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धर्म का पहला लक्षण दया और क्षमा – आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद

जिस व्यक्ति के मन में दया का भाव नहीं होता, वह पशु तुल्य माना जाता है

इंदौर से विनोद गोयल की रिपोर्ट: —-

इंदौर,। जीवन में दया का भाव होगा तो धर्म भी टिका रहेगा। धर्म का पहला लक्षण दया और क्षमा होता है। हम किसी मजार पर चादर चढ़ाएं और बाहर बैठा फकीर शीत लहर में मर जाए तो ऐसा धर्म उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। जिस व्यक्ति के मन में दया का भाव नहीं होता, वह पशु तुल्य माना जाता है। दया ही हमें शिष्ट और संस्कारी बनाती है। हृदय में पवित्रता तभी प्रवेश करेगी, जब मन में दया का भाव होगा। इसी तरह क्षमा भी मनुष्य का आभूषण है। 

      श्रीधाम वृंदावन के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी भास्करानंद ने गीता भवन सत्संग सभागृह में आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ मे विचार व्यक्त किए। व्यासपीठ का पूजन आगरा से आए वेदांताचार्य स्वामी हरि योगी के सानिध्य में समाजसेवी प्रेमचंद गोयल, सुभाष बजरंग, अरविंद बागड़ी, श्याम अग्रवाल मोमबत्ती, किशोर गोयल,यश गोयल, आनंद गोयल आदि ने किया।

      भागवत का प्रत्येक संदेश मनुष्य के लिए संजीवनी के समान है। क्षमा एवं दया मानव जीवन के अलंकार होना चाहिए। हमारा हृदय तभी पवित्र बनेगा, जब उसमें दया के भाव होंगे। क्षमा से बड़ा कोई दंड नहीं होता, क्योंकि क्षमा का आनंद जीवनभर याद रहता है। जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए क्षमा और दया जैसे आभूषण आत्मसात करना चाहिए। दया के अभाव में मनुष्य पशु के तुल्य माना जाता है। दया का गुण हमें शिष्ट बनाता है। किसी मजार पर चादर चढ़ाने से ज्यादा पुण्य किसी ठिठुरते हुए व्यक्ति को चादर भेंट करने में मिलेगा। दीन-दुखियों के आंसू पोंछने का पुण्य गंगा स्नान से भी अधिक होता है।

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