इंदौर

नशा ही नाश का प्रवेश द्वार – शंकराचार्य

बिजासन रोड स्थित अखंड धाम आश्रम पर चल रहे अ.भा. संत सम्मेलन में हजारों भक्तों ने ली नशा मुक्ति की शपथ

इंदौर । वेदांत का मूल तत्व ज्ञान है। वेदांत कहने की नहीं, करने की प्रेरणा देता है। जिस तरह शरीर की भूख मिटाने के लिए अन्न और जल की जरूरत होती है, उसी तरह आत्मा की भूख मिटाने के लिए वेदांत तत्व को जानने और समझने की जरूरत होती है। हमारा भारत भूमि में जन्म लेना तभी सार्थक होगा, जब हम भारतीय संस्कृति के अनुरूप आचरण करेंगे, जिनकी श्रद्धा हमारी संस्कृति में नहीं हैं उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। शासन वह श्रेष्ठ होता है, जिसमें अनुशासन हो। आज हमारी युवा पढ़ी नशे की गिरफ्त में फंसकर बर्बादी की ओर बढ़ रही है। नसा ही नाश का प्रवेश द्वार है। नशा किसी भी चीज का होगा, आत्मघाती ही होता है। एक मात्र धर्म का नशा ऐसा है, जो समूचे समुदाय, समाज और राष्ट्र के लिए कल्याणकारी होता है।
जगदगुरू शंकराचार्य, भानपुरा पीठाधीश्वर स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ ने सोमवार को बिजासन रोड स्थित अविनाशी अखंड धाम आश्रम पर 57वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन में उपस्थित भक्तों, युवाओं और श्रेताओं को नशा मुक्ति के लिए शपथ दिलाते हुए कहा कि हमारी नई पीढ़ी को सोची-समझी साजिश के तहत नशे के जंजाल में उलझाया जा रहा है।गांव-गांव और गली-गली में नशा बिकने लगा है। एक वर्ग विशेष के लोग भी हमारे जवानों को नशा बेचकर उन्हें अपना शिकार बना रहे हैं। यह बहुत गंभीर और चिंता का विषय है। यदि हमारी नई पौध को हमने समय रहते नशे की गिरफ्त से बाहर नहीं निकाला तो इसका असर परिवार, समाज और राष्ट्र पर हुए बिना नहीं रहेगा। नशा किसी भी तरह का हो, आत्मघाती ही होगा। नशा करना ही है तो भक्ति, धर्म और संस्कृति का करें, जो कभी उतरता नहीं। मादक पदार्थों का नशा तो सुबह उतर जाता है, लेकिन धर्म और भक्ति का नशा यदि एक बार कर लिया तो जीवनभर नहीं उतरेगा। समाज को समृद्ध और शालीन बनाने के लिए नशे के चंगुल से बाहर आना होगा। हमारी जितनी समृद्ध और संपन्न संस्कृति है, उस पर कई देश नजरें गढ़ाए बैठे हैं। वे चाहते हैं कि सोने की चिड़िया और विश्व गुरू कहे जाने वाले देश की तरूणाई नशे की चपेट में आकर खोखली हो जाए। हमें इस बात को समझना होगा। संत सम्मेलन में उज्जैन में क्षिप्रा किनारे स्थित सिद्ध मंदिर के महामंडलेश्वर स्वामी नारदानंद एवं स्वामी प्रणवानंद महाराज भी आज अखंड धाम पधारे। उनके साथ अमेरिका से साध्वी शेलमा, ब्राजील से साध्वी सत्यमा और बेल्जियम साध्वी फेबिया भी सम्मेलन में शामिल हुए और उन्होंने भी संत सम्मेलन की कार्रवाई को पूरी दिलचस्पी से देखा और समझा। सम्मेलन में हरिद्वार से आए महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश्वरानंद, रतलाम से आए महामंडलेश्वर स्वामी देवस्वरूप, चौबारा जागीर से आए स्वामी नारायणनानंद, सारंगपुर से आई भागवताचार्य साध्वी अर्चना दुबे ने भी अपने ओजस्वी विचार व्यक्त किए और वेदांत एवं वर्तमान युग में सनातन हिन्दू धर्म की महत्ता बताई।
प्रारंभ में आश्रम के महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप, संत राजानंद, अध्यक्ष हरि अग्रवाल, संयोजक किशोर गोयल, अशोक गोयल, सचिव भावेष दवे, महासचिव सचिन सांखला, परीक्षित पंवार, रणधीर दग्धी, प्रचार प्रमुख राजेन्द्र सोनी, विनय जैन, डॉ. चेतन सेठिया, महेन्द्र विजयवर्गीय, ठा. विजयसिंह परिहार, पलकेश कछवाह, राहुल शर्मा, आदित्य सांखला, आदि ने सभी संतों का स्वागत किया। महिला मंडल की ओर से सुश्री किरण ओझा, वर्षा जैन, राजकुमारी मिश्रा, पुष्पा यादव, सीमा सेन, ज्योति श्रीवास्तव आदि ने जगदगुरू शंकराचार्य के आगमन पर पुष्प वर्षा कर उनकी अगवानी की। संचालन हरि अग्रवाल एवं स्वामी नारायणानंद ने किया।
किसने क्या कहाउज्जैन सिद्धाश्रम के महामंडलेश्वर स्वामी नारदानंद महाराज ने कहा कि सनातन धर्म ही सत्य है। अखंड धाम जैसे आश्रम सनातन धर्म की ज्योत को निरंतर प्रज्ज्वति बनाए रखे हुए हैं। परमात्मा का सृष्टि में मनुष्य को नर से नारायण बनने के भी अवसर उपलब्ध हैं। वृंदावन-हरिद्वार से आए स्वामी जगदीश्वरानंद ने कहा कि पिंजरे में बंद पंछी भी मुक्त होना चाहता है, हम तो मनुष्य है। हम भी चाहते हैं कि संसार के मोह-माया के जंजाल से मुक्त हों, लेकिन यह मुक्ति हमें किसी सेना या हथियार की मदद से नहीं, बल्कि सदग्रंथ, सदगुरू और सत्संग से ही मिलेगी। रतलाम से आए स्वामी देवस्वरूप महाराज ने कहा कि हमारा मन संकल्प विकल्प से घिरा रहता है। संतों की कृपा से ही हम अपनी आत्मा के सत्य, आनंद और चेतन्य स्वरूप को पहचान सकते हैं। संतों का समागम ही पहली भक्ति है। जन्म-मृत्यु की सत्ता को हम तभी पहचान पाएंगे, जब हमारा अज्ञान दूर होगा। सदगुरू अखंडानंद महाराज के सानिध्य में रहे संत इसीलिए आज भी त्याग और साधना के जीवंत उदाहऱण बने हुए हैं। डाकोर से आए वेदांताचार्य स्वामी देवकानंदन दास ने कहा कि वेदांत का अध्ययन मनुष्य को संस्कारित और वास्तविक ज्ञान से परिपूर्ण बनाता है। सम्मेलन में स्वामी नारायणनानंद ने कहा कि वेद-वेदांत और धर्म-संस्कृति हमारे जीवन का अनिवार्य अंग है। सनातन धर्म में हम आदि-अनादि काल से जीते आ रहे हैं और आगे भी जीते रहेंगे, इसे कोई मिटा नहीं सकता। संत राजानंद ने कहा कि आज पूरी दुनिया में वेदांत और भारत के संतों की वाणी गूंज रही है। यह देश भक्तों, संतों और ऋषि-मुनियों की तपस्थली रहा है इसलिए इस देश पर कभी आंच नहीं आ सकती। हमारे देश में तो विरांगनाओं की शौर्यगाथाएं भी पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष तक गूंज रही है। महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप ने कहा कि आने वाले समय में भारत ही विश्व का नेतृत्व करेगा। आज पूरे विश्व में भारत को लेकर आशा भरी निगाहें उठी हुई हैं। हम सब संगठित होकर सामने आई चुनौतियों का मुकाबला करेंगे तो कोई भी ताकत हम पर हावी नहीं हो सकती। जरूरत है हम सबको एकजुट और संगठित होकर सनातन धर्म के शत्रुओं का मुकाबला करने की।
आज के कार्यक्रम-अखंड धाम पर चल रहे 57वें अ.भा. अखंड वेदांत संत सम्मेलन के तीसरे दिन जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी ज्ञानानंद महाराज की अध्यक्षता में दोपहर 2 बजे से महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी चेतन स्वरूप के सानिध्य में हरिद्वार से आए महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश्वरानंद, रतलाम से आए महामंडलेश्वर स्वामी देवस्वरूप, चौबारा जागीर के स्वामी नारायणानंद, सारंगपुर की साध्वी अर्चना दुबे, स्वामी परमानंद, संत राजानंद एवं अन्य संत विद्वानों के प्रवचनों की अमृत वर्षा होगी।

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!