इंदौरधर्म-ज्योतिषमध्यप्रदेश

भक्ति और सेवा वही फलीभूत होगी, जिसमें सबके कल्याण और भले का भाव होगा- स्वामी भास्करानंद

भगवान जिसके मित्र हों वह कभी गरीब हो ही नहीं सकता

इंदौर । भक्ति और धर्म एक-दूजे के पर्याय हैं। जिस भक्ति और सेवा में लोक कल्याण का भाव नहीं होता, वह प्रकल्प पाप जैसा माना जाता है। भक्ति और सेवा वही फलीभूत होगी, जिसमें सबके कल्याण और भले का भाव होगा। मन, वचन और कर्म से जीव मात्र के प्रति दया, करुणा और स्नेह का मनोरथ ही हमें धर्म और नीति के रास्ते से मोक्ष की मंजिल तक पहुंचा सकता है। कृष्ण जैसे राजा और सुदामा जैसे मित्र इस युग में दुर्लभ ही हैं। भगवान का कोई सखा कभी गरीब नहीं रह सकता।
ये प्रेरक विचार हैं वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के, जो उन्होंने गुरुवार को मनोरमागंज स्थित गीता भवन पर गोयल पारमार्थिक ट्रस्ट और रामदेव मन्नालाल चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान कृष्ण-सुदामा मैत्री एवं समापन प्रसंग के दौरान व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी प्रेमचंद- कनकलता गोयल, विजय-कृष्णा गोयल, आनंद-निधि गोयल ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा में कृष्ण सुदामा मिलन का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। साध्वी कृष्णानंद ने अपने मनोहारी भजनों से आज भी भक्तों को सम्मोहित बनाए रखासमूचे सभागृह में मौजूद भक्तों ने भगवान पर पुष्प वर्षा कर पुण्य लाभ उठाया। समापन आरती में समाजसेवी टीकमचंद गर्ग, विष्णु बिंदल, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, किशोर गोयल, गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, शैलेन्द्र गुप्ता, महेश चायवाले सहित सैकड़ों बंधुओं ने भाग लिया। इसके पूर्व स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में पूर्णाहुति यज्ञ भी हुआ।
भागवत के विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या के दौरान स्वामी भास्करानंद ने कहा कि कृष्ण और सुदामा की मैत्री राजा और प्रजा के मिलन की प्रतीक है। हमारे वर्तमान शासकों को भी इस प्रसंग से सबक लेना चाहिए और अपने आसपास के सुदामाओं के लिए अपने मन में आत्मीयता और सम्मान के भाव रखना चाहिए। जिस दिन ऐसा होने लगेगा, हमारा प्रजातंत्र भी सार्थक बन जाएगा। कृष्ण सुदामा की मैत्री में कोई स्वार्थ नहीं था। भगवान जिसके मित्र हों वह कभी गरीब हो ही नहीं सकता। भागवत मनुष्य को सत्य की राह पर प्रवृत्त कर उसकी कमजोरियों से मुक्ति दिलाती है।

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