मन की ग्रंथियां को खोलते हैं हमारे धर्म ग्रंथ – पं. राहुल कृष्ण शास्त्री
छोटा बांगड़दा में नौ दिवसीय शिव महापुराण का शोभायात्रा के साथ हुआ शुभारंभ
इंदौर, । संसार का कोई भी जीव दुख नहीं चाहता। हर किसी को सुख की अभिलाषा रहती है। हम सब जीवन भर यही प्रयास करते रहते हैं कि कभी दुख आए ही नहीं। चीटी से लेकर देवता तक यही कामना रखते हैं। संसार का दूसरा नाम दुखालय है। माया दुखों का घर है। ओस के कण चाट लेने से प्यास नहीं बुझेगी। सच्चा आनंद चाहिए तो भगवान शिव की शरण में ही जाना होगा। धर्म ग्रंथ मन की ग्रंथियों को खोलते हैं।
श्री श्रीविद्याधाम के आचार्य पं. राहुल कृष्ण शास्त्री ने छोटा बांगड़दा, लक्ष्मीबाई नगर मंडी के पास स्थित पटेल परिसर में आयोजित महाशिवपुराण कथा के शुभारंभ सत्र में व्यक्त किए।
पटेल परिसर से बैंड- बाजों, भजन एवं गरबा मंडलियों सहित शोभायात्रा प्रारंभ हुई, जो खेड़ापति हनुमान मंदिर, शिव मंदिर एवं गांव के प्रमुख मार्गो से होते हुए पुनः कथा स्थल पहुंची, जहां कुंवर चंद्रशेखर सिंह राजा ने सपत्नीक व्यास पीठ की पूजा- अर्चना की। ठा. कृष्णासिंह पटेल, भगवानसिंह पटेल, अर्जुनसिंह पटेल, सोहन सिंह पटेल, लाखनसिंह पटेल, सज्जनसिंह पटेल एवं समस्त चौहान-हाडा तथा पटेल परिवार के साथ गांव के सैकड़ो श्रद्धालुओं ने शिव पुराण का पूजन कर विद्वान वक्ता का स्वागत किया। शोभायात्रा का भी जगह-जगह पुष्प वर्षा कर स्वागत किया गया। कथा में पहले दिन ही 2 हजार से अधिक श्रद्धालु उपस्थित थे।
संयोजक पंकज सिंह चौहान ने बताया कि छोटा बांगड़दा में शिवपुराण कथा का यह दिव्य आयोजन 9 जनवरी तक प्रतिदिन दोपहर 1 से 4 बजे तक जारी रहेगा। कथा प्रसंगानुसार उत्सव भी मनाए जाएंगे। कथा के दौरान शिवलिंग पूजन विधि, भस्म एवं रूद्राक्ष महिमा, पार्वती जन्मोत्सव, शिव पार्वती विवाह, कार्तिकेय जन्म प्रसंग, तुलसी जालंधर कथा, शिवरात्रि व्रत कथा, जप का महत्व एवं भगवान शिवाशिव की आराधना से जुड़े विभिन्न प्रसंगों की व्याख्या होगी।
आचार्य पं. शास्त्री ने कहा कि मन में पुण्यों का प्रवेश तभी संभव होगा, जब पाप हटेंगे। कलयुग में बहुत सी विसंगतियां आ रही हैं। यज्ञ, कथा और पुण्य कार्यों की प्रवृत्तियां घटने लगी हैं। शिव पुराण जैसे धर्मग्रंथ हमारी नई पीढ़ी का भी मार्गदर्शन कर उन्हें चैतन्य बनाते हैं, इसीलिए इनका नियमित मनन-मंथन करना चाहिए।जैसा बीज होगा, फसल भी वैसी ही मिलेगी। यही स्थिति हमारे कर्मों की भी होती है, जहां हम जैसे कर्म करेंगे, वैसे फल मिलेंगे। शिव पुराण की कथा जीव मात्र के लिए कल्याणकारी मानी गई है।