सेंधवा। जो जहर को भी अमृत की तरह स्वीकार करता है, वह शिव है। शिवकथा के दौरान पूज्य गिरी बापू ने कहा।

सेंधवा।
सामर्थ्य के साथ सहजता जिसका स्वभाव है, वह शिव है। श्रीहरि के आदेश पर विश्वकर्मा ने अनेकों शिवलिंगों को आकार दिया। जिन्हें विष्णु ने देवताओं में वितरित कर दिया। नारद की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने शिव कथा के प्रारंभ में शिव वंदना की ब्रह्मा को नीलकंठ का रूप ही सबसे अधिक प्रिय हैं, क्योंकि जगत के कल्याण हेतु जो विष पान करे वह शिव है। जो अपमान में भी मौन है, वह शिवभक्त है। उन्होंने सती के पिता प्रजापति दक्ष को दूसरों के लिए सम्मान भाव रखने की सलाह दी। क्योंकि जहां जिस रूप में हम स्थित है वहीं से जगत का प्रारंभ होता है। शहर की रघुवंश पब्लिक स्कूल में आयोजित षिव कथा के दौरान व्यास गादी से श्रद्धेय गिरि बापू ने उक्त प्रवचन दिए। पूज्य गिरी बापू ने कहा वह भोला नहीं है वरन भोले लोगों का देव है। कालकूट का अर्थ है जो समय तत्व से भी ऊपर है। क्योंकि समय तत्व का सृजन भी उसी ने किया है। जब विष्णु ने नृरसिंह रूप धारण किया तो वह अपने हुंकार से जगत का विनाश करने लगते हैं। तब अंत में देवताओं की प्रार्थना पर शिव उन्हें ब्रह्मांड में ले जाते हैं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए नरसिंह के चर्म को शिव ने उतार कर धारण कर लिया। यही वाध चर्म है। इस तरह तामस को वश में रखना केवल शिव के लिए संभव है। क्योंकि हरि सतोगुणी है और शिव गुणातित है।
वह शिव है-
ब्रहमा ने कहा जो योगियों के ह्दय में ज्योतिस्वरूप है। जो समय तत्व से परे है, जो जड़ चेतन सभी में निहित है। वह शिव है जो सृष्टि के जन्म के पूर्व अंधकार के भीतर भी निहित था, वह शिव है। पुष्प दंत ने अपनी प्रार्थना में कहा शिव विश्वास है और भवानी श्रद्धा है हमें विश्वास और श्रद्धा के साथ कर्म करना चाहिए। हर जीव अपने स्वरूप में ही ईश्वर को देखता है। ब्रहम तत्व बीज स्वरूप शिव को पुष्प दंत नमन करते है। हमें ईश्वर को कभी मार्गदर्शन नहीं करना चाहिए। उसे सब पता है इसलिए उसके पास याचक बनकर न जाए संसार में जो दिखलाई देता है वह चमत्कार नहीं है। मनुष्य की उन्नति पुरूषार्थ का परिणाम है। अतं में आप ने कहा हमें शिव और शक्ति की एक साथ उपासना करना चाहिए।