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ग्यारह दिवसीय महारुद्र महायज्ञ की पूर्णाहुति, साढ़े तीन लाख आहुतियां दी गई

अच्छी वर्षा हेतु विद्वानों के सान्निध्य में हुआ अभिषेकात्मक व हवनात्मक महायज्ञ

शंख ध्वनि के साथ अभिजित मुहूर्त में संत_ विद्वानों के सान्निध्य में हुई पूर्णाहुति, महाआरती के साथ समापन हुआ।

इंदौर। मनोकामनापूर्ण दुर्गामाता-गणेश मंदिर, स्कीम-51 स्थित पंचकुंडीय यज्ञशाला में चल रहे ग्यारह दिवसीय महारुद्र महायज्ञ की पूर्णाहुति शुक्रवार को अभिजित मुहूर्त में हुई। जैसे ही महायज्ञ की पूर्णाहुति हुई ,यज्ञशाला वेद ध्वनि से गूंज उठी। संत_ और विद्वानों के सान्निध्य में पूर्णाहुति के बाद महाआरती हुई। साथ ही महाप्रसादी का आयोजन हुआ।
विश्व ब्राह्मण महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवम प्रमुख यजमान पं. योगेंद्र महंत ने बताया आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक के आचार्यत्व में वैदिक विद्वानों के सान्निध्य में यह महायज्ञ ग्यारह दिनों तक चला। महायज्ञ में साढ़े तीन लाख आहुतियां दी गई। दोपहर में अभिजित मुहूर्त में सद्गुरु अण्णा महाराज, खजराना गणेश मंदिर के प्रमुख पुजारी पं. अशोक भट्ट, रणजीत हनुमान मंदिर के प्रमुख पुजारी पं. दीपेश व्यास सहित अन्य संत-विद्वानों की उपस्तिथि में महारुद्र एवम मृतुन्जय महायज्ञ की पूर्णाहुति हुई। महायज्ञ में आशुतोष भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए महामृत्युंजय मंत्रों से विशेष आहुतियां दी गई। महायज्ञ के बाद श्री योगेन्द्र महंत ने संत-विद्वानों का शाल श्रीफल से। सम्मान किया। इसके बाद महाआरती के साथ अनुष्ठान की पूर्णाहुति हुई। महायज्ञ में पं. नंदकिशोर शास्त्री, पंडित हितेश व्यास, पं. राजेंद्र शर्मा, पं. शिवशंकर शास्त्री।, पं. कृष्ण कांत शास्त्री आदि विद्वान शामिल हुए।
अनुष्ठान अभिषेकात्मक व हवनात्मक दोनों, एक ओर अखंड जलधारा तो दूसरी ओर मंत्रोच्चार के बीच आहुतियां
खास बात यह है कि महारुद्र अभिषेकात्मक अौर हवनात्मक दोनों हुआ। एक अौर जहां भगवान आशुतोष पर अखंड जलधारा समर्पित की जा रही थी वहीं, दूसरी अौर ग्यारह विद्वान मंत्रोच्चार के बीच आहुतियां प्रदान कर रहे।थे। इसके साथ ही प्रतिदिन मृत संजीवनी। महामृत्युंजय मंत्रों से भी आहुतियां दी गई। ग्यारह। दिनी अनुष्ठान में साढ़े तीन लाख से अधिक आहुतियां दी गई। महारुद्र महायज्ञ में ।हरी हरात्मक द्वादश लिंगतो भद्र मंडल आकर्षण का केंद्र रहा। इस भद्र मंडल में शिवजी के विशेष गणों की पूजा के साथ 33 कोटि देवताओं की स्थापना की गई है। द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना व पूजन प्रतिदिन विद्वानों के सान्निध्य में किया जा रहा था। सादर सचित्र प्रकाशन हेतु। प्रचार प्रमुख।

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