चलता-फिरता मान सरोवर है रामकथा -जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य
राम के प्रति शरणागति का भाव ही हमारी भक्ति का उत्कृष्ट प्रमाण है

इंदौर । रामकथा चैतन्यता और निर्भयता की ऊर्जा प्रदान करने वाली पावन गंगा है। जहां रामकथा होती है, वहां सारे तीर्थ स्वतः चले आते हैं। रामकथा उस मंदाकिनी की तरह है, जो हर नदी-नाले को अपने में समाहित कर उसे भी अपनी तरह निर्मल बना देती है। रामकथा श्रवण करने वालों को किसी कैलाश मानसरोवर या चार धाम की यात्रा पर जाने की जरूरत नहीं है। रामकथा मनुष्य के सभी संशयों का समाधान कर उसका कल्याण करती है। हनुमान के बिना राम का दरबार अधूरा है। हनुमानजी भक्त भी हैं, और भगवान भी।
ये दिव्य विचार हैं जगदगुरू रामानंदाचार्य श्रीमठ काशी पीठाधीश्वर स्वामी श्री रामनरेशाचार्य के, जो उन्होंने गीता भवन में चल रहे हनुमान प्राकट्य महोत्सव की धर्मसभा में व्यक्त किए। धर्मसभा का शुभारंभ गीता भवन के संरक्षक ट्रस्टी गोपालदास मित्तल, अध्यक्ष राम ऐरन, सत्यनारायण-आशा गोयल, नवीन कुसुमाकर, संयोजक विष्णु बिंदल, संजय मंगल, टीकमचंद गर्ग, प्रेमचंद गोयल, बी.के. गोयल, राजेश गर्ग केटी, बालकृष्ण छाबछरिया, योगेन्द्र बुले, हितेश बिंदल, आदि द्वारा जगदगुरू के पूजन से हुआ। दोपहर में जगदगुरू ने भक्तों की आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान किया। इसके पूर्व सुबह राम-हनुमानजी के अभिषेक में सैकड़ों भक्त शामिल हुए। संध्या को गीता भवन परिसर स्थित राम दरबार एवं हनुमान मंदिर में हुई आरती में भी स्वामी राम नरेशाचार्यजी के साथ सैकड़ों भक्तों ने भाग लिया। नवलखा स्थित मनकामेश्वर कांटाफोड़ मंदिर समिति द्वारा यहां प्रतिदिन संध्या को भोजन सेवा संभाली जा रही है। संचालन संजय मंगल ने किया और आभार माना तुलसी मनवानी ने ।
प्रभु राम एवं हनुमानजी के देवत्व की विशेषताएं बताते हुए जगदगुरू ने कहा कि राम के प्रति शरणागति का भाव ही हमारी भक्ति का उत्कृष्ट प्रमाण है, जो केवल हनुमानजी में परिलक्षीत होता है। रामकथा चलता-फिरता मानसरोवर है। राम सृष्टि के रोम-रोम में व्याप्त वह तत्व है, जो मानव को एक आदर्श और नैतिक जीवन जीने का मापदंड दिखाते हैं। राम तो सत्य है ही, राम नाम उससे भी बड़ा सत्य है और राम की महिमा सबसे बड़ा सत्य है, जो हर युग में शाश्वत है। राम की कथा श्रद्धा और विश्वास, मर्यादा और गरिमा, प्रेम और करुणा तथा भक्ति और ज्ञान का पर्याय है।