ज्ञान और बुद्धि के साथ विवेक देने वाले शिव पुत्रग णेशजी की आराधना कभी निष्फल नहीं होती
धरावरा धाम पर अ.भा. मानस सम्मेलन में शिव पुराण कथा जारी – धूमधाम से मनाया गणेशजी के विवाह का उत्सव

ज्ञान और बुद्धि के साथ विवेक देने वाले शिव पुत्रग णेशजी की आराधना कभी निष्फल नहीं होती
धरावरा धाम पर अ.भा. मानस सम्मेलन में शिव पुराण कथा जारी – धूमधाम से मनाया गणेशजी के विवाह का उत्सव
आश्रम के संस्थापक ब्रह्मलीन महंत घनश्यामदास महाराज की पुण्यतिथि पर 25 गांवों के भक्तों ने की पुष्पांजलि समर्पित
इंदौर, । जीवन में संयोग के साथ वियोग और सुख के साथ दुख जुड़ा हुआ है। भगवान आनंद के सिंधु हैं और हम संसार के एक बिन्दु बराबर सुख को पाते ही अपने आप को धन्य समझने लगते हैं। शिव पुत्र भगवान गणेश प्रथम वंदनीय है। विघ्नहर्ता के रूप में देवता भी उन्हें मान्यता देते हैं। बिना गणेशजी की पूजा-आराधना के किसी भी शुभ संकल्प की पूर्ति नहीं हो सकती। गणेशजी सबसे सहज और सरल देवता माने जाते हैं। भगवान शिव और पार्वती के पुत्र तो वे हैं ही, भारतीय समाज के जन-जन के मन में भी वे स्थापित हैं। विदेशों में भी गणेशजी के मंदिर बने हुए हैं। ज्ञान और बुद्धि के साथ विवेक देने वाले शिव पुत्र गणेश ही हैं। उनकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती।
धार रोड स्थित धरावरा धाम आश्रम परिसर में ब्रह्मलीन महंत घनश्यामदास महाराज के 16 वें पुण्य स्मृति प्रसंग पर महंत शुकदेवदास के सानिध्य में चल रहे अ.भा. मानस सम्मेलन के तहत शिव पुराण कथा में प्रख्यात मनीषी पं. पुष्पानंदन पवन तिवारी ने बुधवार को उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। आज कथा में महंत घनश्यामदास महाराज का पुण्य स्मृति दिवस भी मनाया गया। सैकड़ों भक्तों ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि समर्पित की। कथा में आज गणेशजी का रिद्धि और सिद्धि के साथ विवाह का प्रसंग भी बरात के साथ मनाया गया। धूमधाम से हुए इस विवाह में 25 गांवों के श्रद्धालु भी शामिल हुए।
आचार्य पं. तिवारी ने कहा कि हमें अपने आत्मस्वरूप का बोध होना चाहिए। इस बोध को भूल गए तो भटकना तय है। यह भटकाव परमात्मा की भक्ति और सत्संग से ही दूर हो सकता है। भगवान गणेश जन्म के पूर्व से ही विलक्षण रहे। पिता और माता के विवाह में पुत्र के पूजन का अनूठा उदाहरण मिलता है। माता पिता की परिक्रमा को तीर्थ यात्रा का दर्जा देने वाले भगवान गणेश ही हैं। उनके द्वारा स्थापित परंपरा भारतीय समाज में आज भी प्रासंगिक और शाश्वत मानी जाती है। देश में जितने मंदिर राम और कृष्ण के हैं, उससे भी अधिक गणेशजी के हैं। हमारी भक्ति में दृढ़ता होना चाहिए। जिस दिन हम इस दृढ़ता के साथ भक्ति में लीन हो जाएंगे, उस दिन हमें भगवान के आनंद सिंधु होने की अनुभूति भी स्वतः हो जाएगी।