लोगों को उपजाऊ मिट्टी के बारे में जागरूक करने तथा संसाधन के रूप में मिट्टी के स्थायी प्रबंधन की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से ‘विश्व मृदा दिवस’ मनाया जाता है। इसी श्रृंखला में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर द्वारा विश्व मृदा दिवस के अवसर पर “सोयाबीन में मृदा पोषण : तब और अब” विषय पर कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा सत्र का आयोजन संस्थान के ज़ूम और यूट्यूब चैनल के माध्यम से किया गया जिसमे देश भर से 500 से अधिक किसानों ने जुड़कर इस सत्र का लाभ लिया गया। कार्यक्रम का संचालन एवं अतिथि वक्ताओं का स्वागत डॉ बी.यु. दुपारे द्वारा किया गया. इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक डॉ ओ.पी. जोशी (मृदा वैज्ञानिक), डॉ ए.एन. शर्मा (कीट विज्ञान) एवं डॉ एस.डी. बिल्लोरे (सस्य विज्ञान) सहित सोलिडारीडाड के डॉ सुरेश मोटवानी उपस्थित रहे. कार्यक्रम में संस्थान के निदेशक महोदय डॉ के.एच. सिंह द्वारा मृदा के स्वास्थ को बेहतर बनाए रखने एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए अच्छी उर्वरकता वाली मृदा विरासत में देकर जाए ऐसा लक्ष्य लेकर कार्य करने की सलाह दी। इसी कड़ी में प्रख्यात मृदा वैज्ञानिक डॉ ओ.पी. जोशी द्वारा विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गयी जिसमे उन्होंने कहा “90 प्रतिशत भोजन हमे मृदा से प्राप्त होता है और गणना के अनुसार 2050 तक इसे बनाए रखने के लिए 60 प्रतिशत अधिक खाद्यान्न उत्पादन की आवश्यकता है जो कि सिर्फ मृदा के पोषण प्रबंधन से ही संभव है”। उन्होंने मृदा की गुणवत्ता बढाने के लिए जैविक खाद का उपयोग करने की सलाह दी। इसी श्रृंखला में डॉ बिल्लोरे द्वारा संतुलित खाद का प्रयोग एवं समेकित पोषण प्रबंधन करने की सलाह दी साथ ही आर्गेनिक कार्बन को मृदा स्वास्थ का महत्वपूर्ण घटक बताया। संस्थान के प्रख्यात सेवानिवृत्त कीट वैज्ञानिक डॉ ए.एन. शर्मा ने कहा कि सोयाबीन कि फसल के लिए सबसे घातक कीट जैसे तम्बाकू की इल्ली तथा गर्डल बीटल मुख्यतः मृदा में ही पनपते है जो की फसल को अंदर से नुकसान पहुचाते है। उन्होंने बताया कि इस समस्या से निजात पाने के लिए एफ.आई.आर पद्धति से पहले फफूंद नाशक, फिर कीट नाशक और अंत में राय्ज़ोबियम जीवाणु से प्रक्रिया कर उपचार करना चाहिए। संस्थान की डॉ सविता कोल्हे नें कृषकों द्वारा उठाये गये विभिन्न मुद्दों पर कृषक-वैज्ञानिक चर्चा सत्र का संचालन किया जिसके अंतर्गत किसानों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का विशेषज्ञों ने जवाब दिया। कार्यक्रम के अंतिम दौर में डॉ आर.के. वर्मा द्वारा सभी अतिथि वक्ताओं एवं उपस्थित कृषकों का आभार व्यक्त किया गया।