जैसे कर्म हम करेंगे वैसे फल भौगना ही पडेंगे, पर्युषण पर्व के चौथे दिन स्वाध्यायी बहन श्रीमती लीलाबाई सालेचा ने दिए प्रवचन
सेंधवा। हमारे जीवन मे आने वाले दुख का मूल कर्म है और उन कर्मो का मूल हमारा राग द्वेष की प्रवृत्ति है। कर्म किसी के साथ पक्षपात नही करता है, स्वयं भगवान को भी अपने पुर्व भवो में किये गये कर्मो को भोगे बिना छुटकारा नहीं मिला था। कर्म का यही सिद्धान्त है जैसे कर्म हम करेंगे वैसे फल भौगना ही पडेंगे। सुख-दुख का कर्ता एवं भोगता स्वयं जीव ही होता है।
ये विचार आज देवी अहिल्या मार्ग स्थित जैन स्थानक में स्वाध्यायी बहन श्रीमती लीलाबाई सालेचा ने पर्युषण पर्व के चौथे दिन व्यक्त किये आपने कहा कि अशुभ कर्मेा का उपार्जन मत करो क्योंकि जब इन अशुभ कर्मेा का फल मिलेगा तो हमें रोते-रोते भोगना पडेगा। अच्छे कर्म का फल अच्छा और बुरे कर्म का फल बुरा यह वाक्य हम अनेको बार सुन चुके पर ज्ञानी जन फरमाते है कि इस वाक्य को जीवन का सुत्र बना लेना चाहिए। कर्म का साम्राज्य बडा निराला है, जैसे-जैसे हमारे भीतर राग द्वेष, काम, क्रोध की भावना जाग्रत होती है वैसे-वैसे हमारे कर्म बन्ध स्वयं होते जाते है, ओर यही कर्म बन्ध हमारे दुख का मुल कारण है, इसलिये हमें कर्म का अस्तित्व स्वीकार करना ही होगा।
आपने कहा कि कर्म बन्ध में सावधान रहें ओर कर्म उदय के समय समभाव मे रहें ओर जब तक कर्म उदय में है तब तक साधना में रहें। यदि हम कर्म उदय के समय विचलित होते है तो ओर अधिक अशुभ कर्मो का बन्ध करते है। जो महापुरूष होते वे अनुकुलता में हर्षित नहीं होते ओर प्रतिकुलता में उदास एवं उद्वेलित नहीं होते है उसी प्रकार हमे भी प्रतिकुल समय में मानसिक सन्तुलन बनाये रखना है तभी हम नये अशुभ कर्मबन्ध से बच पायेगें ।
आज धर्मसभा में बडी सख्ंया में श्रावक-श्राविकाएं मौजुद रहे है आज 5 उपवास के पच्खान परेश सेठिया साथ ही बडी संख्या में उपवास आदि व्रत के पचखाण हुवे।