धर्म-ज्योतिष

अपने अंदर भरे अभिमान से मुक्ति के लिए केवल गर्दन नहीं, हृदय को भी झुकाना सीखें-कृष्णानंद

गीता भवन में महामंडलेश्वर भास्करानंद के सानिध्य में भागवत ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ-पहलगाम हादसे की कड़ी निंदा

अपने अंदर भरे अभिमान से मुक्ति के लिए केवल गर्दन नहीं, हृदय को भी झुकाना सीखें-कृष्णानंद

गीता भवन में महामंडलेश्वर भास्करानंद के सानिध्य में भागवत ज्ञान यज्ञ का शुभारंभ-पहलगाम हादसे की कड़ी निंदा

 इंदौर। श्रीमद भागवत कथा हमें जीवन के दुखों से पार लगाती है, दुख समाप्त नहीं करती। परमात्मा को श्रद्धापूर्व प्रणाम करने वाले लोगों के कल्याण का मार्ग भागवत कथा ही बताती है। दिक्कत यह है कि हमारे अंदर रूप, पद, बल, धन या किसी अन्य तत्व का इतना अहंकार भरा हुआ है कि हम केवल गर्दन झुकातें हैं, हृदय नहीं। अपने अंदर भरे अभिमान से मुक्ति के लिए केवल गर्दन नहीं, हृदय को झुकाना भी सीखना होगा। सुख और दुख जीवन के क्रम है। न तो सुख स्थायी है और न ही दुख। भागवत दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों से पार लगाने वाली कथा है। इस कथा के एक भी संदेश को हमने सच्चे मन से आत्मसात कर लिया तो जीवन के सारे पाप, ताप और संताप नष्ट हो जाएंगे।

ये दिव्य विचार हैं वृंदावन-हरिद्वार की साध्वी कृष्णानंद के, जो उन्होंने मनोरमागंज स्थित गीता भवन सत्संग सभागृह में आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद महाराज के सानिध्य में प्रारंभ हुए भागवत ज्ञान यज्ञ के शुभारंभ सत्र में व्यक्त किए। कथा शुभारंभ के पूर्व गीता भवन परिसर में भागवतजी की शोभायात्रा भी निकाली गई। आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद, समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, श्याम मोमबत्तीसहित अनेक श्रद्धालु शामिल हुए। व्यासपीठ का पूजन समाजसेवी कमलेश शिवहरे, गौरव शिवहरे एवं अर्पित शिवहरे के साथ अन्य श्रद्धालुओं ने भी किया। महिला मंडल की ओर से श्रीमती सुजाता, श्रीमती नेहा और श्रीमती चांदनी ने विद्वान वक्ता की अगवानी की।

साध्वी कृष्णानंद ने कहा कि भागवत कथा स्वयं भगवान की वाणी है। इसके श्रवण से हम दुखों से पार हो सकते हैं, लेकिन दुखों को नष्ट नहीं किया जा सकता। हमारे प्रारब्ध में लिखे हुए दुख तो हमें मिलेंगे ही। हमारे कर्मों के अनुसार जो कुछ हमारे हिस्से में आएगा, उसका भुगतान हमें ही करना है। भागवत का श्रवण दुखों की अनुभूति को घटाता है। भगवान के प्रति हमारे मन में सच्चे मन से श्रद्धा और प्रेम का प्रादुर्भाव भागवत से ही संभव है। आजकल लोगों को डिप्रेशन की बीमारी ज्यादा बढ़ने लगी है। पुराने लोग दादा-दादी और नाना-नानी की कहानी सुनने के कारण कभी डिप्रेशन के शिकार नहीं होते थे और न ही कोई दवाई-गोली लेते थे। अब तो हर दो-चार घर छोड़कर डिप्रेशन के मरीज मिल रहे हैं। यह एकांकीपन का नतीजा है कि हम एक-दूसरे के दुख नहीं बांट रहे हैं।आज हर व्यक्ति साथ में रहते हुए भी अकेला रह गया है। परिजनों के बजाय मोबाईल फोन से ज्यादा दोस्ती हो गई है। परिजनों से संवाद की कमी के कारण ही आज घर-परिवार बिखर रहे हैं। भागवत इन सारे बिखराव को रोकती है।

पहलगाम हादसे की निंदा*- आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद के सानिध्य में साध्वी कृष्णानंद ने भागवत ज्ञान यज्ञ के दौरान कहा कि समाज में आज भी नर पिशाच लोग जिंदा है, जिन्हें देखकर परमात्मा भी सोचते हैं कि मैंने इन्हें बनाकर बडी भूल की है। पहलगाम हादसे की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि यह समाज और राष्ट्र को तोड़ने की दिशा में भयानक और घिनौनी साजिश है, जिसकी जितनी ज्यादा निंदा की जाए, उतनी कम है। निर्दोष भाईयों को धर्म पूछकर मौत के घाट उतारने का यह कायराना कदम किसी भी सभ्य समाज के लिए बर्दाश्त करने लायक नहीं है। सरकार को ऐसी प्रवृत्तियों का मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। अंत में दो मिनट का मौन रखकर कथा में उपस्थित भक्तों ने निर्दोष मृतकों के प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित किए।

 

 

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