उज्जैनधर्म-ज्योतिष

जब तक नर में नारायण के दर्शन का भाव नहीं रखेंगे,हमारी साधना, तपस्या एवं भक्ति सार्थक नहीं हो सकती -आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री

देश की पवित्र नदियां केवल नदियां नहीं, बल्कि हमारी लाइफ लाइन है, इन्हें स्वच्छ और संरक्षित, सुरक्षित बनाकर रखना हमारा पहला धर्म होना चाहिए

इंदौर। दुनिया में बाकी सभी कामों को मापने के लिए अपने-अपने मापदंड हो सकते हैं, लेकिन किस व्यक्ति में कितनी श्रद्धा और भक्ति है अथवा वह कितना विश्वास करने लायक है या नहीं, इसको मापने का कोई पैमाना नहीं है। कलयुग में भक्ति के नाम पर पाखंड और प्रदर्शन की अधिकता देखने को मिल रही है। लोग तीर्थ भी जाते हैं तो धर्म का भाव कम और पिकनिक का भाव ज्यादा होता है। तीर्थ स्थलों पर भी लोग ऐसा व्यवहार करते हैं, जो हमारी संस्कृति और मर्यादाओं का लांछित करने वाला होता है। हम जब तक नर में नारायण के दर्शन का भाव नहीं रखेंगे तब तक हमारी साधना, भक्ति, तपस्या और सेवा सार्थक नहीं होगी।
श्री श्रीविद्याधाम के आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री ने छोटा बांगड़दा, लक्ष्मीबाई नगर मंडी के पास स्थित पटेल परिसर में चल रहे महाशिवपुराण महोत्सव में उक्त दिव्य विचार व्यक्त किए। प्रारंभ में वैदिक मंगलाचरण के बीच ठा. कृष्णासिंह पटेल, बहादुरसिंह डाबी, महेश दलोद्रा, इंदरसिंह, रूदनसिंह, जसवंतसिंह, ठा. भगवानसिंह, ठा. अर्जुनसिंह, ठा. लाखनसिंह, ठा. सज्जनसिंह तथा समस्त चौहान-हाडा तथा पटेल परिवार के सदस्यों ने कुंवर चंद्रशेखर सिंह ‘राजा’ के साथ व्यासपीठ का पूजन किया। कथा के दौरान आज भी मनोहारी भजनों पर कथा पांडाल के झूमने थिरकने का सिलसिला चलता रहा।
आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री ने कहा कि कि शिव-पार्वती का विवाह दर असल श्रद्धा और विश्वास का मिलन है। मान्यता है कि कनखल, हरिद्वार में आज भी वहां स्नान करने पर कुवांरी कन्याओं के विवाह जल्द हो जाते हैं, जहां शिव पार्वती का विवाह हुआ है। हम गृहस्थ लोगों के बीच श्रृद्धा और विश्वास के भरोसे पर ही गृहस्थी की गाड़ी आगे बढ़ती है। हमारे धर्म स्थल जाने-अनजाने में हुए अनुचित एवं पापसम्मत कर्मों से मुक्ति के माध्यम हैं, लेकिन आजकल लोग तीर्थ यात्रा भी पिकनिक की तरह करने लगे हैं। हम जब तक नर में नारायण के दर्शन का भाव नहीं रखेंगे तब तक हमारी साधना, तपस्या और भक्ति अधूरी ही रहेगी। गंगा में स्नान से सब तरह के पापों से मुक्ति हो सकती है, लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम रोज पाप करें और रोज गंगा में डुबकी लगाकर स्वयं को पाप मुक्त बना लें। हमारी पवित्र नदियों में बढ़ते प्रदूषण का एक कारण यह भी है कि अब हमारे अंतरमन में इन नदियों के प्रति कृतज्ञता का भाव कम और तरण पुष्कर में स्नान जैसा भाव ज्यादा हो गया है। देश की पवित्र नदियां केवल नदियां नहीं, बल्कि हमारी लाइफ लाइन है, इन्हें स्वच्छ और संरक्षित, सुरक्षित बनाकर रखना हमारा पहला धर्म होना चाहिए।

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