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मन को भटकने की आदत को तोड़ने और छोड़ने के लिए योग और ध्यान के अभ्यास की जरूरत — युग पुरुष स्वामी परमानंद गिरि
ध्यान में वह शक्ति है, जो हमें भी शिव बना सकती है

इंदौर, ।मन की गति सबसे तेज मानी गई है। मन ही मन हम कहीं भी कूद-फांद सकते हैं। जैसे पानी की लहर का हिलना बंद हो जाए तो वह लहर नहीं रहेगी, इसी तरह यदि मन का भटकाव बंद हो जाए तो उस मन को मन नहीं कह सकते। कहा भी गया है कि मन को मार लो तो भजन हो जाएगा, लेकिन यह इतना आसान नहीं है। मन को भटकाने की आदत हमने ही डाली है और इस आदत को तोड़ने तथा छोड़ने के लिए अभ्यास की जरूरत है, जो योग और ध्यान से ही संभव है। ध्यान में वह शक्ति है, जो हमें भी शिव बना सकती है। जैसे शिव का तीसरा नेत्र ध्यान से ही खुलता है, वैसे ही हम भी चाहें तो ध्यान लगाकर अपना तीसरा नेत्र खोल सकते हैं।
राम जन्म भूमि मंदिर न्यास अयोध्या के न्यासी एवं महामंडलेश्वर युगपुरुष स्वामी परमानंद गिरि महाराज के, जो उन्होंने आज अखंड परम धाम सेवा समिति के तत्वावधान में पंजाब अरोड़वंशीय भवन पर आयोजित ध्यान एवं योग शिविर में संबोधित करते हुए व्यक्त किए। शिविर में दिनोदिन भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। प्रतिदिन सुबह ध्यान एवं योग शिविर तथा संध्या को सत्संग प्रवचन में बड़ी संख्या में भक्तों के साथ ही अनेक संत-विद्वान भी शामिल हो रहे हैं। हरिद्वार के महामंडलेश्वर स्वामी ज्योतिर्मयानंद, महामंडलेश्वर साध्वी दिव्य चेतना, साध्वी चैतन्य सिंधु एवं योगाचार्य शिवदयाल गुप्ता सहित अनेक संत-विद्वान भी अपनी भागीदारी दर्ज करा रहे हैं संचालन राजेश अग्रवाल ने किया और आभार माना विजय शादीजा ने।
युगपुरुष स्वामी परमानंद ने कहा कि मन बाजार में जाता है तो दुनिया से सुख खरीदने की आदत बन जाती है। ज्ञान को यदि हम कहीं भेजेंगे ही नहीं तो उसकी आदत में सुधार आएगा। इसके लिए हमें अभ्यास करना पड़ेगा। हम देहाभ्यास में इतने डूबे हुए हैं कि कल्पना और स्वप्न में भी वही बातें आती हैं, जो हम रोज अपने जीवन में करते हैं। मनोवृत्ति को रोकना ही मन पर नियंत्रण होता है। लहर की तरह मन को मारने के लिए भी हिलना बंद करना होगा। यह हिलना ही मन का भटकाव है। योग एवं ध्यान साधना शिविर में सुबह हमीरपुर से आए योगाचार्य शिवदयाल गुप्ता ने भी साधकों को योग की विभिन्न विधाओं का प्रशिक्षण दिया।