अज्ञान और मोह की कुंभकर्णी निंद्रा से गुरू
मां आनंदमयी पीठ पर धूमधाम से मना भगवान पूर्ण ब्रह्मनारायण का प्राकट्य दिवस – महोत्सव का समापन
इंदौर, । गुरू के प्रति कृतज्ञता व्यक्त नहीं करना भी एक दोष है। अज्ञान और मोह की कुंभकर्णी निंद्रा से गुरू ही मुक्त करा सकते हैं। जीवन की सार्थकता और धन्यता यही है कि हम सबकी भगवत दृष्टि बनी रही। सदगुरू की कृपा के बिना संसार के विषयों का त्याग नहीं हो सकता। भगवत दृष्टि सज्जनों की कृपा के बगैर नहीं मिल सकती। संसार में मां से पृथक कुछ भी नहीं है। जो कुछ है वह मां ही हैं। जब तक हमारी चेतना के तार परमात्मा से नहीं जुड़ेंगे, हमारे बंधन भी नहीं खुलेंगे। मां आनंदमयी अपने नाम के अनुरूप आनंद का ही पर्याय है।
ए.बी. रोड, मेडिकल कालेज के पास स्थित श्रीश्री माता आनंदमयी पीठ पर चल रहे पांच दिवसीय मातृ जन्म महोत्सव के समापन अवसर पर पीठ के अध्यक्ष स्वामी केदारनाथ महाराज ने उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए और मां आनंदमयी से जुड़े प्रेरक एवं भावपूर्ण संस्मरण भी सुनाए। समापन दिवस पर आज तड़के 3 बजे से ही भक्तों का आगमन शुरु हो गया था। मां आनंदमयी के 128वें जन्मोत्सव एवं भगवान श्री पूर्ण ब्रह्मनारायण प्राकट्य दिवस के उपलक्ष्य में मां के मंदिर में अभिषेक, पूजा, आरती, विष्णु सहस्त्रनाम एवं ललिता सहस्त्र नामार्चन से सैकड़ों भक्तों ने श्री यंत्र का कुमकुम से पूजन-अभिषेक किया। आश्रम परिसर के अमरनाथ महादेव मंदिर पर आचार्य पं. दीपक शास्त्री के निर्देशन में हवन एवं कन्या पूजन का आयोजन भी सैकड़ों भक्तों की मौजूदगी में संपन्न हुआ। इस मौके पर सैकड़ों भक्तों ने सुश्रृंगारित मां आनंदमयी के मंदिर की परिक्रमा भी की।
वेदांत सम्मेलन में कुरुक्षेत्र हरियाणा से आए आदर्श महामंडलेश्वर स्वामी विरागानंद, अमरकंटक से आए स्वामी योगेश्वरानंद, काशी से आए ब्रह्मचारी जयेश्वर चेतन्य, उज्जैन से आए आचार्य रामस्वरूप, स्वामी परमानंद एवं स्वामी दिव्यानंद, अखंडधाम इंदौर के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप, स्वामी परिपूर्णानंद, स्वामी कृष्णानंद, स्वामी राघवानंद सहित बड़ी संख्या में वृंदावन, ओंकारेश्वर एवं उज्जैन से आए संत, विद्वानों ने भाग लिया और मां आनंदमयी के चित्र पर पुष्पांजलि समर्पित की। प्रारंभ में आश्रम परिवार की ओर से जे.पी. फड़िया, मुकेश कचोलिया, डॉ. विजय निचानी, नरेन्द्र माखीजा, मनोज भाया, अनिरुद्ध चौहान, पूजा मित्तल, नरेश मित्तल, अशोक बवेजा, राजू कुकरेजा आदि ने सभी अतिथि संतों का स्वागत किया। संचालन स्वामी कृष्णानंद एवं मुकेश कचोलिया ने किया। करीब तीन हजार भक्तों ने महाप्रसादी का पुण्य लाभ उठाया। संध्या को आरती में सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए।
*किसने क्या कहा* – वेदांत सम्मेलन में*महामंडलेश्वर स्वामी विरागानंद* ने कहा कि वेदों का निचोड़ अपने स्वरूप को जानने में है। संसार मिथ्या और सर्वेश्वर सत्य माने गए हैं। हम सब ब्रह्म से अलग नहीं हैं, हमारा स्वरूप भी ब्रह्म का ही है। नींद में आया स्वप्न सच्चा नहीं होता। यह सारी सृष्टि परमात्मा से ही सृजित हुई है। मूल तत्व परमात्मा अर्थात ब्रह्म ही है। *काशी से आए ब्रह्मचारी जयेश्वर चेतन्य* ने कहा कि ब्रह्म किसीके साथ बेर भाव नहीं रखते। हम ललाट पर तिलक और सिर पर शिखा रखकर स्वयं को भक्त मान बैठते हैं। हमें काल्पनिक ब्रह्म नहीं बनना चाहिए। भक्ति तभी आएगी, जब हमारे अंदर सरलता होगी। हम पशुओं से अलग हैं इसीलिए भगवान ने हमें विचार और विवेक की पात्रता दी है। दुख आएगा और चला भी जाएगा। *अमरकंटक से आए स्वामी योगेश्वरानंद* ने कहा कि जो लोग शास्त्र से नहीं मानते हैं, उनके लिए शस्त्र उठाना भी पुण्य का काम होता है। हम भोले हैं, लेकिन भाला उठाना भी जानते हैं। धर्म के लिए धन है, धन के लिए धर्म नहीं। अपने स्वरूप की खोज करना भक्ति है और अपने स्वरूप में स्थित हो जाना मुक्ति है। संतों के दर्शन औऱ उनके विचारों के मंथन से हम स्वयं को दुर्व्यसनों एवं बुरे विकारों से मुक्त बनाएं यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। *उज्जैन से आए स्वामी परमानंद* ने कहा कि जैसे चुंबक लोहे को अपनी ओर खींचता है, मां आनंदमयी ने भी अपनी अमृतवाणी के चुंबक से सुषुप्त आत्माओं को चैतन्य एवं जागृत बनाया है। *चार धाम मंदिर उज्जैन के ही आचार्य रामस्वरूप* ने कहा कि ज्ञान से अधिक पवित्र वस्तु कोई और नहीं है। त्याग, श्रद्धा और वैराग्य के बिना परम शांति नहीं मिल सकती। भक्ति के साथ शक्ति का भी जागरण होना चाहिए। हम पशुओं से भी बदतर हो गए हैं। राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के शत्रुओं से मुकाबले के लिए हमें संगठित होना पड़ेगा। वर्तमान में देश संक्रमणकाल से गुजर रहा है। हमारी बेटियों को भी इसमें सहयोग देना होगा। नारी को नारायणी और पुरुष और पुरुषोत्तम बनाने की दिशा में सबको संगठित होना होगा। *उज्जैन के ही स्वामी दिव्यानंद* ने कहा कि मां आनंदमयी ने अपने जीवनकाल में अनेक चमत्कारिक अनुभूतियां की हैं। यहां प्रतिवर्ष मां के जन्मोत्सव का यह दिव्य आयोजन हम सबके लिए सकारात्मक बदलाव लाने वाला साबित होगा। *स्वामी केदारनाथ महाराज* ने मां आनंदमयी से जुड़े प्रेरक संस्मरण सुनाए और कहा कि वे तो करीब 50 वर्ष पूर्व ही समाधि लेने के इच्छुक थे, लेकिन हालात ऐसे बनें कि भगवान को कुछ और ही मंजूर था। इसके बाद मां आनंदमयी से तीन-चार बार साक्षात्कार और दर्शन का सौभाग्य मिला और उस दौरान अनेक चमत्कारिक अनुभूतियां हुईं। आज हम सब का संकल्प यही होना चाहिए कि हमारी दृष्टि हमेशा भगवत दृष्टि बनी रहे। समापन अवसर पर सभी संतों एवं भक्तों पर फूलों की वर्षा कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की गई।