बिना कर्म किए किसी भी व्यक्ति का जीवन पूर्ण नहीं हो सकता-मनीषी स्वामी ज्ञानानंद
गीता दरअसल जीवन जीने की कला है
indore. Se Vinod Goyal
विश्व विख्यात गीता ने गीता भवन में शहर के प्रबुद्ध और धर्मनिष्ठ श्रोताओं को दिए जीवन संवारने के मंत्र
इंदौर। गीता जीवन का सार है। राधा प्रेम और आनंद का अनुभूति है तो कृष्ण कर्म के प्रणेता। गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसमें आज तक किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं हुई है और न ही इसका कोई परिष्कृत संस्करण बना है। गीता में तब भी 700 श्लोक थे और अब भी 700 ही हैं। हर मनुष्य को कर्म करना आवश्यक है। बिना कर्म किए किसी भी व्यक्ति का जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। कृष्ण अवतार के पूर्व राधा का अवतरण हुआ है। कृष्ण जन्म पर हम कहते हैं कि नंद के घर आनंद भयो… आज भी मथुरा में कृष्ण के पहले राधा का नाम लिया जाता है। वहां राधे-राधे, राधेय या राधे कृष्ण से ही एक दूसरे का अभिवादन होता है। गीता दरअसल जीवन जीने की कला है। गीता के संदेश भगवान ने अर्जुन को सुनाए थे, लेकिन वास्तव में गीता हम सबके लिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रासंगिक और उपयोगी है।
विश्व विख्यात गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद ने गीता भवन के सत्संग सभागृह में गीता सत्संग कार्यक्रम में शहर के धर्मनिष्ठ एवं प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुए उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में जियो गीता के राष्ट्रीय महामंत्री प्रदीप मित्तल (दिल्ली), समाजसेवी बालकृष्ण छावछरिया, शिव शंकर गर्ग, गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष राम ऐरन, ट्रस्टी प्रेमचंद गोयल, कार्यक्रम समन्वयक कुलभूषण मित्तल कुक्की, रामविलास राठी, अग्रवाल समाज केन्द्रीय समिति के अध्यक्ष राजेश बंसल, पूर्व अध्यक्ष गोविंद सिंघल, लायंस गवर्नर यश शर्मा, साधना सोढानी सहित विभिन्न संस्थाओं की ओर से स्वामी ज्ञानानंद का गरिमापूर्ण स्वागत किया गया।
स्वामी ज्ञानानंद ने महाभारत युद्ध के पूर्व गीता संदेश की व्याख्या करते हुए कहा कि हर मनुष्य को कर्म करना आवश्यक है। जब मैं कहता हूं कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है तो कुछ जिज्ञासु कहते हैं कि फिर मंदिर जाने की क्या जरूरत है तो मैं उनसे पूछता हूं कि तब बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल क्यों भेजते हैं तो उनका जवाब आता है कि वहां शिक्षा का वातावरण मिलता है इसीलिए भेजते हैं। मेरा यही कहना है कि मंदिर भी इसीलिए जाना आवश्यक है कि वहां धर्म, अध्यात्म और शांति का वातावरण मिलता है, जो ईश्वर से साक्षात्कार करने में सहायक होता है। उन्होंने कर्म पर जोर देकर ईश्वर पर भरोसा करने का मंत्र देते हुए कहा कि हम जो भी कर्म करें, उसके फल को ईश्वर पर छोड़ दें। फल अवश्य मिलेगा। पर्यावरण की शुद्धि के लिए हवन सर्वश्रेष्ठ क्रिया है। गीता मन पर नियंत्रण, क्रोध पर काबू, आवश्यक आत्म चिंतन, विश्वास से सफलता, सोच से आचरण का निर्माण और कर्म के प्रति ईमानदारी जैसे बिन्दुओं पर स्वामी ज्ञानानंद ने सारगर्भित उदबोधन दिया, जिसे श्रोताओं ने मंत्रमुग्ध होकर सुना। स्वामीजी ने उपस्थित भक्तों को संकल्प दिलाया कि कम से कम एक बार गीता मंत्र का जाप अवश्य करें, यही मेरी दक्षिणा होगी। स्वामीजी ने उपस्थित भक्तों को गीता के संस्कृत में 18 श्लोकों और उनके हिन्दी अनुवाद वाली पुस्तिका भी वितरित की। कार्यक्रम में गीता जंयती से जुड़े शहर के विभिन्न संस्थानों के गीता प्रेमी भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। स्वामीजी की अगवानी रवि अग्रवाल, शीतल तोड़ीवाला, स्वाति, राजेश इंजीनियर, पिंकी अग्रवाल, संदीप आटो आदि ने की।
इस अवसर पर गीता भवन ट्रस्ट की ओर से शाल एवं श्रीफल भेंट कर ट्रस्ट के के अध्यक्ष राम ऐरन, प्रेमचंद गोयल, मंत्री रामविलास राठी एवं समन्वयक कुलभूषण मित्तल ने स्वामीजी का सम्मान किया। संचालन नंदकिशोर कंदोई ने किया और आभार माना कुलभूषण मित्तल कुक्की ने। कार्यक्रम में गीता भवन सत्संग सभागृह पूरी तरह श्रोताओं से लबरेज बना रहा। अनेक श्रोता तो फर्श पर बैठकर मंत्र मुग्ध होकर प्रवचन सुनते रहे। उल्लेखनीय है कि स्वामीजी को मध्यप्रदेश शासन ने ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की प्रतिमा के अनावरण समारोह हेतु आमंत्रित किया है। वे आज सुबह ओंकारेश्वर प्रस्थित हो गए।