वित्त आयोग ने समझा खेती, जंगल और जनजाति समाज का आर्थिक महत्व
प्रदेश भरता है देश का पेट, जंगल से होती है पर्यावरण की रक्षा

आशीष यादव धार
केंद्रीय वित्त आयोग ने प्रदेश और देश की अर्थव्यवस्था में मप्र की कृषि, उपजाऊ भूमि, भरपूर उत्पादन, एग्रो इंडस्ट्री और इन सबका मध्यप्रदेश की ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्शन (जीएसडीपी) मैं मजबूत योगदान को समझा। यह सब कुछ संभव हो रहा है प्रदेश की उपजाऊ भूमि, के कारण। प्रदेश की जीएसडीपी मैं खेती किसानी का योगदान 47% है। वित्त आयोग के साथ शुक्रवार को प्रबुद्ध नागरिकों की बैठक हुई। इसमें टैक्स एक्सपर्ट व पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी ने सुझाव रखे। वित्त आयोग से मांग कर बताया मध्यप्रदेश कृषि प्रधान, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और वन तथा वनवासी जनजाति बहुल राज्य है इसलिए यहां जीएसटी और अन्य टैक्स रिवेन्यू का कम संग्रह होता है इस कारण केंद्र की वित्तीय सहायता तुलनात्मक रूप से कम है। हालांकि किसान और मजदूरों के परिश्रम से प्रचुर खाद्यान्न उत्पादन करता है और देश की एक बड़ी आबादी का पेट भरता है लेकिन टैक्स रेवेन्यू तुलनात्मक रूप से कम है। राज्य सरकार कृषि आधारित उद्योगों को कर राहत देती है, इसका असर कर संग्रह पर होता है। स्पष्ट है राजस्व से ज्यादा महत्वपूर्ण खेती-किसानी और उपजाऊ भूमि तथा प्राकृतिक संसाधन है ऐसे में प्रदेश को जो केंद्रीय वित्तीय सहायता मिलनी चाहिए, वह कम है।
प्रबुद्ध वर्ग का सुझाव- प्रदेश को ज्यादा से ज्यादा मिलें वित्तीय संसाधन
आदिवासी पर्यावरण के रक्षक:
बैठक में बताया गया प्रदेश में वन क्षेत्र बड़े भूभाग में फैला है। प्रदेश की कुल आबादी का 21% आदिवासी समुदाय है। यह पूरी तरह खेती और मजदूरी पर निर्भर है। जल-जमीन-जंगल और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण आदिवासी या जनजाति के कारण है। वनवासी छोटी-छोटी कृषि भूमि पर खेती करते हैं। विकास की उल्टी गंगा बहाने के कारण गांव, खेत, किसान और आदिवासी समुदाय समुदाय तेजी से सिकुड़ रहा है बावजूद प्रदेश के जंगल, देश के पर्यावरण की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। डॉ. कोठारी ने कहा खनिजों के भंडार वन क्षेत्र में भी हैं इसलिए उनका दोहन नहीं हो सकता। इस परिस्थिति में राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए केंद्र द्वारा प्रदत्त वित्तीय संसाधनों में वृद्धि होना चाहिए।
सरकार कर रही उपेक्षाः कृष्णपाल:
युवा किसान कृष्णपाल सिंह कहते हैं प्रदेश को स्वर्णिम प्रदेश बनाने की सरकार की कल्पना का आधार प्रदेश की सनातन संस्कृति आधारित खेती-किसानी, गांव और ग्रामीण के साथ यहां की आदिवासी या वनवासी या जनजाति बहुल भोली-भाली मानवशक्ति है। यह सब सरकार, योजनाकारों, नीति और नौकरशाही के लिए गंभीर और महत्वपूर्ण नहीं है। खेती-किसानी और वनवासी प्रदेश के आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के आधारस्तंभ हैं बावजूद सरकारी तंत्र अंग्रेजों की तरह इन्हें निकृष्ट तरीके से देखता है। यही कारण है वित्त आयोग के समक्ष किसानों का प्रतिनिधित्व से नहीं होने दिया गया, सरकार ऐसा हर मामले में करती है। राज्य का कृषि घनत्व 150% है, जो देश में सबसे अधिक है। कृषि और संबंधित क्षेत्रों में वित्त वर्ष 2023-24 में जीएसडीपी में 45.53% का योगदान रहा।
कृषि भूमि हो रही कमः डॉ. पांडे:
कृषि, पर्यावरण व खाद्य सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ और मप्र को खाद्यान्न, खासकर गेहूं उत्पादन में शीर्ष पर पहुंचाने वाले डॉ. एचएन पांडे कहते हैं प्रदेश की उपजाऊ कृषि भूमि और विभिन्न एग्रो क्लाइमेटिक जोन के कारण प्रदेश की भूमि सोना उगलती है। यहां बायोडायवर्सिटी प्रचुर मात्रा में है। इससे अनाज, फल-फूल, सब्जी-भाजी की अनेक किस्में विकसित हो पाई। आधुनिक शहरीकरण और विकास परियोजनाओं के कारण उपजाऊ जमीन कम हो रही है किसान, मजदूर और जनजाति समुदाय विस्थापन और पलायन का शिकार हो रहे हैं। सरकार को चाहिए प्रदेश की कृषि संपदा का संरक्षण करे। उपजाऊ भूमि का रकबा बढ़ाए। कृषि आधारित कुटीर से लेकर बड़े उद्योग ज्यादा लगें, इससे राजस्व में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होगी।
निरंतर बढ़ रहा कृषि उत्पादन
राज्य में खाद्य उत्पादन अच्छी दर से बढ़ रहा है। 2023-24 में दलहन के उत्पादन में 42.62% की वृद्धि हुई, और तिलहन में 7.32%। सब्जियों का उत्पादन 235.41 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 242.62 लाख मीट्रिक टन हो गया। फलों का उत्पादन 95.10 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 95.54 लाख मीट्रिक टन। मध्यप्रदेश देश का सबसे बड़ा जैविक खेती वाला राज्य है। यह सब इसलिए संभव हो पाया कि उपजाऊ भूमि किसानों, मजदूरों और कृषि विशेषज्ञों की मेहनत से भरपूर उत्पादन देती है। कुछ दशकों में खाद्यान्न उत्पादन क्षमता दोगुनी हो गई है। राज्य की प्रमुख खरीफ फसलें सोयाबीन, धान, मक्का, तुअर, मूंग, उड़द, ज्वार, बाजरा, तिल, कपास हैं, जबकि रबी फसलें गेहूं, चना, मटर, मसूर, सरसों, अलसी। मध्यप्रदेश दलहन और तिलहन उत्पादन में क्रमशः 24% और 25% योगदान के साथ देश में पहले स्थान पर है।