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राज्य परिवहन निगम का संचालन मामले में उच्च न्यायालय ने राज्य एवं केन्द्र सरकार को सूचना पत्र जारी किया,सेंधवा के सामाजिक कार्यकर्ता जैन की जनहित याचिका पर सुनवाई

सेंधवा। प्रदेश की आम जनता को आवागमन की बेहतर सुविधाऐं देने के लिए प्रदेश मे पुनः राज्य परिवहन निगम का संचालन किया जाना चाहिये। इस मुद्दे को लेकर उच्च न्यायालय इंदौर की बेंच पर आज हुई सुनवाई के पश्चात् न्यायालय द्वारा राज्य एवं केन्द्र सरकार को सुचना पत्र जारी कर 6 सप्ताह में जवाब तलब किया है।*
उक्त निर्देश उच्च न्यायालय इंदौर के न्यायमुर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी एवं न्यायमुर्ति बी.के. द्विवेदी द्वारा सेंधवा के सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता बी.एल. जैन द्वारा 14 अगस्त 2024 को प्रस्तुत की गई जनहित याचिका की सुनवाई पश्चात् दिए है। सुनवाई पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक तुगनावत द्वारा न्यायालय को बताया गया कि जब से राज्य परिवहन निगम प्रदेश मे बंद हुआ है तब से आम नागरिको को आवागमन मे भारी कठिनाई उठाना पड़ रही है। आवागमन के साधन नही होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रो मे आज भी माल वाहनो मे तीस से चालीस यात्री बैठ कर यात्रा करते है इस कारण अनेको बार दुर्घटनाओं मे सैकड़ो लोगो की मौत हो चुकी है लेकिन इस गंभीर मामले पर शासन सजग नही है। जबकि लोकतांत्रिक सरकार का दायित्व होता है कि आम नागरिक को शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन जैसी मुलभुत सुविधाऐं उपलब्ध करवाऐं। आम नागरिक को ये सुविधाऐं पाने का मौलिक अधिकार भी है। याचिकाकर्ता द्वारा न्यायालय को अवगत कराया गया कि म.प्र. राज्य सड़क परिवहन निगम का गठन सड़क परिवहन निगम अधिनियम 1950 के तहत् दि. 01.06.1962 को किया गया था निगम के गठन का मुख्य उद्देश्य यात्रियों को सस्ती एवं सुलभ आवागमन सुविधाऐं उपलब्ध कराना, प्रदेश के दुरस्थ एवं पिछड़े क्षेत्रो मे पर्याप्त बस सेवाऐं उपलब्ध कराना तथा परिवहन क्षेत्र मे सार्वजनिक उपक्रम की भागीदारी सुनिश्चित कराना था। जानकारी अनुसार 31 मार्च 2004 की स्थिती मे निगम की कुल संचित हानि रू. 735 करोड़ की है, निगम की देनदारियां 1033.68 करोड़ की है। निगम के कर्मचारियों का वेतन भविष्यनिधी आदि के देनदारियां 183.87 करोड़ की है।
सुचना अधिकार अधिनियम के तहत् प्राप्त जानकारी के अनुसार निगम की वर्तमान दुर्दशा के प्रमुख कारणो मे भारत सरकार एवं म.प्र. शासन द्वारा पुर्व मे जो वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती थी वह वर्ष 1995.96 से बंद कर दी गई है। फलस्वरूप निगम को अपनी बसो का बेड़ा बढाने या बदलने के लिए सहायता प्राप्त नही हुई एवं बाजार से उच्च दरो से ऋण लेने के कारण यह हालात बने, आवश्यकता से अधिक कर्मचारियों की अधिकता निजी एवं परिवहन निगम की मिश्रित परिवहन संचालन व्यवस्था, कर्मचारियो मे व्यवसायिक दक्षता एवं प्रशिक्षण का अभाव, पुरानी बसो की अधिकता, सड़को की दयनीय स्थिती, अधिक ब्याज दरो पर ऋणो की प्राप्ति, किराया वृध्दि समय पर ना होना, निशुल्क एवं रियायती दर पर पासो की जारी किया जाना, समय पर वेतन का भुगतान नही होना ऐसे अनेक कारण है जिसके कारण म.प्र. राज्य परिवहन निगम की ऐसी दुर्दशा हुई। म.प्र. शासन के मंत्री परिषद द्वारा दिनांक 18.02.2005 से म.प्र. सड़क परिवहन निगम को परिसमापन करने का प्रस्ताव अनुमोदनार्थ भारत सरकार नई दिल्ली को भेजा गया। उक्त कारण राज्य परिवहन निगम द्वारा दी गई जानकारी मे दर्षाऐ गए है जो तात्कालिन केबिनेट के समक्ष संक्षेपिका के रूप मे रखे गए थे। स्पष्ट है शासन की प्रबंधन की कुव्यवस्था का परिणाम आज आम नागरिको को भोगना पड़ रहा है जबकि केरल और महाराष्ट्र राज्य वर्तमान मे परिवहन निगम के मॉडल राज्य बने हुए है। केरल मे तो हर रूट पर लक्जरी बसे चलती है और वहां के परिवहन निगम को मुनाफा भी अच्छा होता है तो फिर म.प्र. मे केरल राज्य के मॉडल पर इसका पुनः संचालन क्यों नही प्रारंभ किया जा सकता है ? सुनवाई पश्चात् न्यायालय द्वारा म.प्र. शासन के मुख्य सचिव एवं प्रमुख सचिव परिवहन विभाग, प्रबंध संचालक म.प्र. सड़क परिवहन निगम एवं सचिव सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय भारत सरकार को सुचना पत्र जारी कर जवाब तलब किया है। प्रदेश शासन की ओर से अतिरिक्त महाअधिवक्ता श्री आनंद सेानी ने पैरवी की।

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