श्रद्धा और विश्वास के दो स्तंभों पर टिका है हमारा जीवन
इंदौर, । शिव पार्वती का विवाह श्रद्धा और विश्वास का समन्वय है। शिव श्रद्धा हैं तो पार्वती विश्वास। हम सबका जीवन भी श्रद्धा और विश्वास रूपी दो स्तंभों पर टिका है। किस व्यक्ति में कितनी श्रद्धा है, इसे मापने का कोई पैमाना नहीं है। कलियुग में श्रद्धा के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन की अधिकता देखने को मिलती है। शिव और पार्वती का विवाह चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में हरिद्वार के कनखल में हुआ। आज भी वहां स्नान करने पर कुवांरी कन्याओं के विवाह जल्द हो जाने की मान्यता है।
बड़ा गणपति पीलियाखाल स्थित प्राचीन हंसदास मठ के सातवें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में हंस पीठाधीश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य में चल रही शिव पुराण कथा में भागवताचार्य पं. पवन तिवारी ने उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। कथा में बुधवार को शिव पार्वती विवाह का जीवंत उत्सव भी मनाया गया। भगवान की बारात में भूत, पिशाच और चुड़ेल भी शामिल हुए। कथा शुभारंभ के पूर्व पं. पवनदास शर्मा, डॉ. योगेन्द्र महंत, प्रवीण-मिलन सोनी, राकेश गोधा, श्याम अग्रवाल एवं राधा रानी मंडल के भक्तों ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा में 26 जनवरी को स्कंध गणेश चरित्र की कथा होगी।
पं. पवन तिवारी ने कहा कि आजकल लोग तीर्थ भी जाते हैं तो पर्यटन के भाव से जाते हैं और वहां ऐसा व्यवहार करते हैं जो हमारी संस्कृति और शालीनता के विपरीत होता है। हमारे धर्मस्थल जाने-अनजाने में हुए अनुचित एवं पाप सम्मत कर्मों से मुक्ति के माध्यम है। इसका मतलब यह भी नहीं कि हम रोज पाप करें और रोज गंगा में डुबकी लगाकर हिसाब बराबर कर लें। हमारे कर्मो में परमार्थ और परोपकार का चिंतन होना चाहिए। शिव के साथ शक्ति भी जरूरी है। शक्ति का दूसरा नाम पार्वती अर्थात विश्वास है। समाज में शिवऔर शक्ति मिलकर ही परिवार का लालन-पालन कर सकते हैं।