लोकमंगल और लोकरंजन के लिये लोकसंपृक्त साहित्य की शाश्वत आवश्यकता है : हेमंत मुक्तिबोध
विचार मंथन के नये संकल्प के साथ नर्मदा साहित्य मंथन के अहिल्या पर्व का समापन
लोकमंगल और लोकरंजन के लिये लोकसंपृक्त साहित्य की शाश्वत आवश्यकता है : हेमंत मुक्तिबोध
विचार मंथन के नये संकल्प के साथ नर्मदा साहित्य मंथन के अहिल्या पर्व का समापन
विश्व संवाद केन्द्र मालवा द्वारा आयोजित नर्मदा साहित्य मंथन के चतुर्थ सोपान अहिल्या पर्व का समापन देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के सभागृह में संपन्न हुआ।
इंदौर। समापन सत्र के प्रथम सत्र में पत्रकारिता के भारतीय तत्व पर परिचर्चा में वरिष्ठ पत्रकार श्री जयदीप कर्णिक और अमिताभ अग्निहोत्री के साथ श्रीमती सोनाली नरगुंडे सम्मिलित हुई।
दुसरे सत्र में नर्मदा परिक्रमा पर मूर्धन्य लेखक अशोक जमनानी ने भावपूर्ण संवाद में नर्मदा परिक्रमा के आध्यात्मिक एवं सामाजिक महात्मय् के साथ नर्मदा के पर्यावरणीय महत्व, लोकजीवन और लोक में नर्मदा के महत्व पर चर्चा की।
इतिहास लेखन के इतिहास सत्र में श्रीकृष्ण श्रीवास्तव ने भारतीय इतिहास लेखन की त्रुटियों और उसके दुरगामी परिणामों की व्याख्या करते हुए भारतीय इतिहास के प्रामाणिक स्रोतों का उद्घाटन किया।
भारतीय ज्ञान परंपरा और विविध दृष्टिकोण विषय पर संवाद सत्र में श्री एम एस चैत्रा ने मैकॉले शिक्षा पद्घति द्वारा भारतीय ज्ञान परपंरा को प्रतिस्थापित करने के षड्यंत्रों को स्पष्ट किया एवं जीवन को आनन्द प्रदान करने वाली भारतीय ज्ञानपरंपरा को स्थापित करने एवं शोध की आवश्यकता पर बल दिया।
नर्मदा साहित्य मंथन के समापन सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार श्रीराम परिहार ने अपने आशीर्वचन में ज्ञान और कर्म के समन्वय की भारतीय परंपरा में संवाद और मंथन की पद्धति को प्रतिपादित किया।आपने लोक मंगल के साहित्य की व्याख्या और प्रसार में नर्मदा साहित्य मंथन के प्रयासों को रेखांकित किया।भारत के पुनर्निर्माण के लिये अपनी मिट्टी से जुड़ने का आग्रह किया। समापन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य क्षेत्र सह कार्यवाह श्री हेमंत मुक्तिबोध ने विचार शून्यता का दौर में नर्मदा साहित्य मंथन की सार्थक भूमिका की सराहना की। विचार विविधता की स्वीकृति और विचारों की विभिन्नता के आदर की संवाद परंपरा का ही विस्तार नर्मदा साहित्य मंथन है। हर प्रकार के विचार को सुनने और वैचारिक पाचन शक्ति बढ़ाने के लिये नर्मदा साहित्य मंथन हमारी संवाद का परंपरा है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में संवाद के द्वारा ज्ञान-भक्ति और कर्म का संदेश देने पश्चात भी अपने विचार को मानने के लिये बाध्य नहीं किया। आपने लोकमंगल की कामना करने वाले साहित्य की अधिकाधिक रचना और समाज में प्रचार-प्रसार के लिये साहित्य मंथन जैसे कार्यक्रमों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया। बहुजन हिताय के लिये लोकमंगल और लोकरंजन के लिये लोकसंपृक्त साहित्य की रचना समय की आवश्यकता है।
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय और कालिदास अकादमी के सहप्रायोजकत्ल में आयोजित नर्मदा साहित्य मंथन के विभिन्न सत्रों में पच्चीस से अधिक पुस्तकों का विमोचन हुआ । मालवा-निमाड के विभिन्न नगरों और गाँवों से साहित्यानुरागी, विचारक, चिंतक, शोधार्थी और अध्येता इस नर्मदा साहित्य मंथन में सम्मिलित हुए।