धर्म से मिलती है चैतन्यता ,धर्म वहीं रहेगा,जहां सेवा-परमार्थ का भाव हो
रेडिसन चौराहा स्थित दिव्य शक्तिपीठ पर सात दिवसीय ज्ञान यज्ञ में स्वामी लोकेशानंद के आशीर्वचन
इंदौर। वर्तमान युग धर्म जागरण का है। धर्म से समाज को चैतन्यता मिलती है। धर्म वहीं रहेगा, जहां सेवा और परमार्थ का भाव होगा । सनातनी संस्कृति परंपराओं और मर्यादाओं से जुड़ी हुई है। भगवान का अवतरण जीवमात्र के कल्याण और उद्धार के लिए ही होता है। परमात्मा के साथ प्रकृति भी पूजनीय है। प्रकृति के साथ खिलवाड़ के नतीजे हमें ही नहीं, आने वाली पीढियों को भी भोगना पड़ सकते हैं। यदि गंगा में स्नान से हमारे पापों का नाश होता है, तो उस गंगा को प्रदूषित करना भी पाप कर्म ही है। यदि हमने पवित्र नदियों को नालों बदल दिया तो हमारे पाप कहां धुलेंगे ?
श्रीनारायण भक्ति पंथ के प्रमुख स्वामी लोकेशानंद महाराज के एमआर-10, रेडिसन चौराहा स्थित दिव्य शक्तिपीठ के सभागृह में आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ में व्यक्त किए।
कथा शुभारंभ के पूर्व प्रमुख यजमान समाजसेवी दुर्गेश-निशा अग्रवाल, नितिन अग्रवाल, महेन्द्र अग्रवाल तथा आयोजन समिति की ओर से संतोष अग्रवाल, भारत मीरचंदानी, प्रसन्ना चांडक, सीताराम मित्तल, मणिकांत गुप्ता, मनीष गोयल एवं संजय गर्ग ने व्यासपीठ का पूजन किया।
स्वामी लोकेशानंद ने कहा कि गौमाता, वेदपाठी विप्र, देवमंदिर और साधु, ये चारों सनातनी संस्कृति के केंद्र एवं आत्मा हैं। इन सबके मालिक स्वयं भगवान ही है, जिनके मालिक भगवान हों, वे बाजार में नहीं बिकते। हमारी परंपराएं बहुत महान रही हैं। देश विश्वगुरू रहा है। हम सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति में शामिल गंगा, तुलसी एवं सभी पवित्र नदियों की पूजा करते आ रहे हैं। प्रकृति भी परमात्मा की ही रचना है। जीवात्मा से परमात्मा का मिलन तभी संभव होगा, जब हमारे मन के अहंकार, दंभ, काम, क्रोध, अश्रद्धा जैसे विकारों से हम पूरी तरह मुक्त हो जाएंगे। भागवत का श्रवण और मंथन पाप से मुक्ति का ही मार्ग है। नारायण अकारण किसी का भी अपमान नहीं करते, अकारण उद्धार जरूर करते हैं।