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धनी देशों में मानवीय गरिमा का हनन गरीब देशों के मुकाबले कम नहीं : डॉ. एवलिन लिंडनर

स्टेट प्रेस क्लब, मप्र के संवाद कार्यक्रम में पहुंची तीन नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित मानवीय गरिमा की एक्टिविस्ट

स्टेट प्रेस क्लब, मप्र के संवाद कार्यक्रम में पहुंची तीन नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित मानवीय गरिमा की एक्टिविस्ट

धनी देशों में मानवीय गरिमा का हनन गरीब देशों के मुकाबले कम नहीं : डॉ. एवलिन लिंडनर

इंदौर। यह गलत धारणा है कि धनी देशों में मानवीय गरिमा का ज़्यादा ध्यान रखा जाता है और विकासशील देशों में कम। विकसित देशों में अपनी गंभीर समस्याएं हैं जैसे अकेलापन और नागरिक प्रसन्न नहीं है।

यह बात स्टेट प्रेस क्लब, मप्र द्वारा आयोजित ‘ संवाद ‘ कार्यक्रम में मानवीय गरिमा के हनन का वैश्विक तुलनात्मक शोध कई दशकों से कर रही रहीं चिकित्सक एवं मनोवैज्ञानिक डॉ. एवलिन लिंडनर ने कही। तीन बार नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित हो चुकी एवलिन ने कहा कि इन नामांकनों से उन्हें जो पहचान मिली उससे उनके अभियान की राह आसान हुई। वे वैश्विक नागरिकता की वकालत करती हैं। उनसे जब पूछा गया कि आज ही गरीब देशों के नागरिक विकसित देशों की नागरिकता प्राप्त करने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार रहते हैं, ऐसे में वैश्विक नागरिकता व्यावहारिक रूप से संभव कैसे होगी ? उन्होंने कहा कि पूंजीवादी विकसित राष्ट्रों में सब कुछ प्रॉफिट से जोड़कर देखा जाता है। इसीलिए वो कुछ अच्छे काम ही हो पाते हैं जिनसे लाभ हो, शेष अच्छे काम रह जाते हैं और इसीलिए मानवीय गरिमा के हनन का स्तर वहां भी काफ़ी ज़्यादा है। हालांकि उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि सोमालिया, मिडिल ईस्ट, इजिप्ट आदि देशों में रहने और ह्यूमन डिग्निटी के लिए काम करने के दौरान ऐसे अवसर भी आए जब उन्हें जर्मनी नॉर्वे की नागरिक होने का लाभ मिला, वहीं कुछ अविकसित देशों के एक्टिविस्टों को तो काम ही नहीं करने दिया गया उल्टे जान से मार देने समेत प्रताड़नाएं दी गईं। उन्होंने कहा कि कुछ विकसित देशों में हर कोई हर किसी से बस लड़ने को उतारू है।

डॉ. लिंडनर मानती हैं कि विश्व के लिए वर्तमान पीढ़ी बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण है। क्योंकि उसके सामने विश्व स्तर पर आपसी भरोसे को बनाने और बनाए रखने की जिम्मेदारी है। इस पीढ़ी के सामने प्राकृतिक संसाधन बहुत दोहन के कारण समाप्त होते जा रहे हैं, वहीं सोशल मीडिया जैसे नए साधन भी हेट मशीन में बदलकर मनुष्य को उल्टा अनसोशल करते जा रहे हैं। वहीं इस पीढ़ी के पास गांधी -मंडेला के विचारों की विरासत है जो पुरखों के पास नहीं है। इसीलिए यह वर्तमान पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वह एकजुटता, स्वतंत्रता और समानता वाला युद्ध मुक्त विश्व बनाए।

संवाद कार्यक्रम से पूर्व स्टेट प्रेस क्लब, मप्र के अध्यक्ष प्रवीण कुमार खारीवाल, संजय मेहता, मीना राणा शाह, अमिता नीरव, अभिषेक बड़जात्या,कृष्णकांत रोकड़े ने डॉ. एवलिन लिंडनर का पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह एवं अंग वस्त्र से सम्मान किया। संवाद कार्यक्रम का संचालन एवं डॉ लिंडनर से सवालों का मुख्य जिम्मा सौंपा संस्कृतिकर्मी श्री आलोक बाजपेयी के पास था। अंत में सुश्री रचना जौहरी ने आभार प्रदर्शन किया।

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