धुमधाम से मना भगोरिया पर्व, सांसद ओर विधायक ने दी बधाई

भीकनगांव से दिनेश गीते.
सत्याग्रह लाइव, भीकनगांव:- आदिवासियों का लोकपर्व भगोरिया मंगलवार को भीकनगांव मे बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया गया। भगोरिया हाट में जहां हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी क्षेत्रीय विधायक झूमा सोलंकी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ ढोल मांदल लेकर रेली निकाली तथा आदिवासी जनजाति समुदाय के लोगों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई तथा लोकपर्व भगोरिया की बधाई दी तो वहीं क्षैत्रीय भाजपा सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल ने भी भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ भगोरिया हाट में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जहां वह आदिवासी वेशभुषा में तीर-कमान लेकर आदिवासी भाईयो के साथ ढोल मांदल पर थिरकते नजर आये। जनपद अध्यक्ष सरदार रावत भी इस दौरान उनके साथ रहे। भगोरिया हाट में लगी दुकानों से आदिवासी भाईयो ने गुड़ की जलेबी ओर भजिये का खूब लुत्फ उठाया साथ ही युवक युवतियां झुलो का आनंद लेते नजर आये। हालांकि लोकसभा चुनाव की आदर्श आचरण संहिता लागू होने के चलते डीजे साउण्ड आदि प्रतिबंधित होने के चलते बड़े ही शांतिपुर्ण तरीके से भगुरिया पर्व मनाया गया। जनपद अध्यक्ष सरदार रावत ने बताया कि जनजाति समुदाय के रिति-रिवाज, परंपराओ, भाषा-बोली, वेषभूषा सहित रहन-सहन को संजोए रखने का संदेश देने वाला यह भगोरिया पर्व आदिवासी समाज का मुख्य त्यौहार है।





मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्रो विशेषकर धार, झाबुआ,खरगोन,बड़वानी तथा अलीराजपुर जिलो में विशेष रूप से मनाया जाता है। होली के मौके पर आदिवासी बहुल इलाको में 8 दिनों तक लगने वाले भगौरिया पर्व का नजारा आज भी देखने को मिलता है जिसमें आदिवासी युवक युवतियां अपनी पारंपरिक वेशभूषा में सज-धजकर बाजार हाट में परिवार सहित इक्ट्ठा होते हैं । जहां प्यार, शादी, व्यापार, सामाजिक सद्भाव के अलग-अलग रूप देखने को मिलते हैं। आदिवासी परिवारों में ये परंपरा कई साल से चली आ रही है और इसका मतलब भी बाकी जगहें के होली के त्योहार मनाने से काफी अलग ही होता है।
साढ़े चार सौ साल पुराना है भगोरिया पर्व का इतिहास
इतिहासकारो के अनुसार लोक संस्कृति के इस उत्सव भगोरिया का इतिहास करीब साढ़े चार सौ साल पुराना बताया जाता है। झाबुआ जिले के छोटे से गांव भगोर जिसे भृगु ऋषि की तपोस्थली कहा जाता है। वहां से यह पर्व शुरू होकर ये आदिम उल्लास का उत्सव मालवा में रतलाम तक तो निमाड़ में कुक्षी, बड़वानी से लेकर खरगोन तक पहुंच गया। इस तरह से भगोरिया उत्सव का शुभारंभ हुआ।
राजा भोज ने की भगोरिया पर्व की शुरुआत
भगोरिया महोत्सव आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। मान्यता है कि भगोरिया पर्व की शुरुआत राजा भोज ने शुरू की थी। उस समय दो भील राजा कासूमरा और बालून ने अपनी राजधानी में भगोर मेले का आयोजन किया था। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, तभी से ही इस हाट और मेले को भगोरिया कहने का चलन बन गया।
कैसे होती है आदिवासी युवक युवतियो की शादी !
भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सज-धजकर अपने भावी जीवनसाथी को ढूंढ़ने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो इसे समझा जाता है कि लड़की ने हां कर दी है। फिर लड़का लड़की को लेकर भगोरिया हाट से ही भाग जाता है और दोनों शादी कर लेते हैं। इसी तरह अगर युवक, युवती के गालों पर गुलाबी रंग लगा दे और जवाब में लड़की भी उसके गाल पर गुलाबी रंग लगा दे, तो भी यह रिश्ता तय माना जाता है।
क्या होता है भगोरिया….?
कई लोगों की यह मान्यता है कि भगोरिया का अर्थ है भाग कर शादी करना। हालांकि हाल ही के वर्षों में शिक्षित युवाओं ने भगोरिया के माध्यम से शादी के चलन को नकारना शुरू कर दिया है। इसका मुख्य कारण आदिवासी जनजाति समुदाय में शहरी बदलाव का होना है।
