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प्रकृति एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए शहर को हरा-भरा बनाने हेतु गीता भवन में हजारों श्रद्धालुओं ने ली शपथ

अ.भा. गीता जयंती के 66वें महोत्सव में आज सुबह गीता जयंती पर 18 अध्यायों का सामूहिक पाठ – जगदगुरू शंकराचार्य आएंगे

इंदौर, संसार के भौतिक सुखों की होड़ में हमने प्रकृति को भी दूषित-प्रदूषित करने के अनेक संसाधन जुटा लिए हैं। हमने चौराहों को पीकदान और सड़कों को डस्टबीन समझ लिया है। पर्यावरण, परमात्मा द्वारा सृजित प्रकृति का साफ-सुथरा और प्रदूषण मुक्त स्वरूप है। पोलीथीन एवं प्लास्टिक के उपयोग से लेकर अपने नदी-नालों को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए हमें संगठित और सामूहिक प्रयास करना होंगे। प्रदूषण मुक्त शहर की स्थापना के लिए हमें अपने शहर को हरा-भरा बनाने की जरूरत है। इस दिशा में हम पर्यावरण की शुद्धता के लिए हर आंगन में कम से कम एक पौधा तुलसी या पीपल का लगाने का संकल्प लेते है।

अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य, जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज ने अ.भा गीता जयंती महोत्सव की धर्मसभा में मौजूद हजारों भक्तों को पर्यावरण संरक्षण एवं प्रकृति की पूजा की शपथ दिलाते हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए।सत्संग सत्र का शुभारंभ डाकोर के स्वामी देवकीनंदन दास के प्रवचनों से हुआ। सत्संग सभा में उज्जैन से आए स्वामी परमानंद सरस्वती, हरिद्वार से आए स्वामी श्रवण मुनि, नैमिषारण्य से आए स्वामी पुरुषोत्तमानंद, जोधपुर से आए रामस्नेही संत हरिराम शास्त्री, महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती, जीवन प्रबंधन गुरू पं. विजय शंकर मेहता, शकरगढ़ राजस्थान से आए महामंडलेश्वर स्वामी जगदीशपुरी महाराज ने भी अपने प्रेरक विचार व्यक्त किए। गीता भवन ट्रस्ट की ओर से अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, कोषाध्यक्ष मनोहर बाहेती, संरक्षक ट्रस्टी गोपालदास मित्तल, न्यासी मंडल के दिनेश मित्तल, टीकमचंद गर्ग, संजीव कोहली, हरीश माहेश्वरी, महेशचंद्र शास्त्री, प्रेमचंद गोयल, पवन सिंघानिया, राजेश गर्ग केटी ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। वरिष्ठ समाजसेवी सुरेश-मृदुला शाहरा, पं. कृपाशंकर शुक्ला, किशोर गोयल, देवेन्द्र मुछाल सहित अनेक धार्मिक-सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। मंच का संचालन स्वामी देवकीनंदन दास ने किया।

संतों के प्रवचन* – जोधपुर से आए रामस्नेही संत हरिराम शास्त्री ने कहा कि गीता ऐसा आध्यात्मिक, धार्मिक और वैज्ञानिक आधार वाला धर्मग्रंथ है, जिसमें प्रत्येक श्लोक में गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। आज आपाधापी भरे जीवन में हम पद, पैसे व प्रतिष्ठा के पीछे दौड़ की प्रतिस्पर्धा में जुटे हुए हैं। इसके बावजूद बहुत कुछ पाकर भी हमें अभी बहुत कुछ पाना बाकी है। जीवन में हमने शुरुआत कुछ पाने से की, फिर कुछ-कुछ, उसके बाद बहुत कुछ और अंत में सब कुछ पाने की कामनाओं ने हमें अपने लक्ष्य से भटका दिया है। गीता हमें बहुत कुछ के दायरे से बाहर निकालती है। हम भौतिक साधनों की चकाचौंध में अपने परमात्मा से ही दूर होते जा रहे हैं। जिस दिन हम परमात्मा से नहीं, परमात्मा को प्राप्त कर लेंगे, उस दिन हमारी सारी समस्याओं का समाधान भी हो जाएगा। महामंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती ने कहा कि गीता में मानवीय मन की सभी समस्याओं का समाधान शामिल हैं। हम सबके मन का एक ही प्रश्न है – मन नहीं लगता। यह मन नहीं लगना ही हमारी सभी समस्याओं की जड़ है। दरअसल मन अति चंचल होता है। मन की चंचलता से ही हम दुनिया के सारे काम संपन्न कर लेते हैं, लेकिन जब मन अति चंचल हो जाता है, तब इसे वश में करने के लिए अभ्यास की जरूरत होती है। मन को तैयार करने के लिए साधना की जरूरत होती है। बिना साधना के जीवन में कुछ नहीं मिलता। गीता साधना का मार्ग प्रशस्त करती है, जो लोग धर्म के साथ जीते हैं, धर्म भी उनकी रक्षा करता है। प्रख्यात जीवन प्रबंधन गुरू पं. विजय शंकर मेहता ने कहा कि गीता-भागवत और अन्य तमाम धर्मग्रंथ हम बरसों से सुनते आ रहे हैं। गीता सुनते-सुनते 66 वर्ष हो गए हैं, लेकिन सवाल यह है कि इतने बरसों में हमने क्या कुछ बदलाव महसूस किया है। संतों की वाणी में जीवन को बदलने की ताकत होती है। भगवान राम ने बाली के मामले में क्रोध और प्रेम के बीच अदभुत संतुलन बनाया है। हम सबको भी अपने जीवन में गृहस्थी की गाड़ी चलाने के लिए इसी तरह के संतुलन की जरूरत है। गीता के दसवें अध्याय में भगवान कृष्ण ने स्वयं राम के इस स्वरूप का चित्रण किया है। आने वाले समय में ‘कृत्रिम बुद्धिमता’ के कारण अनेक सामाजिक विकृतियां हमारे सामने आ सकती हैं। हमने देह को सबसे ऊपर मान लिया है। आज इंदौर में भी नाइट कल्चर के नाम पर सैकड़ों बच्चों को हम रात को सिगरेट और शराब पीकर बाइक की सवारी करते देखते हैं तो शर्म आ जाती है। यह सब वासनाओं के थपेड़ों में फंसे हुए बच्चों के कारण हो रहा है। शरीर तो किसी का भी बचने वाला नहीं है। आत्मा ही हमारे साथ जाएगी। स्वयं से स्वयं को जानना भी एक कला है। हम इन सभी संसाधनों के चलते खुद से दूर होते जा रहे हैं। जीवन मुस्कुराने के लिए मिला है। आज का मानव सत्संग में भी ऐसे आकर बैठता है, जैसे किसी तेरहवीं में आकर बैठा हो। मुस्कुराहट कई बीमारियों की दवा है। यहां बैठे 90 प्रतिशत लोगों की आरएसी तैयार है, कभी भी कनफर्म होकर उन्हें ऊपर भेज देगी। ऊपर भी मुस्कुराते हुए लोग अच्छे लगते हैं। भगवान ने हमें मुस्कुराने की पात्रता दी है तो जरा मुस्कुराइए… अहंकार और भगवान के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। अहंकार बड़ी बारीकी से प्रवेश करता है। प्रशंसा भी अहंकार का प्रवेश द्वार है। याद रखें कि तारीफ करने वाले लोग ही हमें अहंकार के रास्ते पर आगे बढ़ाते हैं। अहंकार से बचने के लिए प्राणायाम तो एक तरीका है ही, अपनी सांसों को भी विचार शून्य बना लेना चाहिए। मन को अपनी इंद्रियों सहित व्यवस्थित बनाने के लिए गीता में अनेक उपाय बताए गए हैं। हमारे बच्चों को देहाभ्यास से ऊपर उठकर जीवन जीना सिखाने की जरूरत है।

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