गंगा नोतय छथि यमुना के, हम नोतय छी भाई केँ; जाबे गंगा–यमुना केँ धार बहय, हमर भायके औरदा बढ़य”।
मैथिल समाज की महिलाओं ने भरदुतिया पर्व मनाया।

“गंगा नोतय छथि यमुना के, हम नोतय छी भाई केँ; जाबे गंगा–यमुना केँ धार बहय, हमर भायके औरदा बढ़य”।
इंदौर। “गंगा नोतय छथि यमुना के, हम नोतय छी भाई केँ; जाबे गंगा–यमुना केँ धार बहय, हमर भायके औरदा बढ़य”। मैथिली भाषा के इस मंत्र को पढ़ते हुए आज शहर में रहने वाली मैथिल समाज की महिलाओं, बालिकाओं ने भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक भरदुतिया' पर्व में अपने भाइयों को नोत कर उनके दीर्घायु होने की कामनाएं कीं। भाई दूज का पर्व मैथिल समाज में
भरदुतिया’ के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व पर शहर में रहने वाले सैंकड़ों मैथिल एवं पूर्वोत्तर भारतीय परिवारों में सुबह से ही घर की साफ़ सफाई की गयी। बहनों ने अपनी भाइयों के लिए मिथिला में प्रचलित तरह के व्यंजन,पकवान बनाया। उसके पश्चात स्नान, पूजा आदि से निवृत होकर चावल के आटा से बने घोल से अरिपन बनाया जिसपर बैठकर भाइयों ने अपनी बहनों से न्योता लिया
तुलसी नगर निवासी शारदा झा ने भरदुतिया के महत्व को समझाते हुए कहा कि भरदुतिया के दिन सुबह सबेरे उठकर बहन या फिर घर की बड़ी सदस्य अरिपन देती हैं। मिट्टी के बरतन जिसे मैंथिली में मटकुरी कहा जाता है उसमें मे पाँच पान का पत्ता, पाँच सुपारी ,(कोहरा ), कुम्हर के फूल ,चाँदी का सिक्का ,ओकुरी आ मखान रखी जाती है । साथ ही पीतल या फूल के लोटा जल) रखा जाता है । चावल का आटा (पीठार) और सिंदुर रखी जाती है । अरिपन दिए हुए पीढि़ पर भाई को बिठाया जाता है । बहन पीठार और सिंदुर से भाई को टीका लगाती है । हाथ में पीठार लगाकर बहन अपने भाई के हाथ में मिट्टी के बरतन में जो कुछ भी रखा रहता है वो सबकुछ रख देती है और हाथ पर (जल) पानी देते हुए मंत्र पढ़ती हैं – “गंगा नोतय छथि यमुना के, हम नोतय छी भाई केँ
जाबे गंगा–यमुना केँ धार बहय, हमर भायके औरदा बढ़य” । इस प्रक्रिया को तीन बार दुहराया जाता है तत्पश्चात भाई को अंकुरि खिलाया जाता है। नोत लेने के पश्चात भाई बहनों को सगुन देते हैं। उसके बाद बहनें भाइयों को मिथिला के प्रसिद्ध पकवानों से बने व्यंजनों का भोजन कराती हैं।