मतदान, मतगणना और क्षेत्रों के विकास का गणित

सामाजिक कार्यकर्त्ता कृष्णार्जुन बर्वे इंदौर का लेख
विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश भारत की जड़ों में ईमानदारी, सहिष्णुता और विभिन्न विचारधाराओं का समावेश हैं। लोकतांत्रिक देश में यहां की आम जनता चुनाव के माध्यम से अपनी सरकारें चुनती हैं, जो देश के भविष्य की दिशा को तय करती है। सरकार चुनवाने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की होती है। चुनाव आयोग तय करता है कि पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ चुनावों को सम्पन कराया जाएं चुनाव आयोग एवं संसद द्वारा समय-समय पर चुनाव की व्यवस्था और उसकी तटस्थता को बढ़ाने के लिए चुनाव की प्रणाली में परिवर्तन किये जाते रहे हैं। एक दशक पहले तक बेलेट पेपर द्वारा मतदान पेटी में मतपत्र डाला जाता था और फिर उन मतपेटियों को सुरक्षाकर्मियों द्वारा सुरक्षित स्थान या जिला स्तर पर रखा जाता था। एक नियत तिथि पर वोटों की गिनती की जाती थी। इस प्रक्रिया में काफी समय लगता था और अक्सर मतपेटियाँ भी लूट ली जाती थीं। आज के समय में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा चुनाव संपन होते है। विभिन्न आपत्तियों और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए वोटर वेरीफाईड पेपर ऑडिट ट्रेल भी साथ में जोड़ दिया गया है। जिससे मतदाता द्वारा अपने वोट की स्वतंत्र रूप से सत्यापन कर सके। निर्वाचन आयोग द्वारा ये एक बहुत बढ़िया और सुरक्षित कदम उठाया गया है। चुनाव की यह प्रकिया जितनी गोपनीय है, उतनी ही सार्वजानिक भी है। इसके क्या फायदे और नुकसान हैं। इसे इस तरह समझते हैं, जैसे चुनाव के पूर्व समस्त उम्मीदवार जी जान लगा कर प्रचार प्रसार करते है, अपने घोषणा पत्र के अनुसार चुनावी वादे करते है, कई बार कुछ चुनावी वादों का कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में क्रियान्वयन भी होता हैं तो कुछ में और फिर उन वादों को पूरा कराने में जनता को अपनी एडियां रगडनी पड़ती है, ऐसा क्यों होता है ? क्योंकि जिस गोपनीयता की हम बात करते है वह एक समय बाद गोपनीय नहीं रह जाती है, जब जनता द्वारा वोट दिया जाता है, तब वे हमें एक गुप्त मत के रूप में दिखता है, लेकिन यह एक बूथ मशीन में जाकर सार्वजानिक रूप से मिल जाता है।
जब वोटों की गिनती होती है तो वह वार्ड व बूथ स्तर पर होती है और गिनती के दौरान उम्मीदवार और उम्मीदवार के प्रतिनिधि इस प्रकिया में शामिल होते है। वे जानते है कि किस मोहल्ले से, गली से, क्षेत्र से कितने वोट दलों के प्रतिनिधियों के पक्ष में पड़े है। इससे उन क्षेत्र के मतदाताओं का नुकसान होता है, जो विपक्ष में वोट डालते हैं। उन क्षेत्रों का आने वाले 5 वर्ष बहुत ही कठिन और विकास के लिए संघर्षमय हो जाते है, ज़रा सोचकर देखिए क्या आपके शहर के कोई मोहल्ले, कॉलोनियां या गलियाँ आपको ऐसी दिखती हैं ? इसे विधानसभा या लोकसभा के रूप में भी विश्लेषित कीजिए। सत्तापक्ष वालों का निर्वाचन क्षेत्र और विपक्ष वालों का निर्वाचन क्षेत्र और उसमें हुआ कथित विकास।
चुनाव आयोग द्वारा मताधिकार, मतदान पर जितना ध्यान रखा जाता है, उसी प्रकार क्यों न मतगणना जैसी व्यवस्था में भी सुधार किया जाए। क्यों न ऐसी कोडिंग व्यवस्था की जाए जिससे मतगणना के दौरान वहां खड़े उम्मीदवारों और प्रतिनिधियों को यह पता न चल सके कि किस क्षेत्र के वोटों को गिना जा रहा है, या किस क्षेत्र से उसे कितने वोट मिले।
कृष्णार्जुन बर्वे
सामाजिक कार्यकर्त्ता
इंदौर