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शिक्षा के नाम पर नन्हें-मुन्नों से बचपन छीनकरबस्तों का बोझ लादा जा रहा, शंकराचार्य

अ.भा. संत सम्मेलन में भानपुरा पीठाधीश्वर सहित अनेक संतों का उदबोधन


बिजासन रोड स्थित अखंड धाम आश्रम पर चल रहे अ.भा. संत सम्मेलन में भानपुरा पीठाधीश्वर सहित अनेक संतों का उदबोधन

इंदौर । सदगुरू, सदग्रंथ और सत्संग – मानवता के लक्ष्य को ये तीन साधन ही मोक्ष की ओर ले जाते हैं। मोक्ष ही जीवन का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य माना गया है। दुर्लभ मनुष्य जीवन की धन्यता सत्य सनातन धर्म से जुड़ने और उसे समृद्ध बनाने में ही संभव है। विडंबना यह है कि संसार में आने के बाद हम धन संपत्ति और भोग विलास के चक्कर में उलझकर अपने लक्ष्य से भटक रहे हैं। ईश्वर ने अपनी ओर से प्रत्येक जीव को सक्षम बनाया है। आज सबसे बड़ी चुनौती है हमारी शिक्षा पद्धति। स्कूली शिक्षा इतनी जटिल हो गई है कि अब माता-पिता भी बच्चों से डरते हैं कि कहीं वे उनसे कोई सवाल नहीं पूछ लें। शिक्षा के नाम पर नन्हें मुन्ने बच्चों से बचपन छीनकर बस्तों का बोझ लादा जा रहा है। शिक्षा अब कारोबार और कार्पोरेट श्रेणी में आ गई है। पुरानी गुरुकूल पद्धति की जगह महंगे कान्वेंट और पब्लिक स्कूल खुलते जा रहे हैं। इस व्यवस्था से सनातन धर्म की रक्षा और समृद्धि में विलंब होता जा रहा है, जबकि आज सनातन धर्म की मजबूती ही हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य होना चाहिए।
जगदगुरू शंकराचार्य, भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने मंगलवार को बिजासन रोड स्थित अविनाशी अखंड धाम आश्रम पर 57वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन में आए भक्तों और संतों को संबोधित करते हुए उक्त प्रेरक विचार व्यक्त किए। उन्होंने अपनी शिक्षा पद्धति को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि इस तरह की पद्धति केवल बेरोजगारों की सेना तैयार कर रही है। यह बेरोजगारी ही हमारी तरूणाई को भटका रही है। प्राचीन समय में गुरुकूल की शिक्षा पद्धति संस्कार आधारित थी, जहां हमें संतों की वाणी से लेकर सदग्रंथों का सानिध्य और संस्कारों की सुवास मिलती रही है, लेकिन अब शिक्षा भी बाजार में उतर आई है। जितने महंगे स्कूल उतनी बड़ी फीस। स्कूल भवनों की भव्यता के मुकाबले हमारे प्राचीनकाल के गुरुकूल बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण में ज्यादा सहायक रहे हैं। आज धर्म और राष्ट्र हमारे लिए सबसे ऊपर होना चाहिए। सनातन धर्म की रक्षा हमारा पहला कर्तव्य होना चाहिए। समाज में पाश्विक प्रवृत्ति से डरेंगे तो न तो धर्म बचेगा और न ही राष्ट्र। राष्ट्र सर्पोपरि है। वही राष्ट्र सबसे अग्रणी रह सकते हैं, जहां धर्म की रक्षा के लिए हम लोग हर समय तैयार रहेंगे। ईश्वर के प्रति हमारे मन में श्रद्धा, आदर और प्रीति का भाव होना चाहिए।
प्रारंभ में आयोजन समिति की ओर से महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप, अध्यक्ष हरि अग्रवाल, किशोर गोयल, भावेश दवे, अशोक गोयल, सचिन सांखला, रणधीर दग्धी, राजेन्द्र सोनी, परीक्षित पवार, डॉ. हरिनारायण विजयवर्गीय, राधेश्याम पुरोहित, पलकेश कछवाह आदित्य सांखला, सूरजसिंह राठौर, मुरलीधर धामानी, माणकचंद पोरवाल, राजेन्द्रसिंह जादोन, शेषनारायण यादव, शंकरलाल वर्मा, गोपाल लिखार आदि ने सभी पधारे हुए संतों का स्वागत किया। महिला मंडल की ओर से सुश्री किरण ओझा, अन्नपूर्णा कछवाह, राधा तिवारी, मनोरमा जवेरी आदि ने जगदगुरू शंकराचार्यजी एवं अन्य संतों के आगमन पर पुष्प वर्षा कर उनकी अगवानी की। अखंड परमधाम आश्रम की ओर से सीए विजय गोयनका, विजय शादीजा, राजेश रामबाबू अग्रवाल आदि ने भी संतों का स्वागत किया। संचालन हरि अग्रवाल एवं स्वामी नारायणानंद ने किया। मंगलवार को संघ के प्रचारक पार्थ सारथी ने भी आश्रम आकर संतों का स्वागत किया।
संत सम्मेलन में मंगलवार को हरिद्वार से आए स्वामी रामेश्वरानंद सरस्वती, विद्याधाम इंदौर के महामंडलेश्वर स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, साध्वी अर्चना दुबे सारंगपुर, रतलाम से आए महामंडलेश्वर स्वामी देवस्वरूप, चौबारा जागीर से आए स्वामी, नारायणानंद, वृंदावन से आए स्वामी जगदीश्वरानंद, हरिद्वार से आए स्वामी रामेश्वरानंद सरस्वती, डाकोर से आए स्वामी देवकीनंदन दास, उज्जैन से आए स्वामी परमानंद एवं उज्जैन से ही आए महामंडलेश्वर स्वामी नारदानंद और उनके साथ आए तीन विदेशी संतों ने भी भागीदारी की। इनमें अमेरिका से साध्वी शेलमा, ब्राजील से आई साध्वी सत्यमा और बेल्जियम से आई साध्वी फेबिया ने भी संत सम्मेलन की कार्रवाई को पूरे समय बैठकर देखा और सुना। इस अवसर पर शंकराचार्यजी का पादुका पूजन भी किया गया। आश्रम के संत राजानंद ने गुरूवंदना प्रस्तुत की।
आज के कार्यक्रम-अखंड धाम पर चल रहे 57वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन के चौथे दिन 18 दिसंबर को जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद महाराज की अध्यक्षता में दोपहर 3 बजे से महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप के सानिध्य में हरिद्वार से आए महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश्वरानंद, रतलाम से आए महामंडलेश्वर स्वामी देवस्वरूप, हरिद्वार से से आए स्वामी रामेश्वरानंद सरस्वती, चौबारा जागीर के स्वामी नारायणानंद, सारंगपुर की साध्वी अर्चना दुबे, स्वामी परमानंद, संत राजानंद एवं अन्य संत विद्वानों के प्रवचनों की अमृत वर्षा होगी।

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