सेंधवा; हमारा मूल स्वभाव स्वयं को देखने का है, दुसरो की पंचायती करना हमारा मूल स्वभाव नहीं है
सेंधवा। आज हम दुसरो की पंचायती में लगे हुए है। हम स्वयं का आकलन नहीं कर रहे है। हम क्या है ? कैसे है? हमें केवल दुसरे क्या कर रहे है, कैसे है यह आकलन करने में लगे है, पर ज्ञानीजन फरमाते है कि यह हमारी विभाव दशा है।
ये विचार रविवार को देवी अहिल्या मार्ग स्थित जैन स्थानक में ज्ञानगच्छाधिपति प्रकाशचंद जी म.सा के आज्ञानुवरती नरेशमनुीजी म.सा ने व्यक्त किये आपने कहा हमारा मूल स्वभाव स्वयं का देखने का है दुसरो की पंचायती करना यह हमारा मूल स्वभाव नहीं है। आपने कहा कि देखने के लिए 2 चीजे है। दुरबीन व दर्पण, दुरबीन से हम दुसरो को देखते है जबकि दर्पण मे स्वयं को देखते है । आज हम दुरबीन से केवल यह देखने में लगे है कि ये ऐसा है वो वैसा है पर कभी दर्पण में यह देखा है कि हम कैसे है ? ज्ञानीजन फरमाते है कि हमारा दुसरो को देखने का प्रयास बहुत हुआ अब हमें स्वयं को देखकर जीवन परिवर्तन करना है। आज स्थित यह है कि आज हमने जेा दुरबीन लगा रखी है जिसमे हम केवल दुसरो को बुरा देखते है ओर हम स्वयं को होशियारचंद ओर दुसरो का मुर्खचंद समझते है पर ज्ञानीजन फरमाते है कि अब भी समय है हम स्वयं को दर्पण मे देखे ओर अपने आप मे परिवर्तन करे क्योकि ये मनुष्य हमें केवल दुसरो की पंचायती के लिए नही मिला है स्वयं के जीवन का चिंतन कर उसका प्रमोशन करने के लिए मिला है।
आपने कहा कि आज हम धर्म अपनी अनुकुलता से कर रहे है या दृढता से यह विचारणीय है ? जब भी हमारे जीवन में परिक्षा का समय आता है तो कहि हम धर्म से विमुख तेा नही हो जाते है या धर्म विरूद्ध आचरण तेा नही करते है यह चितंन करे। यदि हमें जीवन की परिक्षा मे सफल हेाना है तेा धर्म से विमुख कभी नही होना है।