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रामकथा जीवन जीने की कला के साथ त्यागऔर प्रेम करना भी सिखाती है–मानस मंदाकिनी

गीता भवन में चल रही श्रीराम कथा में विद्वान वक्ता को आयोजन समिति की ओर से गरिमापूर्ण बिदाई

इंदौर। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने तीन तरह की दरिद्रता बताई है। दरिद्रता केवल भौतिक नहीं, बल्कि मानसिक और बौद्धिक भी होती है। रामकथा का उद्देश्य हमें जीवन जीने की कला तो सिखाता है ही, त्याग करना और प्रेम करना भी सिखाता है। हर व्यक्ति चाहता है कि उसके जीवन में कभी दुख न आए और यही चिंता या फिक्र हमारे दुख का सबसे बड़ा कारण बनती है। जहां गुण होंगे, वहां अवगुण भी होंगे और जहां दिन होगा, वहां रात भी होगी। हमें सुख-दुख के साथ संघर्ष करना भी आना चाहिए। दुख और सुख से भी कोई नहीं बच सकता।
प्रख्यात मानस मर्मज्ञ श्रीराम किंकर की कृपापात्र शिष्य ‘ दीदी मां मंदाकिनी ने रविवार को गीता भवन सत्संग सभागृह में पांच दिवसीय श्रीराम कथा के दिव्य अनुष्ठान के समापन प्रसंग पर उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। कथा का आयोजन गीता भवन ट्रस्ट, एकल हरि सत्संग समिति एवं राधे सत्संग महिला मंडल के सहयोग किया गया था। समापन अवसर पर वरिष्ठ समाजसेवी विनोद अग्रवाल के आतिथ्य में गीता भवन ट्रस्ट एवं आयोजन समिति की ओर से अध्यक्ष राम ऐरन, मंत्री रामविलास राठी, न्यासी मंडल के प्रेमचंद गोयल, महेशचंद्र शास्त्री, मनोहर बाहेती, दिनेश मित्तल आदि ने दीदी मां को प्रशस्ति पत्र एवं शाल-श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया। उन्हें गरिमापूर्ण बिदाई दी गई। इसके पूर्व एकल हरि सत्संग समिति की ओर से श्रीमती कमल राठी, वीणा चौखानी, राजकुमारी मंत्री तथा राधे सत्संग महिला मंडल की ओर से संस्थापक कांता अग्रवाल, सुशीला मोदी, साधना गोयल, सुमन अधिकारी आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।
दीदी मां ने कहा कि दरिद्रता हर तरह की हो सकती है। दरिद्रता का शाब्दिक अर्थ होता है धन का अभाव, लेकिन गोस्वामी तुलसीदास और उनके बाद युग तुलसी श्रीराम किंकर ने दरिद्रता शब्द को बहुत सलीके से प्रस्तुत किया है। दरिद्रता मानसिक भी होती है, बौद्धिक भी होती है। आज सबसे बड़ा संकट बौद्धिक दरिद्रता का ही है। रामकथा हमें प्रेरित करती है कि हम राम और कृष्ण जैसे अवतारों से प्रेरणा लेकर जीवन जीने की कला (आर्ट ऑफ लाइव) ही नहीं, आर्ट ऑफ लीविंग अर्थात छोड़ने या त्याग करने तथा आर्ट ऑफ लविंग अर्थात प्यार करने का स्वभाव भी आत्मसात करें। रामकथा सचमुच पूरे विश्व के लिए प्रकाश पुंज का काम कर रही है। यूनेस्को ने मानस को विश्व निधि की श्रेणी में मान्य किया है।

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