भगवान कहीं और नहीं, हमारे अंदर ही आनंद स्वरूप में मौजूद हैं – स्वामी भास्करानंदजी

इंदौर, । वृंदावन, काशी और चारों धाम की यात्रा कर लेने पर भी आपको भगवान नहीं मिलें, क्योंकि आपने अब तक बाहर की ही यात्रा की है, अंदर की नहीं। भगवान यदि इन तीर्थों में मिलना होते तो सबसे पहले उस पुजारी को मिलते, जो चौबीस घंटे उनके पास रहता है। भगवान कहीं बाहर नहीं, आनंद स्वरूप में हमारे अंदर ही है। विडंबना यह है कि हम अब तक बाहर ही झांकते रहे हैं, अंदर का हमें कुछ नहीं दिखाई देता। संसार की वस्तुएं थोड़ी देर के लिए आनंद दे सकती हैं, किन्तु परमात्मा का आनंद स्थायी आनंद होता है। परमात्मा तो हर क्षण आने के लिए तैयार हैं, लेकिन हम या तो उन्हें बुलाते नहीं या हमारे अंदर उनको बुलाने की पात्रता ही नहीं है।
श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने पाटीदार समाज एवं घाटीवाला परिवार द्वारा खजराना स्थित पीपल चौक पर आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ में आज उक्त प्रेरक बातें कही। कथा में आज भगवान की बाल लीलाओं का भावपूर्ण चित्रण हुआ, वहीं गोवर्धन पूजा का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। कथा शुभारंभ के पूर्व गोविंद-गोपाल पाटीदार, नितिन कटारिया, नेमीचंद पाटीदार, राजाराम उस्ताद, मनोहरलाल पाटीदार आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। आज भी साध्वी कृष्णानंद ने मनोहारी भजन सुनाकर कथा पांडाल को भाव विभोर बनाए रखा।
स्वामी भास्करानंद ने कहा कि भगवान मथुरा छोड़कर इसलिए नंदगांव आ गए, क्योंकि मथुरा में कंस था। कंस और कृष्ण एक साथ नहीं रह सकते। कंस अभिमान का प्रतीक है। व्यक्ति को धन, पद, वैभव और कई बार तो शरीर का भी अभिमान हो जाता है। अभिमान ऐसा शत्रु है, जो कहीं से भी घुसपैठ बना लेता है। हम भी जब तक स्वयं को अभिमान से मुक्त नहीं बनाएंगे, तब तक भगवान हमारे पास नहीं आएंगे। हम कथा में प्रतिदिन आकर बैठते हैं, लेकिन हमारा मन कहीं और भटकता रहता है। हमारे पाप कर्म में कथा श्रवण से विमुख बना देते हैं। यह याद रखें कि संसार में सब कूड़ा और कचरा है, अंदर देखेंगे तो अमृत मिल सकता है। अपने कानों को हमें श्रेष्ठ और भद्र सुनने का अभ्यस्थ बनाना होगा। सुख थोड़े में नहीं, अनंत में मिलता है और वह अनंत परमात्मा ही है। हमारा जीवन तब तक अपूर्ण है, जब तक हम भगवान से नहीं जुड़ेंगे। जो संसार स्वयं अपूर्ण है, वह हमें परिपूर्णता कैसे दे सकता है।