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वेद को घर में रखे, आती है सकारात्मक ऊर्जा

धार्मिक ग्रंथों का पूजन व आरती करने के साथ इनके संदेश को जीवन में उतारें



इंदौर। सनातन संस्कृति को हमारे ऋषि मुनियों ने धर्म ग्रंथों के माध्यम से हम तक पहुंचाया है। आततायियों ने षड्यंत्र पूर्वक इसमें नष्ट और बदलाव करने का भरसक प्रयत्न किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। रामायण, गीता और वेद को घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा रहती है। धार्मिक पुस्तकों को पूजन व आरती करने तक सीमित न रखे, इनके संदेश को समझे और आत्मसात करे तो जीवन की हर कठिनाई का हल अपने आप मिल जाएगा।
यह दिव्य विचार पश्चिम क्षेत्र श्री हंसदास मठ पर भगवान परशुराम कथा के दूसरे दिन ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने व्यक्त किए। आयोजक विश्व ब्राह्मण समाज संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पं. योगेन्द्र महंत ने बताया कि तीन दिवसीय कथा का आज शुक्रवार को समापन होगा। गुरुवार को व्यासपीठ का पूजन पं. योगेन्द्र महंत, मोहन ठक्कर, महंत जुगल किशोर, संतोष भार्गव, विकास अवस्थी, पवन मिश्रा, गोविंद शर्मा, लीलाधर शर्मा, परेश बैरागी, उषा महंत आदि ने किया। ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने बताया कि महाभारत, गीता के साथ वेद पुराण और उपनिषद में भी भगवान परशुराम की महिमा का गुणगान मिलता है। भगवान परशुराम श्री नारायण के अवतार है। उन्हें कभी क्रोध नहीं आता। उनके बारे में यह भ्रांति है कि वे बड़े क्रोधी स्वभाव के रहे हैं। यह असत्य और निराधार है। कथा के दौरान संगीतमय सुमधुर भजनों की प्रस्तुति दी गई। प्रमुख रूप से सीताराम सीताराम कहिए…. अक्षुतम केशवम कृष्ण दामोदरम रामनारायणम… कौन कहता है भगवान आते नहीं तुम मीरा के जैसे बुलाते नहीं…. आदि भजनों की प्रस्तुति दी गई। बच्चों को लेकर दिया रोचक उदाहरण
व्यासपीठ से ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि बच्चे अगर पुस्तकों का अध्ययन नहीं करेंगे और आरती करेंगे तो उन्हें ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। इसी प्रकार अगर धर्म ग्रंथों को पूजन और आरती तक सीमित रखेंगे तो उनके संदेश तक नहीं पहुंचा जा सकता। हम श्रीमद भागवत और शिवपुराण आदि अनेक कथाओं में जाते हैं, श्रवण करते हैं, लेकिन उनके संदेश को याद नहीं रखते, जबकि होना यह चाहिए कि इन दिव्य ग्रंथों में दिए संदेश को न केवल ग्रहण करे बल्कि उसे आत्मसात और मनन करेंगे तो जीवन सार्थक होगा। इसी प्रकार छात्र पुस्तकों को पढ़कर उनका मनन करना सीख गए तो वे किसी भी परीक्षा में असफल नहीं होंगे।
माता-पिता और गुरु का ऋण नहीं उतरता, विपदा में मार्गदर्शन भी लें व्यासपीठ से ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि माता-पिता और गुरु का ऋण जीवन में उतारा नहीं जा सकता, इनसे कोई भी बात छुपाना नहीं चाहिए। जीवन में अगर कोई विपरीत पस्थिति या कठिनाई उत्पन्न होती है तो इनसे मार्गदर्शन लेने में संकोच न करें। जीवन की गाड़ी अनवरत रफ्तार के साथ चलाना चाहते हैं तो रिस्तों के महत्व को समझे और इनको सम्मान देना बरकरार रखें। गुरु से प्रेरणा लेना और हर विकट परिस्थिति में मार्गदर्शन लेना आज की पीढ़ी में कमतर हो गया है। इसके कारण कई प्रकार की समस्याएं नई पीढ़ी में उत्पन्न हो गई है।
भगवान परशुराम के आगे वेद, पीछे तूणीर
व्यासपीठ से ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि हमारे धर्म ग्रंथों में रीति और नीति को गंभीरता के साथ दर्शाया है। रामायण भगवान राम को
मर्यादा का स्वरूप तो महाभारत में श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया, जिसमें रीति और नीति का संदेश समाज को दिया है। भगवान परशुराम के बारे में कहा गया है कि वे आगे वेद और पीछे तूणीर रखते हैं। इससे आशय यह है कि भगवान परशुराम जो कि स्वयं नारायण का अवरतार है। वह किसी भी विपरीत, प्रतिकूल और अनुकूल परिस्थिति में रीति-नीति और वेदोक्त आचरण से ही कार्य को करने का प्रयास करते हैं, अगर कोई दुष्ट उनके सहृदयता को नहीं मानता और धर्म और नीति विरुद्ध जाता है तो वे फिर अपने पीछे तूणीर में से तरकश निकालते हैं यानी जो समझाने से नहीं समझता उसे दंड भी देते हैं।
खंड-खंड अखंड भारत, ब्रिटेन, लेटिन अमेरिका, रोम, मिस्र की खुदाई में निकल रही भारतीय संस्कृति की प्रतिकृतियां व्यासपीठ से ख्यात विद्वान धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि आज जो भारत वर्ष मानचित्र में हमें दिखता है वह बहुत ही सूक्ष्म स्वरूप है। कुछ समय पहले ही अखंड भारत 1884 की बात करे तो समय का एक तिहाई हिस्सा ही हमारे पास अब शेष रहा है। इससे थोड़ा और आगे जाए तो रामायण और महाभारत काल में अखंड भारत एशिया और दूसरे महाद्विपों में भी दिखेगा, जिसका दुनिया के अलग-अलग देशों में खुदाई के दौरान पता चलता है। धर्माचार्य पं. रमेश शर्मा ने कहा कि ब्रिटेन के आयरलैंड में खुदाई के दौरान स्टोन आफ डस्टिंग ( शिवलिंग की आकृति), लेटिन अमेरिका में श्रीयंत्र की प्रतिकृति और मिस्र व रोम में खुदाई के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के साथ भगवान परशुराम की मूर्ति के आकार की प्रतिकृतियां भी निकल रही हैं। इसका अर्थ यही है कि खंड-खंड अखंड भारत का विस्तृत स्वरूप विशाल और वृहद रहा होगा। धर्म ग्रंथों और वेदों से संज्ञान ले तो पृथ्वी के दो तिहाई भाग पर सनातन संस्कृति का परचम लंबे समय तक लहराया होगा, जिसके अंश आज तक खुदाई में निकलते आ रहे हैं।

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