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मालवा निमाड़ के जंगलों में है पलाश के पेड़, संरक्षण के लिए नही कोई शासन की योजना।

हलर्बल कर्ल को लेकर प्रशासन को आना चाहिए आगे बसंत ऋतु का आगमन साथ ही पलाश की होती बहार

आशीष यादव धार

बसंत ऋतु की छटा पलाश के फूलों के बगैर नहीं मानी जाती है। कहीं बसंत ऋतु का राजा तो कहीं होली का फूल के नाम से पहचाने जाने वाले पलाश के पेड इन दिनो में फूलों से लदे है। मालवा निमाड़ क्षेत्र के जंगलो में बड़ी मात्रा में पलाश के पेड है, लेकिन इनके संरक्षण को लेकर वन विभाग के पास कोई योजना नहीं है। औषधीय महत्व व हर्बल रंगो के रूप में प्रयोग आने वाले पलाश के संरक्षण को लेकर कोई पहल होती हुई दिखाई भी नहीं दे रही है। इन दिनों पलाश के फूल लोगो को बरबस ही अपनी और आकर्षित कर रहे है। कहा जाता है कि जैसे ही बसंत ऋतु का आगमन होता है तो एक और जहां सभी पेडो के पत्ते गिरने लगते है तो वही दूसरी पलाश के पेड़ पर लाल,सफेद केसरीया रंग के ये फूल खिल रहे है।

खेतो की मेड व जंगल मे हजारो पेड़:
वर्तमान में जंगलो, सड़क मार्गो व खेतों में लगे पेड़ पर ये फूल दीपक की लौ के समान दूर से ही अपनी चमक दिखाते रहते है। इनको अलग अलग क्षेत्रो में उनकी बोलियों में बोलते है जैसे पलाश, परसा, टेसू, किंशक एक ही वनस्पति के नाम है। भारतीय साहित्य और संस्कृति से घना सम्बंध रखने वाले इस वृक्ष का चिकित्सा और स्वास्थ्य से भी गहरा सम्बंध है। बसंत में खिलना प्रारंभ होकर यह वृक्ष गर्मी की प्रचंड तपन में भी अपनी छटा बिखेरता रहता है। पलाश के फूलों को प्राचीन काल में होली के रंगो में प्रयोग किया जाता था, जो त्वचा को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। वहीं से इसे सौंदर्यवर्धक माना जाता है। संरक्षण व बढावा नहीं मिलने के कारण लोगो को इसके उपयोग व लाभों के बारे में भी जानकारी नहीं है।

फूलों से रंग बनाने की विधि विलुप्त:
शासन की और से तेंदुपत्ता को एकत्रित कराने के लिए मजदूरों को लाभांश दिया जाता है, लेकिन पलाश के फूलों को सहेजने व उनका औषधीय उपयोग करने तथा रंग आदि को तैयार किए जाने को लेकर शासन द्वारा कोई भी योजना अभी तक जमीनीस्तर पर नहीं बनाई गई है। जानकारो के अनुसार तेंदूपत्ता की तर्ज पर पलाश के फूलों का संग्रहण कर उनके संरक्षण कर उनके उपयोग किए जाने की बात कही जा रही है। केमिकल रंगो पर प्रतिबंध लगाकर पलाश के फूलों से बने रंगो पर जोर दिए जाने की बात कही जा रही है। आयुर्वेद में पलाश के पांच अंग जड़, तना, फल, फूल और बीज से दवाइयां बनाने की विधियां दी गई है। प्राचीन समय में यह विधि काफी प्रचलित थी, जो अब विलुप्त हो गई है।

रग बना रहे है:
समितियों के माध्यम से विभाग पलाश के फूलों से रंग बनाने का काम करेगा इसका उपयोग होली में होता है इस लिए विभाग इसको बनाने के काम मे लग गया है हर साल पलाश के फूलों से रंगों को बनाकर बाजारों में बेच भी रहे हैं अभी शासन की ओर से योजना नहीं जो पेड वन विभाग की भूमि में होते है। उनकी देख रेख व जिम्मेदारी वन विभाग की ही है। बाकी इनके रखरखाव व संरक्षण के लिए अभी शासन की और से कोई पृथक योजना नहीं है। यह मालवा निमाड़ के जंगलों इसका क्षेत्रफल ज्यादा है
अशोक कुमार सौलंकी डीएफओ धार

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