बड़वानी; पर्यावरण पखवाड़े पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन
बड़वानी; प्राचार्य डॉ. वंदना भारती के मार्गदर्शन में 13 जून को शासकीय कन्या महाविद्यालय बड़वानी में पर्यावरण पखवाड़ा के अवसर पर आज महाविद्यालय परिसर में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला की संयोजक के रूप में प्रो. सीमा नाईक रही एवं सह संयोजक डॉ. प्रियंका देवड़ा रही।
कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. भूपेन्द्र भार्गव रहे इन्होंने छात्राओं को संबोधित करते हुये कहा कि पर्यावरण संरक्षण आज मानव जीवन के लिये अत्यंत आवश्यक हो गया है। पहले पर्यावरण में माँ नर्मदा को नर्मदा सागर के रूप में जाना जाता था। जबलपुर के भेड़ाघाट व सतपुड़ा के पर्वत पहले नर्मदा नदी के अन्दर हुआ करते थे। इसलिये नर्मदा को नर्मदा सागर कहा जाता था। आज पीने योग्य 02 प्रतिशत पानी ही रह गया है। समुद्र का 97 प्रतिशत जल पीने योग्य नहीं है। पेड़ो की कटाई दिन-प्रतिदिन हो रही है। जिसके कारण हमारा पूरा पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। हमे पर्यावरण प्रेमी बनकर रहना चाहिये, क्योंकि भारतीय संस्कृति में नदियों को माता का दर्जा दिया गया है। माँ नर्मदा, माँ गंगा इन नदियों का हमारी संस्कृति में बहुत अच्छे से वर्णन किया गया है। यह केवल हमारी ही संस्कृति में है। जब हम पेड़ काटते है तो जल भाजक क्षेत्र कम होता जाता है और नदियों में पानी की कमी देखने को मिलती है। आज का मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पेड़ो की कटाई करते है, वन्य प्राणी का शिकार करते है मृदा संसाधन, जल संसाधन व खनिज संसाधन को खत्म करते जा रहे है। हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते जा रहे है। जबकि इन सब में नुकसान हमारा ही है। हमने किताबों में पढ़ा है कि पहले डायनासोर हुआ करते थे जो कि अब विलुप्त हो गये है। प्रकृति शक्तिशाली है वो तो स्वयं को बचा लेगी क्योंकि प्रकृति का अंत में संतुलन होगा ही। प्रकृति ने डायनासोर को विलुप्त कर दिया है और संतुलित हो गई है। अब मानव प्राकृतिक संसाधनों का विनाश करता जा रहा है। प्रकृति फिर से संतुलित होगी। यदि हम मनुष्य प्रकृति के इस संतुलन को बनाये रखे तो शायद हम स्वयं के विनाश से बच सकते है। अभी मनुष्य का युग है यदि मनुष्य नहीं समझेगा तो वह संकट से कभी उभर नहीं पायेगा। आज कही भूकंप कही, बाढ़, कही सूखा पड़ रहा है।
ये सब प्रकृति से छेड़खानी करने का नतीजा है। इस संकट से बचने के लिये आज प्रत्येक व्यक्ति का पर्यावरण पढ़ना अनिवार्य हो गया है। हर कोई विद्यालय महाविद्यालय में पर्यावरण विषय पढ़ तो रहा है किन्तु उसे आत्मसात कोई नहीं कर रहा है। हम पर्यावरण को महत्व दें केवल एक पेड़ लगाये और उसी की देखभाल करें तो हमारा पर्यावरण संतुलित हो जायेगा। यदि आप अपने जीवन खुशहाल रखने की योजना बनाते है तो आप अपने खेतो में चावल लगा दीजिये यदि आप 10 साल की योजना बनाते है तो पेड़ लगा दीजिये और यदि आप सालो साल प्रकृति को कुछ देना चाहते है तो पर्यावरण के प्रति खुद भी जागरूक हो जाईये और दूसरों को भी जागरूक कर दीजिये।
प्राचार्य डॉ. वंदना भारती ने पर्यावरण दिवस के महत्व को समझाते हुये कहा कि हम सभी को प्रकृति से प्रेम करना चाहिए एवं औषधीय पौधे लगाना चाहिये, जिससे हम प्राकृतिक रूप से स्वस्थ्य जीवन शैली अपना सकें।
वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. एनएल गुप्ता ने कहा कि पर्यावरण के बिना जीवन संभव नहीं है। आज हमारी पृथ्वी हर व्यक्ति की जरूरत को पूरा करने के लिये पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराती है लेकिन आज हर व्यक्ति की आवश्यकता बढ़ती जा रही है और अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। उन्होने छात्राओं को संबोधित करते हुये कहा कि पेड़ हमारी कई आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ हमारे जीवन के लिये भी महत्वपूर्ण है आप सभी को अपने घरों के आसपास एवं महाविद्यालय परिसर में पेड़ लगाना चाहिये एवं उनकी देखरेख करना चाहिये।
इस अवसर पर महाविद्यालय के डॉ. दिनेश सोलंकी, डॉ. महेश कुमार निंगवाल डॉ. अंकिता पागनिस, डॉ. शोभाराम वास्केल, डॉ. पदमा आर्य, श्रीमती रेखा बिसेन, श्री अरशद खान, प्रो. प्रियका शाह श्री कृष्णु यादव, श्री संदीप दासौंधी सहित समस्त स्टॉफ उपस्थित थे।