जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए क्षमा और दया जैसे आभूषण आत्मसात करें – भास्करानंद
इंदौर, । भागवत का प्रत्येक संदेश मनुष्य के लिए संजीवनी के समान है। क्षमा एवं दया मानव जीवन के अलंकार होना होना चाहिए। हमारा हृदय तभी पवित्र बनेगा, जब उसमें दया के भाव होंगे। क्षमा से बड़ा कोई दंड नहीं होता, क्योंकि क्षमा का आनंद जीवनभर याद रहता है। जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए क्षमा और दया जैसे आभूषण आत्मसात करना चाहिए। दया के अभाव में मनुष्य पशु के तुल्य माना जाता है। दया का गुण हमें शिष्ट बनाता है। किसी मजार पर चादर चढ़ाने से ज्यादा पुण्य किसी ठिठुरते हुए व्यक्ति को चादर भेंट करने में मिलेगा। दीन-दुखियों के आंसू पोंछने का पुण्य गंगा स्नान से भी अधिक होता है।
श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने आज खजराना पीपल चौक पर पाटीदार समाज एवं घाटीवाला परिवार की मेजबानी में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में भागवत की महत्ता बताते हुए नारद चरित्र एवं शुकदेव आगमन प्रसंगों के दौरान उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व खजराना गणेश मंदिर के पुजारी पं. मोहन भट्ट, समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, ने भाग लिया। साध्वी कृष्णानंद के मनोहारी भजनों पर आज भी कथा पांडाल झूमता रहा। आयोजन समिति के अनिल पाटीदार ने बताया कि रविवार को दोपहर 1 से 4 बजे तक कथा के दौरान कपिल देवहुति उपाख्यान, सती चरित्र एवं शिव विवाह प्रसंग होंगे।
विद्वान वक्ता ने कहा कि वाणी की चार विशेषताएं बताई गई है – व्यर्थ बोलने की जगह मौन रहना, सत्य बोलना, प्रिय बोलना और धर्मनिष्ठ बोलना। धर्म का पहला लक्षण दया और क्षमा होता है। जीवन में दया का भाव होगा तो धर्म भी टिका रहेगा। हम किसी मजार पर चादर चढ़ाएं और बाहर बैठा फकीर शीत लहर में मर जाए तो ऐसा धर्म उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। संतों ने भगवान से पांच चीजें मांगी है – हमारी भक्ति जन्म-जन्म तक बनी रहे, धर्म में हमारी निष्ठा रहे, हम हमेशा दान देने योग्य रहें, देश एवं शास्त्रों के प्रति हमारा प्रेम बना रहे और प्राणी मात्र के प्रति हमारे मन में दया का भाव बना रहे। जिस व्यक्ति के मन में दया का भाव नहीं होता, वह पशु तुल्य माना जाता है। दया ही हमें शिष्ट बनाती है। हृदय में पवित्रता तभी प्रवेश करेगी, जब मन में दया का भाव होगा। इसी तरह क्षमा भी मनुष्य का आभूषण है। कई बार क्षमा से बड़ा की दंड नहीं होता, क्योंकि क्षमा का आनंद जीवनभर याद रहता है, हालांकि हमारी सौजन्यता का दुरुपयोग भी होता है।