अपनी आसक्ति को संसार के विषयों से हटाकर ईश्वरीय तत्व में लगाएं, मन शुद्ध होने लगेगा
इंदौर, । मनुष्य का मस्तिष्क उस गीली मिट्टी जैसा है, जो बार-बार वही दिखाएगा, जिसके बारे में हम मन के द्वारा सोचते या देखते हैं। विचारों का प्रवाह कभी खत्म नहीं होता। विचार हमारी तरह सप्ताह के अंत में छुट्टी भी नहीं मनाते। नकारात्मक विचारों को हमारा मन जल्दी ग्रहण कर लेता है। सारी चीजें व्यवस्थित और सामान्य होने पर भी यदि कोई एक छोटी सी समस्या आ जाती है तो मन का फोकस उसी पर लगा रहता है। चिंता को चिता के समान माना गया है। यह चिंता जीवित को भी जला देती है। विडंबना यह है कि हम लोग उस सत्य तत्व का कतई चिंतन नहीं करते, जिसके कारण हमें यह दुर्लभ मनुष्य जन्म मिला है। यदि हमारी आसक्ति संसार के पदार्थों और विषयों के बजाय ईश्वरीय तत्व में हो जाए तो मन भी शुद्ध हो जाएगा।
विश्व विख्यात प्रवक्ता, वैदिक विद्वान एवं भक्तिमार्गीय संत स्वामी मुकुंदानंद के, जो उन्होंने जाल सभागृह में राधाकृष्ण सत्संग समिति के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय प्रवचनमाला में व्यक्त किए। ‘ विचार शक्ति – हमारे श्रेष्ठ जीवन का आधार ’ विषय पर अपने प्रभावी उदबोधन में स्वामी मुकुंदानंद ने कहा कि मन की गति सबसे तेज होती है। विचारों में असीम शक्ति होती है, लेकिन हम उससे अनभिज्ञ होते हैं। नकारात्मक विचारों का प्रवेश जल्दी और आसानी से हो जात है। जीवन में सब कुछ अच्छा चलते रहने के बावजूद यदि कोई एक समस्या, चाहे वह कितनी ही छोटी हो, हमारा मन बार-बार उसी का चिंतन करते रहता है। हम मन के द्वारा जो कुछ सोचते हैं या देखते हैं, मस्तिष्क भी उसी के हिसाब से हमारे विचारों का प्रवाह बनाता रहता है। इसी कारण मन भी रिकार्ड प्लेयर की तरह किसी एक बिन्दु पर अटका रहता है। सब बातों का मूल हमारा चिंतन और विचार है और जब हम सत्य तत्व अर्थात भगवान में आसक्ति करना शुरू कर देंगे तो मन के शुद्धिकरण की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी। जैसे-जैसे मन को श्याम रंग में डुबाने का प्रयास करेंगे, वैसे-वैसे जीवन के रंग उज्जवल बनते जाएंगे।
प्रारंभ में राधाकृष्ण सत्संग समिति के अध्यक्ष जे.पी. फड़िया, सचिव राजेन्द्र माहेश्वरी, संयोगिता गंज माहेश्वरी समाज के मुकेश असावा, दीपक भूतड़ा, मैनेजमेंट मार्शल के भाग्येश द्विवेदी, गीता भवन ट्रस्ट के मंत्री रामविलास राठी, आभा चौरे, संगीता भराणी, महेश गुप्ता आदि ने स्वामीजी का स्वागत किया।