सेंधवा; आदिवासियों की जमीन जो गैर आदिवासियों के कब्जे में हैं उनका सर्वे होकर मूल मालिक को वापस दिलाया जायें।
सेंधवा समाजजनों ने आदिवासी समाज के राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर अजजा आयोग अध्यक्ष आर्य से की मुलाकात
सेंधवा। अजजा आयोग अध्यक्ष आर्य से सोमवार को समाजजनों ने मुलाकात कर आदिवासी समाज के राष्ट्रीय मुद्दों को के निराकरण की मांग की। इस पर आर्य ने उक्त मुद्दों पर त्वरित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया गया। समाजजनों ने मांग की कि आदिवासियों की जमीन जो गैर आदिवासियों के कब्जे में हैं, उनका सर्वे होकर मूल मालिक को वापस दिलाया जायें।
आर्य के निवास पर हुई मुलाकात करीब एक 1 घंटे तक चली। बैठक में सागर खर्ते हाई कोर्ट वकील, सीताराम बर्डे जनपद उपाध्यक्ष, परसराम सेनानी पूर्व जनपद सदस्य एवं मंडी डायरेक्टर, महेंद्र सेनानी जयस जिला उपाध्यक्ष आदि उपस्थित थे।
इन मुद्दों पर की चर्चा-
भारतीय संविधान में आदिवासियो के लिये अनुसूचित जनजाति शब्द का उपयोग किया गया हैं। उसमें संशोधन किया जाकर आदिवासी (मूल मालिक) शब्द का समावेश किया जावे।
संविधान की पाँचवी अनुसूची की धारा-3 के तहत् अनुसूचित क्षेत्रों के संबंध में राज्यपाल द्वारा आदिवासियों की समस्यओं एवं अधिकारों एवं स्थिति को लेकर राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष वार्षिक प्रतिवेदन या जब भी राष्ट्रपति अपेक्षा करें, भेजने का बाध्यकारी प्रावधान परिभाषित किया गया है। किन्तु दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के 75 वर्ष के बाद भी आज तक किसी भी राज्य के राज्यपाल द्वारा आदिवासियों की स्थिति को दर्शानें वाला प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया। इस संबंध में अनिवार्य रूप से प्रतिवर्ष प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाये।
किसी एक प्रदेश में आरक्षित आदिवासी व्यक्ति को देश के सभी राज्यों में आदिवासी का ही दर्जा दिया जाकर उनको आदिवासी होने के नाते मिलने वाले समस्त प्रकार के संवैधानिक अधिकार व लाभ मिलना चाहिये।
आदिवासी क्षेत्रों में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट अनावश्यक स्थापित न किए जायें। यदि देश हित में करना पड़े तो विस्थापितों को पुनः बसाहट उन्हीं इलाकों में किया जाये, ताकि उनकी आदिवासियत बची रहें।
आदिवासी की जमीन यदि किसी भी प्रयोजन से अधिग्रहित की जाती है तो उससे होने वाले लाभ में से कम से कम 25 प्रतिशत राशि उसे पीढ़ी दर पीढ़ी रायल्टी के रूप में मिलती रहें।
वनाधिकार मान्यता कानून, 2006 के तहत प्रस्तुत सामुदायिक दावों का समय सीमा में पारंपारिक सीमांकन किया जाकर संबंधित ग्राम सभा को तुरंत सामुदायिक अधिकार पत्र प्रदान किया जाए।
व्यक्तिगत दावों एवं सामुदायिक दावों को लेकर कानून सरकारी विभाग जैसे- वन विभाग, पंचायत विभाग व राजस्व विभाग द्वारा अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न की जाकर भ्रष्टाचार किया जाता है, इस पर तुरंत रोक लगाई जाये। साथ ही इन विभागों के कर्मचारी-अधिकारियों को उक्त कानून के संबंध में प्रशिक्षित भी किया जाये।
प्रशासन में आदिवासियों का उचित प्रतिनिधत्व रहे इस हेतु सरकारी भर्तियों में जनसंख्या के अनुपात में पदों की संख्या आरक्षित रहे। सेवा में आने के बाद आदिवासी समाज के कर्मचारी / अधिकारियों के प्रति भेदभाव न किया जाये।
भारतीय संविधान के अनुछेच्द 342 के तहत् बनाई गई अनुसूची कुछ जातियां अभी भी शामिल होने से छूट गई है। वह वास्तविक रूप से आदिवासी है और आदि अनादिकाल से भारत देश के मूलवासी है, उन्हे सर्वे व परीक्षण कर अनुसूची में शामिल किया जाये और जो वास्तविक रूप से आदिवासी नहीं है उन्हे गलत ढंग से अनुसूची में शामिल कर लिया गया है उन्हे हटाया जाये।
सयुक्त राष्ट्र संघ जैसे अति महत्वपूर्ण वैश्विक संगठन के जिस प्रस्ताव के तहत 9 अगस्त को प्रति वर्ष विश्व आदिवासी दिवस के रूप में मनाया जाना तय हुआ हैं, उस प्रस्ताव पर भारत सरकार द्वारा आज तक हस्ताक्षर नही किये गए हैं। भारत सरकार उस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना सुनिश्चत करें एवं 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाये तथा 09 अगस्त को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा भी करवायें।
आदिवासियों से संबंधित विभाग, संस्था, निकाय, आयोग एवं उपक्रम आदि में कार्यपालिक पदो पर आदिवासी व्यक्ति की ही नियुक्ति होना चाहिये।
गैर आदिवासी पुरुष द्वारा आदिवासी महिला के साथ विवाह कर उस महिला को मिलने वाले आदिवासी पारंपारिक एवं संवैधानिक लाभ का दुरूपयोग किया जाता है। अतः यदि कोई गैर आदिवासी पुरूष आदिवासी महिला से शादी करता है, तो उस महिला को आदिवासी होने के नाते मिलने वाले पारंपारिक एवं संवैधानिक हक अधिकारों से वंचित किया जाना चाहिए।
देश के सभी राज्यों में फर्जी व कूटरचित जाति प्रमाण-पत्र बनवाकर आदिवासी समाज को मिलने वाले आर्थिक एवं संवैधानिक लाभ अन्य लोगो के द्वारा गलत ढंग से उठाया जा रहा है। इस पर रोक लगाने हेतु राज्य स्तर पर उच्च स्तरीय छानबीन समिति बनाई गई है जबकि जाति प्रमाण-पत्र की छान-बिन समिति प्रत्येक जिला मुख्यालय पर होना चाहिए, जो नहीं है।
प्राथमिक शिक्षा, संबंधित क्षेत्र के लोगों की मातृभाषा में दी जाये एवं शैक्षणिक संस्थाओं के पाठ्यक्रमों में आदिवासियों का इतिहास,
संस्कृति, कला, संगीत, ज्ञान व वीर पुरुषों की जीवनियों को अनिवार्य रूप से शामिल किया जावें।
आदिवासी सलाहकार परिषद् का अध्यक्ष गैर आदिवासी व्यक्ति (मुख्यमंत्री) न होकर आदिवासी व्यक्ति को ही बनाया जाना चाहिए।
आदिवासी उपयोजना में संवैधानिक प्रावधान के तहत् आवंटित बजट का उपयोग गैर आदिवासी मदों में कदापि ना हो। नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के विरूद्ध अनुशासनात्मक एवं दण्डात्मक कार्यवाही किये जाने का प्रावधान किया जाना चाहिए।