इंदौर

जोश, जिद, जज्बे और जुनून की मिसाल बनी शहर की युवती पूजा गर्ग बाइक से करेंगी 4500 कि.मी. की साहसिक यात्रा

खुद कैंसर की मरीज और स्पाइनल कार्ड से ग्रस्त होते हुए भारत-चीन सीमा पर देंगी जागरुकता का संदेश, फहराएंगी तिरंगा

इंदौर, । इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की उपाधि प्राप्त, कयाकिंग और केनो की अंतर्राष्ट्रीय एथलीट और देश को कई बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाकर अनेक पदक प्राप्त करने वाली राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज शहर की युवती पूजा गर्ग स्वयं कैंसर और स्पाइनल कार्ड की शिकार होते हुए भी अब 25 अक्टूबर को सुबह 11 बजे कलेक्टर कार्यालय से भारत-चीन बार्डर स्थित नाथूला दर्रा की यात्रा प्रारंभ करेंगी।
वे इस यात्रा में 4500 किलोमीटर की दूरी तय कर नेपाल, सिक्किम, भूटान एवं देश के चार राज्यों से होते हुए अंतर्राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस पर 7 नवम्बर को नाथूला दर्रा पहुंचकर तिरंगा फहराने के बाद कैंसर एवं अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को जागरूकता का संदेश देंगी कि सकारात्मक जोश, जिद, जज्बे और जुनून से हर कठिन बीमारी को हराया जा सकता है। अपनी इस यात्रा के लिए पूजा ने यामाहा बाइक कंपनी की मदद से दिव्यांगों के लिए काम आने वाली विशेष बाईक तैयार कराई है, जो पहाड़ी रास्तों पर भी मजबूत इंजन की मदद से चढ़ सकेंगी। उनके साथ इस यात्रा में मार्गदर्शक के रूप में मोहितराव जाधव और प्रबंधक प्रभलीन कौर बवेजा, छायाकार युवराज कौशल और उनकी मातुश्री रेखा गर्ग भी साथ रहेंगी। शुक्रवार 25 अक्टूबर को सुबह 11 बजे कलेक्टर कार्यालय से शहर के गणमान्य अतिथियों की मौजूदगी में पूजा इस यात्रा का श्रीगणेश करेंगी। वे समुद्र तल से 14 हजार 140 फीट ऊपर तक चलते हुए 18 हजार फीट की ऊंचाई स्थित भारत-चीन सीमा पर 20 से 25 दिनों में पहुंचकर अंतर्राष्ट्रीय कैंसर अवेयरनेस दिवस पर देश के उनके जैसे दिव्यांग और गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को संदेश देंगी। उनकी इस यात्रा को उन्होंने ‘ ठान लिया तो ठान लिया ‘ शीर्षक दिया है।
पूजा गर्ग अपनी माता के साथ इंदौर के बड़ा गणपति क्षेत्र में निवास करती हैं । पिता का साया दो वर्ष पूर्व उठ चुका है। शहर की इस युवती की इस साहसिक यात्रा के लिए अनेक प्रमुख समाजसेवियों ने भी उनका उत्साहवर्धन किया है, जिनमें मुख्य रूप से सर्वश्री प्रेमचंद गोयल, मनोहर बाहेती, अरविंद बागड़ी एवं अन्य कई गणमान्य सहयोगी शामिल हैं। इतनी गंभीर अवस्था के बावजूद इस साहसिक यात्रा को तय करने का संकल्प रखने वाली पूजा अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में भाग लेकर कई पदक हासिल कर चुकी हैं। उनका आत्मबल और हौंसला इतना मजबूत है कि वे करीब 20 से 25 दिनों में अपनी इस यात्रा की मंजिल पर पहुंचकर यह साबित करना चाहतीं हैं कि जिद, जज्बा, जोश और जुनून हो तो असंभव नाम का शब्द कोई मायने नहीं रखता।

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