पापकर्म से दूर रहकर भक्ति- सत्संग के पथ पर आगे बढ़ना ही जीवन का मंगलाचरण- व्यासानंद महाराज

बिजासन रोड स्थित अखंड धाम पर हरिद्वार के संतमत सत्संग समिति के संस्थापक की प्रवचनमाला का शुभारंभ
इंदौर, । हम सब खंड-खंड आनंद की कामना में जुटे हुए हैं। धन, वैभव, पुत्र, पद-प्रतिष्ठा, घर-परिवार होते हुए भी हम सुखी नहीं है, क्योंकि इन सारी चीजों का सुख या आनंद स्थायी नहीं होता। संसार परिवर्तनशील है, किंतु परमात्मा कभी नहीं बदलता। जब ईश्वर की कृपा होती है तो हमें मनुष्यत्व, सत्संग और विवेक की प्राप्ति होती है। व्यक्ति नाम से नहीं, कर्म से मानवता के गुण प्राप्त करता है। कलियुग में एक क्षण के सत्संग को भी दुर्लभ माना गया है। पाप कर्म से दूर रहकर भक्ति के पथ पर आगे बढ़ना ही जीवन का मंगलाचरण होता है। परमात्मा तो अखंड है, उसे देखने, पाने और मिलने की इच्छा ही मोक्ष प्राप्ति की इच्छा होती है । संसार में सब कुछ बदल जाता है, लेकिन कभी किसी से नहीं सुना होगा कि भगवान बदल गए हैं। दरअसल जब तक हम परमात्मा की शरण में रहेंगे, काल भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।
संतमत सत्संग समिति हरिद्वार के संस्थापक प्रख्यात संत स्वामी व्यासानंद महाराज ने आज बिजासन रोड स्थित अखंड धाम आश्रम पर आयोजित चार दिवसीय प्रवचन माला के शुभारंभ सत्र में मौजूद भक्तों को संबोधित करते हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। आदि शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रंथ ‘विवेक चूड़ामणि ’पर आधारित इस प्रवचन माला के शुभारंभ अवसर पर प्रारंभ में अखंड धाम के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप के सानिध्य में बालाजी ट्रस्ट के प्रमुख रामबाबू अग्रवाल, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता गोविंद मालू, साहित्यकार बनवारीलाल जाजोदिया, अखंड धाम के न्यासी हरि अग्रवाल ने अतिथि के रूप में दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण किया । अतिथियों का स्वागत सनातन संस्कृति एवं आध्यात्मिक मंच की ओर से अध्यक्ष सीए विजय गोयनका, सुरेश भामरे, विजय शादीजा, जगदीश गुप्ता, निरंजन पुरोहित आदि ने किया । संचालन कार्यक्रम संयोजक संजय गोयनका ने किया।
स्वामी व्यासानंद ने कहा कि व्यक्ति केवल जन्म लेने से ही मनुष्य नहीं हो जाता। कई लोग हैं जिनके कर्म राक्षस या जानवरों जैसे होते हैं , जिन्हें हम मनुष्य नहीं कह सकते। इसी तरह कई लोगों के कर्म ऐसे होते हैं, जिन्हें हम भगवान के समान कहते हैं। हमारे कर्म ही हमें जानवर, राक्षस, मानव या भगवान बनाते हैं। याद रखें कि संसार की वस्तु शाश्वत आनंद नहीं दे सकती। धन, दौलत, गाड़ी, बंगला, संतान, पद-प्रतिष्ठा होते हुए भी हम हमेशा सुखी या आनंदित नहीं रह सकते, लेकिन ईश्वर के संग का आनंद शाश्वत होता है। संसार का सुख बदलता रहता है, लेकिन ईश्वर की भक्ति का आनंद कभी नहीं बदलता । हम उनके जितने निकट पहुंचेंगे, हमारा उतना आनंद बढ़ता जाएगा।