जब तक हम नर में नारायण के दर्शन का भाव नहीं रखेंगे, तब तक हमारी साधना अधूरी ही रहेगी।
गीता भवन में आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में शिव पुराण कथा में अमृत वर्षा

बैंक बैलेंस की तरह अपने सदकर्मो की पूंजी को भी बढ़ाएं – साध्वी कृष्णानंद
इंदौर। हमारे कर्मों में परमार्थ और परोपकार का भाव होना चाहिए। हमारा ध्यान जिस तरह अपने बैंक बैलेंस को बढ़ाने में लगा रहता है, उसी तरह अपने सदकर्मों की पूंजी को भी बढ़ाने की जरूरत है। हमारे कर्म श्रेष्ठ होंगे तो यमदूत भी अपने फैसले बदलने पर बाध्य हो सकते हैं। जरूरतमंद की सेवा और सहायता करते समय अहंकार का भाव नहीं आना चाहिए। मदद लेने वाले में यदि दीनता और हीनता का भाव आ गया तो हमारी सेवा और हमारा दान निर्थक हो जाएगा। हमारी खाता-बही पुण्य कर्मों से भरी होना चाहिए।
वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज की सुशिष्या साध्वी कृष्णानंद के, जो उन्होंने गीता भवन में आयोजित शिव पुराण कथा के दौरान व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, उत्सव चेरिटेबल ट्रस्ट गुजरात के पं. विजय शास्त्री, गोपाल मंगल, अनुपमा मंगल, श्याम अग्रवाल, शशिकला मंगल आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। संध्या को आरती में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। कथा प्रतिदिन दोपहर 4 से सायं 7 बजे तक 29 अगस्त तक होगी।साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि हम सबका जीवन श्रद्धा और विश्वास रूपी दो स्तंभों पर टिका है। किस व्यक्ति में कितनी श्रद्धा है या किस पर कितना विश्वास किया जाए, इसको मापने का कोई पैमाना नहीं है। कलयुग में श्रद्धा के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन की अधिकता देखने को मिलती है। लोग तीर्थ भी जाते हैं तो धर्म और पुण्य का भाव कम, पिकनिक और सैरसपाटे का भाव ज्यादा होता है। तीर्थ स्थलों पर भी लोग ऐसा व्यवहार करते हैं, जो हमारी संस्कृति और परंपरा को लांछित करने वाला होता है। गंगा में डुबकी लगाकर पाप मुक्त हुआ जा सकता है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम रोज पाप करें और डुबकी लगाकर मुक्त हो जाएं। हमारे धर्म स्थल जाने-अनजाने में हुए अनुचित एवं पाप सम्मत कर्मों से मुक्ति के माध्यम हैं, लेकिन हम ही अपनी पवित्र नदियों को गंदा कर रहे हैं। जब तक हम नर में नारायण के दर्शन का भाव नहीं रखेंगे, तब तक हमारी साधना अधूरी ही रहेगी।