स्वाहाकार की मंगल ध्वनि से गूंज उठा पितृ पर्वत, अरणि मंथन से हुआ अग्नि प्राकट्य

इंदौर, । यज्ञ भारतीय संस्कृति का अनुपम अनुष्ठान है, जिसमें प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के साथ ही देवताओं की प्रसन्नता का भी भाव होता है। विज्ञान ने भी यज्ञ की महत्ता को स्वीकार किया है। पितृ पर्वत जैसे तीर्थ स्थल के रूप में विकसित हो रहे स्थान पर हनुमानजी की साक्षी में पहली बार खाटू श्याम महायज्ञ का आयोजन इंदौर ही नहीं पूरे प्रदेश और देश के श्याम भक्तों के लिए गौरव की बात है। निश्चित ही इस यज्ञ के माध्यम से समाज में सदभाव और सुख, शांति एवं समृद्धि की स्थापना के प्रयासों को मजबूती मिलेगी।
प्रख्यात संत मां कनकेश्वरी देवी ने आज सुबह श्री खाटू श्याम सेवा समिति के तत्वावधान में अंबिकापुरी स्थित खाटू श्याम धाम की स्थापना के रजत जयंती महोत्सव के उपलक्ष्य में पितृ पर्वत पर चल रहे खाटू श्याम महायज्ञ में उपस्थित विद्वानों एवं यजमानों को आशीर्वचन देते हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। आयोजन समिति के प्रमुख महंत नीलू बाबा ने बताया कि संतश्री का स्वागत राजकिशोर शर्मा, उमेश यादव, मनोज साल्वी, चिराग शर्मा, ललित अग्रवाल, अशोक शर्मा आदि ने किया। संत मां कनकेश्वरीदेवी ने यज्ञशाला एवं यज्ञ स्थल का अवलोकन करअंतर्राष्ट्रीय खाटू श्याम अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी गोपालदास महाराज, महामंडलेश्वर आनंदीमाई, महामंडलेश्वर ऋषिदास महाराज से महायज्ञ की विस्तृत जानकारी प्राप्त की। सुबह विद्वानों के निर्देशन में मंडल पूजन, देवताओं के आव्हान सहित विभिन्न शास्त्रोक्त क्रियाएं संपन्न हुई।
अरणि मंथन से प्रकट हुई अग्नि – महामंडलेश्वर स्वामी गोपालदास महाराज के सानिध्य एवं आचार्य पं. प्रद्युम्न दीक्षित के निर्देशन में चल रहे इस महायज्ञ में आज अरणि मंथन द्वारा जैसे ही अग्नि का प्राकट्य हुआ, यज्ञशाला, यज्ञनारायण और खाटू श्याम बाबा के जयघोष से गूंज उठी। इस अग्नि को सभी पच्चीस कुंडों में समर्पित कर स्वाहाकार का क्रम शुरू किया गया। महायज्ञ में आज 25 कुंडों पर 100 यजमानों ने ‘ओम श्री श्याम देवाय नमः’ मूल मंत्र से 60 हजार से अधिक आहुतियां समर्पित की। आज से पांच मंजिला यज्ञशाला में स्वाहाकार की मंगल ध्वनि गूंजने लगी है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यज्ञशाला की परिक्रमा करने भी आ रहे हैं। इनमें अनेक दिव्यांग, दृष्टिहीन, मूक बधिर एवं विभिन्न समस्याओं से पीड़ित लोग भी शामिल थे। यज्ञ प्रतिदिन दोपहर 2 से सायं 5 बजे तक हो रहा है। इसमें फलों के रस, जड़ी बूटियों, औषधियों एवं पर्यावरण के संरक्षण में काम आने वाले पदार्थों की आहुतियां दी जा रही हैं।