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माता-पिता को उनके जीवन काल में सुखी और प्रसन्न रख लिया तो फिर मंदिर और तीर्थ जाने की जरूरत नहीं

श्रद्धा सुमन सेवा समिति द्वारा हंसदास मठ पर आयोजित तर्पण अनुष्ठान में उमड़ रहा साधकों का सैलाब

इंदौर, ।  भले ही कभी मंदिर नहीं जाएं, कोई तीर्थ यात्रा भी न करें, लेकिन यदि हमने माता-पिता को उनके जीवन काल में प्रसन्न और संतुष्ट बनाए रखा तो फिर किसी मंदिर और तीर्थ जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। तर्पण तो उनकी तिथि वाले दिन ही नहीं पूरे 365 दिन करना चाहिए। मृत्यु के बाद तो सभी अपने दिवंगतों के लिए विभिन्न क्रियाएं करते हैं, लेकिन कोशिश यही होना चाहिए कि जीते जी भी हम उनकी सेवा और प्रसन्नता में कोई कसर नहीं छोड़ें। पितरों, पूर्वजों और बुजुर्गों के आशीष में बहुत ताकत होती है।

हंस पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज के सानिध्य एवं पं. पवनदास महाराज के विशेष आतिथ्य में भगवान हरि विष्णु के पूजन के साथ अनुष्ठान का शुभारंभ हुआ। आचार्य पं. तिवारी ने दिवंगत पूर्वजों, स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और गोमाता के लिए भी मोक्ष की कामना के साथ विश्व शांति एवं जन मंगल के लिए भी अनुष्ठान कराए।

महामंडलेश्वर स्वामी रामचरणदास महाराज ने कहा कि श्राद्ध पक्ष भारतीय संस्कृति का एक पवित्र पखवाड़ा है। हम अपने माता-पिता, गुरू और सगे-संबंधियों से लेकर मित्रों और स्नेहीजनों तक के ऋण को इस माध्यम से उतार सकते हैं। यह भारतीय संस्कृति का एक उजला पक्ष है, जहां हमें मृत्यु के बाद भी अपने पूर्वजों के लिए मोक्ष की प्रार्थना करने का शास्त्रोक्त प्रावधान मिला हुआ है। हमारे कर्म ऐसे होना चाहिए कि हमें पश्चाताप नहीं करना पड़े। आज यदि हम अपने पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर रहे हैं तो कल निश्चित ही हमारी संतानें भी हमारे लिए करेगी।

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