इंदौरधर्म-ज्योतिष

भगवान तन का नहीं, मन का सौंदर्य देखते हैं –साध्वी कृष्णानंद

गीता भवन में महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना रुक्मणी विवाह का उत्सव 

भगवान तन का नहीं, मन का सौंदर्य देखते हैं –साध्वी कृष्णानंद

गीता भवन में महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में चल रहे भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मना रुक्मणी विवाह का उत्सव

इंदौर, । विवाह गृहस्थ जीवन का प्रवेश द्वार तो है ही, सनातन धर्मियों की बुनियाद को भी मजबूती देने वाला सबसे श्रेष्ठ संस्कार है। भगवान तन का नहीं, मन का सौंदर्य देखते हैं। हमारी संस्कृति में विवाह सात जन्मों तक चलता है, जबकि पश्चिमी देशों में सात माह और सात दिन की भी गारंटी नहीं होती। आज इसी कारण पश्चिमी देशों में सामाजिक एवं नैतिक मूल्य बिखर रहे हैं। रुक्मणी विवाह भगवान के मन में नारी शक्ति के प्रति मंगल भाव का प्रतीक है। गोवर्धन पूजा राजा इंद्र के अहंकार को तोड़ने का प्रतीक है। भगवान को सबसे ज्यादा खराब कोई बात लगती है तो वह है अहंकार। अहंकार कहीं से भी कभी भी घुस आता है, जिसका नतीजा हमेशा पतन के रूप में ही मिलता है।

व्यासपीठ का पूजन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी प्रवीण माथुर एवं डॉ. आशा माथुर, भाजपा के जिला उपाध्यक्ष दिलीप चौधरी, ललित चौधऱी ने कमलेश, गौरव एवं अर्पित शिवहरे के साथ किया। कथा में कृष्ण रुक्मणी विवाह का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, किशोर गोयल, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती एवं संजय मंगल के आतिथ्य में हुए इस उत्सव में जैसे ही भगवान कृष्ण ने रूक्मणि को वरमाला पहनाई, समूचा सभागृह भगवान के जयघोष और बधाई गीतों से गूंज उठा। वर एवं वधू पक्ष ने एक-दूसरे का स्वागत भी किया। कुछ समय के लिए ही सही कथा स्थल विवाह स्थल में बदल गया। साध्वी कृष्णानंद ने अपने मनोहारी भजनों से पहले दिन से ही भक्तों को थिरकाने का उपक्रम चला रखा है, जो आज भी जारी रहा।

साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि हम संस्कारों से बंधे हुए हैं। जन्म, मुंडन, अन्नप्राशन, शिक्षारंभ से लेकर विवाह के लिए भी मुहूर्त और तिथि देखकर काम करते हैं, क्योंकि हमारी आस्था और श्रद्धा अपनी परंपराओं में है। दुनिया के किसी और देश में यह सब नहीं होता है। पश्चिमी देशों में तो विवाह के पूर्व ही तलाक की नौबत आ जाती है या विवाह सात दिन भी नहीं चल पाता। यही कारण है कि अब भी अनेक विदेशी जोड़े भारत आकर हमारी पद्धति से विवाह करना चाहते हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं के लिए गौरव की बात है। वहां चार लोग भी एक परिवार में चार दिन साथ नहीं रह सकते, हम चालीस सदस्यों का परिवार चार पीढ़ियों तक साथ चलाते हैं।

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