समाज में अमीर और गरीब के बीच की दूरी पाटना होगी
युगपुरुष-- मां के बाद सबसे अच्छा दूध गोमाता का होता है

इंदौर, । किसी को भी बना-बनाया स्वर्ग नहीं मिलता। अपने हिस्से का स्वर्ग स्वयं हमे ही बनाना होगा। अपने कर्मों से हम यदि अपना स्वर्ग नहीं बना सकें तो किसी को भी स्वर्ग नहीं मिल पाएगा। अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए प्रतिदिन योग साधना, प्राणायाम और गीता के मनन-मंथन का अभ्यास जरूर करना चाहिए, ताकि मानव से महामानव और महामानव से अतिमानव बनने की ओर हम अग्रसर हो सकें।
राम जन्मभूमि न्यास अयोध्या के न्यासी और महामंडलेश्वर युग पुरुष स्वामी परमानंद गिरि महाराज ने अखंड परमधाम सेवा समिति के तत्वावधान में पंजाब अरोड़वंशीय भवन पर चल रहे सत्संग एवं योग ध्यान साधना शिविर के समापन एवं गुरू पूर्णिमा के उपलक्ष्य में गुरू पूजन समारोह में उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद, ओंकारेश्वर की साध्वी साक्षी चेतना, महामंडलेश्वर साध्वी दिव्य चेतना गिरि, बदनावर के संत स्वामी विशुद्धानंद, अखंडधाम इंदौर की संत मंडली सहित अनेक संत-विद्वान भी उपस्थित थे। देश के विभिन्न शहरों से आए गुरू भक्तों ने उनका स्वागत किया। भक्तों ने गुरू पूर्णिमा महोत्सव के लिए सुसज्जित झूला बनाकर स्वामी परमानंदजी को वहां विराजित किया। तीन हजार से अधिक भक्तों ने कतारबद्ध होकर पादुका पूजन किया। सैकड़ों भक्तों ने युगपुरुष को आत्मीय विदाई दी। उनके पाद पूजन का सिलसिला करीब तीन घंटे चला।संचालन सीए विजय गोयनका ने किया। समूचे सभागृह को विशेष रूप से पुष्पों एवं पत्तियों से श्रृंगारित किया गया था। युगपुरुष ने संकेत दिया कि वे बिजासन रोड स्थित अखंड धाम पर होने वाले अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन में आएंगे।
गाय की रक्षा सबको करना चाहिए। गाय का एक नाम कामधेनु भी है, जो हम सबकी कामनाओं की पूर्ति करती है। मां के बाद दूसरा स्थान गोमात का होता है। हम अपना भोजन करते समय दूसरों का पेट देखने लगते हैं। अधिक भोजन करना ठीक नहीं है। कम भोजन करें और बचा हुआ भोजन किसी भूखे के कुंड में डाल दें तो उसको भी तृप्ति मिल सकेगी। प्रतिदिन गीता का मनन और मंथन कर लेंगे तो शास्त्रों में लिखा है कि पिछले जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसी तरह इस जीवन में स्वस्थ रहने के लिए योग साधना और प्राणायाम भी जरूरी है। समाज में अमीर और गरीब के बीच की दूरी पाटना होगी। हम एक-दूसरे के दुश्मन नहीं, बल्कि पूरक हैं। सेठ के बिना मजदूर का काम नहीं चलता और मजदूर के बिना सेठ का काम भी नहीं चल पाता। प्रेम और भक्ति के साथ आनंद का सृजन होता है। हमारा आचरण ऐसा होना चाहिए कि दूसरे लोग भी हमसे प्रेरणा ले सकें। सीखने की उम्र कभी खत्म नहीं होती। यदि हमारा इरादा पक्का हो तो सब कुछ किसी भी उम्र में कहीं से भी सीखा जा सकता है, लेकिन हम जिस देश में रहते हैं, वहां के नियम कायदों का पालन भी करना जरूरी है। बेईमानी से दूर रहकर हम अपनी निष्ठा से घर-परिवार, धर्म-समाज और राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाने का प्रयास करें तो निश्चित ही सभी क्षेत्रों में सफलता मिलेगी।