श्रद्धा और आस्था का पात्र जितना बड़ा होगा, गुरू कृपा भी उतनी ज्यादा मिलेगी-स्वामी भास्करानंद
सहज और विनम्र बनकर रहेंगे तो जगत में भी वंदनीय रहेंगे और ध्रुव की तरह परमात्मा की भी प्रिय बने रहेंगे।
इंदौर, । गुरू जन्म-जन्मांतर के अंधकार को दूर कर हमारे जीवन को सदगुणों से आलोकित करते हैं। गुरू के चयन में पूरी सजगता बरतना चाहिए। भारत में लाखों साधु – संत हैं, इनमें से यदि एक दो खराब निकल जाएं तो क्या इससे साधु समाज के पास जाना छोड़ देना चाहिए। गंगा मे कोई नाला मिल जाता है तब भी गंगा की पवित्रता खत्म नहीं होती। यही स्थिति हमारे साधु समाज की है। हमारी श्रद्धा और आस्था का पात्र जितना बढ़ा और गहरा होगा, गुरूकृपा भी उतनी ज्यादा मिलेगी।
वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज ने गीता भवन स्थित सत्संग सभागृह में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व वरिष्ठ समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, टीकमचंद गर्ग, विष्णु बिंदल, पूर्व न्यायाधीश सत्येन्द्र जोशी, राधेश्याम शर्मा गुरूजी, कैलाश-कांता गोयल, गोविंद अग्रवाल, हरि अग्रवाल, श्याम मोमबत्ती, दीपक अग्रवाल, गौरव अग्रवाल, प्रकाश अग्रवाल मोमबत्ती, राम मनोहर गोयल, ओमप्रकाश जोशी, सुभाष-मीरा गोयल, आनंद-निधि गोयल, राजेन्द्र गर्ग, राजेन्द्र मित्तल (मुरैना) आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संयोजक गोविंद अग्रवाल एवं दीपक अग्रवाल ने बताया कि बुधवार 13 सितम्बर को भगवान श्रीराम एवं कृष्ण के जन्मोत्सव धूमधाम से मनाए जाएंगे। , 14 को बाललीला एवं 56 भोग, 15 को महारास एवं रुक्मणी विवाह तथा समापन दिवस पर 16 सितम्बर को सुदामा चरित्र एवं फूलों की होली के साथ समापन होगा।
बालक ध्रुव की भक्ति की व्याख्या करते हुए स्वामी भास्करानंद ने कहा कि आजकल कोई भी शिष्य बनने को राजी ही नहीं है, हर कोई सीधे गुरू बनना चाहता है। यही हमारी कमजोरी है। पहले शिष्य बनें, गुरू तो बने-बनाए हैं। शबरी और शूर्पणखा, दोनों को जंगल में प्रभु राम मिले, लेकिन चूंकि शबरी को गुरू ने मिलवाया था, इसलिए उसका कल्याण हो गया और शूर्पणखा ने खुद ही गुरू बनकर राम से मिलने का काम किया तो उसकी नाक कट गई। गुरू के बिना भगवान मिल भी जाए तो हमें उनकी महत्ता समझ में नहीं आएगी। गुरू ही समझा सकते हैं कि भगवान की महत्ता क्या है। हम अकारण अपने धन और शक्ति का प्रदर्शन कर दूसरों से अच्छा या भारी दिखने की होड़ में लगे रहते हैं। जीवन में दिखने और दूसरों का दिल दुखाने से बचना चाहिए, क्योंकि हर दिल में परमात्मा का वास होता है। सहज और विनम्र बनकर रहेंगे तो जगत में भी वंदनीय रहेंगे और ध्रुव की तरह परमात्मा की भी प्रिय बने रहेंगे।