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सुख चाहते हैं तो धर्म करे, किन्तु यदि पाप कर्म करके सुख चाह रहे हो तो यह सबसे बड़ी भूल है- पूज्य विजयमुनी मसा

सेंधवा। जब शरीर में शुगर बढ़ जाती है तो हम शक्कर खना – मीठा खाना छोड़ देते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि मीठा हमारे शरीर को नुक़सान करेगा। उसी प्रकार हम जानते हैं कि पाप करने से दुख आने वाला है, पर हम पाप करना छोड़ने को तैयार हैं क्या?
उक्त उद्गार ज्ञान गच्छाधिपति प्रकाशचंद जी म.सा. के आज्ञानुवर्ती शिष्य पूज्य विजयमुनी म.सा. ने जैन स्थानक में कहें। मसा ने कहा कि यदि आप सुख चाहते हैं तो धर्म करे किन्तु यदि पाप कर्म करके सुख चाह रहे हो तो यह अपनी सबसे बड़ी भूल है। जब लाइट का बिल आता है, तो हमें बिल का भुगतान करते समय लगता है इतना बिल कैसे आ गया। पर वह बिल भरना ही पड़ता है तो चिंतन करे कि जो हिंसा, झूठ, माया, क्रोध, परिग्रह जैसे 18 प्रकार के पाप हम प्रतिदिन करने में लगे हैं और पाप करके अपने अशुभ कर्मों का बंध कर रहे हैं तो इस प्रकार के पाप के बिल का भुगतान करते समय हमारा क्या होगा ?

थोड़ा सा विवेक रखकर पाप से बच सकते हैं-
मसा ने कहा कि हम संसार में रहते हुए भी थोड़ा सा विवेक रखकर पाप से बच सकते हैं। भगवान ने पानी की एक बूंद में असंख्य जीव बताए हैं। वर्तमान में वैज्ञानिक ने भी पानी की बूंद में 36 हजार 450 जीव होने का दावा किया है। तो हम आज पानी का अनावश्यक व व्यर्थ उपयोग करके असंख्य जीवों की विराधना कर रहे हैं। आपने कहा कि पहले पानी भरने दुर जाना पडता था तो हमें व्यर्थ में ढोलने में भी जोर पड़ता था। आज पानी सहज उपलब्ध है तो हम उसकी कीमत भूल गये है। जल है तो कल है और जल ही जीवन है जैसे शब्दों के महत्व को हम समझ नहीं रहे हैं वे सिर्फ पोस्टरों में लिखे रह गये है।

हम कल्याणकारी बातों को मानते हैं क्या? –
आपने कटाक्ष करते हुए कहा कि हमें मीठा खाना बहुत पसंद हैं। हम प्रतिदिन मीठा खाते हैं। पर यदि हम डाक्टर के पास जाते हैं, वहां फिस भी देते हैं और वो हमें शुगर के कारण मीठा खाने से मना कर देता है तो उनकी बात स्वीकार कर वह भी खाना बंद कर देते हैं क्योंकि हमारा शरीर अस्वस्थ ना हो जाये। वहीं जब हमारे साधु -संत हमें जो त्याग, पच्खान के लिए प्रेरित करते हैं जो हमारे आत्म कल्याण के लिए होता है, जिसमें उनका कोई स्वार्थ नहीं होता है ना ही कोई फीस लेते हैं पर फिर भी हम उनकी कल्याणकारी बातों को मानते हैं क्या? व्रत नियम से हमारा ये भव और परभव दोनों सुखी होने वाले है ये त्याग की शक्ति है। आज मनुष्य के पास समय व समझ दोनों है तो हम उसमें तप-त्याग व साधना आरधना करके अपना जीवन सुधार ले।
उक्त धर्मसभा में घेवरचंद बुरड, बीएल जैन, नंदलाल बुरड, अशोक सखलेचा, सुरेश मित्तल, महेश मित्तल, ओम अग्रवाल, कुलदीप पाटीदार, श्याम गोयल, राजेन्द्र कांकरिया, महावीर सुराणा, दिलीप सुराणा, सुरेश ओस्तवाल सहित अनेक श्रावक श्राविकाएं उपस्थित थे।

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