इंदौरधर्म-ज्योतिष

पश्चिम और पूरब की संस्कृति में यही अंतर है कि वहां विवाह अनुबंध के आधार पर होता है

विवाह जैसा हमारा संस्कार अब भारतीय दहलीज को लांघकर सात समंदर पार जा पहुंचा- तिवारी

विवाह जैसा हमारा संस्कार अब भारतीय दहलीज को लांघकर सात समंदर पार जा पहुंचा- तिवारी

अखंड धाम आश्रम पर भागवत ज्ञान यज्ञ में धूमधाम से मनाया गया कृष्ण-रुक्णी विवाह उत्सव

 इंदौर । पश्चिम और पूरब की संस्कृति में यही अंतर है कि वहां विवाह अनुबंध के आधार पर होता है, जबकि हमारे यहां संस्कारों के आधार पर। हमारे यहां विवाह भी एक संस्कार माना गया है, सौदा नहीं। हम सात वर्षों के लिए नहीं, सात जन्मों के लिए अग्नि की साक्षी में सात फेरे लेते हैं। भारतीय सनातन संस्कृति को इसीलिए पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ और उजली संस्कृति माना गया है। रुक्मणी का विवाह नारी के मंगल का प्रतीक है। हमारे संचित पुण्य कर्मों का प्रारब्ध ही हमें अच्छे या बुरे कर्मों में निमित्त बनाता है। विवाह जैसा हमारा संस्कार अब भारतीय दहलीज को लांघकर सात समंदर पार जा पहुंचा है और अनेक विदेशी जोड़े भी भारत भूमि पर आकर भारतीय पद्धति से विवाह रचाने लगे हैं, जो हमारे लिए गौरव की बात है।

       भागवत मनीषी पं. पुष्पानंदन पवन तिवारी के, जो उन्होंने  खंडवा रोड स्थित अखंड धाम आश्रम पर अग्रवाल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ में रुक्मणी विवाह प्रसंग की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। कथा में कृष्ण-रुक्मणी विवाह का उत्सव भी धूमधाम से मनाया गया। वर-वधू पक्ष के मेहमानों ने विवाह की रस्मों के अनुरूप उत्सव का आनंद लिया। वर बने कृष्ण ने रुक्मणी के गले में वरमाला पहनाई, पूरा सभागृह भगवान के जयघोष एवं पुष्प वर्षा के बीच नाचते-गाते भक्तों की खुशियों से झूम उठा। इस अवसर पर हंसदास मठ के महामंडलेश्वर स्वामी रामचरण महाराज एवं साध्वी चैतन्य सिंधु के सानिध्य में समाजसेवी रामबाबू-लक्ष्मीदेवी अग्रवाल, राजेश-रितु अग्रवाल, विष्णु बिंदल, संजय मंगल, किशनलाल पाहवा, सुरेश अग्रवाल, श्यामलाल मक्कड़, पं. गणेश शास्त्री, सीए विजय गोयनका, हरि अग्रवाल, विष्णु कटारिया आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया। कथा में मनोहारी भजनों का जादू भी हर दिन बढ़-चढ़कर देखनो को मिल रहा है। आज भी कथा स्थल पर भक्तों का सैलाब पूरे समय बना रहा।

          पं. तिवारी ने कहा कि सृष्टि में पत्ता भी भगवान की मर्जी से ही हिलता है फिर भी अच्छे कर्मों का श्रेय लेने से हम नहीं चूकते। हमें तो स्वयं को निमित्त ही मानना चाहिए, क्योंकि ईश्वर की सत्ता सर्वोपरि है। भगवान कृष्ण ने रुक्मणी विवाह के माध्यम से संदेश दिया है कि भारतीय समाज में विवाह सात जन्मों तक निभाया जाने वाला अटूट संस्कार है। आज सनातन संस्कृति इसीलिए पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ और उजली मानी जाती है।

 

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