सोए हुए व्यक्ति और समाज को जगाने का काम संत ही करते हैं – ब्रह्मचारी जयेश्वर
इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट:—–
श्रीश्री माता आनंदमयी पीठ पर शोभायात्रा एवं वेदांत सम्मेलन के साथ प्रारंभ हुआ मां का 128वां जन्मोत्सव
इंदौर, यह चिंतन का विषय है कि हम कौन हैं और हमारा लक्ष्य क्या है। संत हमारे ज्ञान चक्षु खोलने का काम करते हैं। सोए हुए व्यक्ति और समाज को जगाने का काम संत ही करते हैं। वेदांत का चिंतन और दर्शन खुद से खुद को मिलाने का है। हम जब तक स्वयं अपना स्वरूप नहीं जान पाएंगे, तब तक हमें ब्रह्म की व्यापकता का बोध नहीं हो पाएगा। ब्रह्म व्यापक है और हम सीमित। मां आनंदमयी ने ज्ञान के गूढ़ रहस्यों को सरल शब्दों में जन-जन तक पहुंचाया है।
काशी से पधारे ब्रह्मचारी जयेश्वर के, जो उन्होंने आज सुबह ए.बी. रोड मेडिकल कालेज के पास स्थित श्रीश्री माता आनंदमयी पीठ पर मां आनंदमयी के 128वें जन्मोत्सव के शुभारंभ सत्र में वेदांत सम्मेलन के दौरान व्यक्त किए। महोत्सव का शुभारंभ मां आनंदमयी पीठ के पीठाधीश्वर स्वामी केदारनाथ महाराज के सानिध्य में देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों से आए संत-विद्वानों ने दीप प्रज्ज्वलन एवं मां आनंदमयी के चित्र पर माल्यार्पण के साथ किया। प्रारंभ में आश्रम के न्यासी मंडल की ओर से जे.पी. फड़िया, मुकेश कचोलिया, डॉ. विजय निचानी, नीलेश मित्तल, मनोज भाया, लखन मंडलोई आदि ने पधारे हुए संतों और विद्वानों का स्वागत किया। संचालन स्वामी कृष्णानंद एवं मुकेश कचोलिया ने किया। इसके पूर्व सुबह महामंत्र संकीर्तन एवं मंगला आरती के बाद मां काली एवं ओंकारेश्वर महादेव का अभिषेक पूजन भी किया गया। मां आनंदमयी के मंदिर का पुष्पों से मनोहारी श्रृंगार भी आकर्षण का केन्द्र बना रहा। महिला भक्त मंडली द्वारा अष्टोत्तर शतनाम पाठ एवं मां चालीसा की सामूहिक प्रस्तुति भी हुई। सुबह आश्रम से शोभायात्रा भी निकाली गई, जिसमें मां आनंदमयी की सुसज्जित पालकी को कांधों पर लेकर बड़ी संख्या में आश्रम में वेद एवं कर्मकांड तथा संस्कृत पढ़ने वाले बटुकों और बाहर से आए संत-विद्वानों ने भी भाग लिया।
*वेदांत सम्मेलन* – हरियाणा से आए आदर्श महामंडलेश्वर स्वामी विरागानंद महाराज ने कहा कि वेद का निचोड़ है वेदांत। परमात्मा का ज्ञान हम तक कैसे पहुंचेगा, इसके लिए वेदों का ज्ञान ही सर्वमान्य माध्यम है। वेदांत के मुताबिक मनुष्य के तीन शरीर माने गए हैं – सूक्ष्म, स्थूल और कारण। एक ही व्यक्ति के तीन शरीर होने की बात आश्चर्यजनक हो सकती है, लेकिन यह वास्तविकता है कि वेदों ने हमारे शरीर को उक्त तीनों श्रेणियों में वर्गीकृत किया है। वेदांत इन रहस्यों के आवरण को हटाकर हमें वास्तविक ज्ञान की अनुभूति कराता है। उज्जैन से आए स्वामी परमानंद एवं स्वामी दिव्यानंद ने भी वेदांत सम्मेलन में अपने प्रभावी विचार व्यक्त किए। आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी केदारनाथ महाराज ने मातृवाणी का पाठ करते हुए कहा कि मां आनंदमयी ने अपने प्रवचनों के माध्यम से आम आदमी तक सरल भाषा में वेदांत, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म से जुड़े विषयों को पहुंचाया है। स्वामी परिपूर्णानंद, स्वामी कृष्णानंद भी इस अवसर पर उपस्थित थे।