हमारी श्रद्धा भक्ति सच्ची होगी तो रामजी हमें नहीं छोड़ेंगे और राम नाम सत्य है इसलिए हम उन्हें नहीं छोड़ सकते

इंदौर, । प्रभु राम का चरित्र और सत्य, दोनों एक-दूसरे के पर्याय एवं पूरक हैं। दोनों की परिभाषा एक ही है। राम ही सत्य है और सत्य ही राम है। रामजी का नाम अंतिम समय तक हमारे साथ जुड़ा रहता है। हमारी श्रद्धा और भक्ति सच्ची हुई तो रामजी भी हमें नहीं छोड़ेगे और राम नाम सत्य है, इसलिए हम उन्हें नहीं छोड़ सकते। अनादिकाल से राम और सत्य एक-दूसरे के साथ गूथे हुए हैं। हनुमानजी का चरित्र तो सर्वोत्कृष्ट ही है। वे वास्तव में ऐसे भक्त हैं, जिनकी हर सास में रामजी और उनके परिवार के प्रति समर्पण का भाव है।
यह प्रेरक विचार हैं जगदगुरु रामानंदाचार्य, श्रीमठ काशी पीठाधीश्वर स्वामी श्री रामनरेशाचार्य महाराज के, जो उन्होंने सोमवार को गीता में चल रहे हनुमान प्राकट्य महोत्सव की धर्मसभा में व्यक्त किए। प्रारंभ में गीता भवन के संरक्षक ट्रस्टी गोपालदास मित्तल, कार्यक्रम संयोजक विष्णु बिंदल एवं संजय मंगल, राजेश चेलावत, बासु टिबड़ेवाल, गोविंद मंगल, राधेश्याम पटेल, योगेश बुले, भरत दवे, बाबू भाई कुसुमाकर आदि ने जगदगुरु का पूजन किया। इसके पूर्व सुबह राम-हनुमानजी के अभिषेक में सैकड़ों भक्त शामिल हुए। संचालन संजय मंगल ने किया। आभार माना रामविलास राठी ने।
जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य ने कहा कि भारत संस्कारों का देश है, जहां जन्म से लेकर मृत्यु तक हम अनेक संस्कारों में जीते हैं। कथा या अन्य धार्मिक अनुष्ठान केवल पुण्य के लिए नहीं हैं, इनका पहला फल यही है कि इस तरह के आयोजन हमारा भय छीन लेते हैं। भय सबको रहता है। रामजी का नाम अंतिम समय तक न तो हम छोड़ते हैं और हमारी भक्ति एवं श्रद्धा सच्ची हुई तो रामजी भी हमें नहीं छोड़ते। अनादिकाल से राम और सत्य एक दूसरे के साथ गूथे हुए हैं। हनुमानजी सही मायने में ऐसे भक्त हैं, जिनकी हर सांस रामजी और उनके परिवार के लिए समर्पित है।